शब्द का अर्थ
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भैंस :
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स्त्री० [सं० महिष] १. गाय की तरह का एक प्रसिद्ध पालतू मादा चौपाया जिसका दूध दूहा जाता है। मुहा०—भैंस काटना=गरमी या आतशक नाम का रोग होना। उपदंश होना। (बाजारू) २. एक प्रकार की बड़ी मछली जो पंजाब, बंगाल तथा दक्षिण अफ्रीका की नदियों में पाई जाती है। इसका माँस खामे में स्वादिष्ट होता है, परन्तु इसमें हड्डियाँ अधिक होती हैं। ३. एक प्रकार की घास। |
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भैंसवाली :
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स्त्री० [सं०] एक प्रकार की बेल जिसकी पत्तियाँ पाँच से आठ इंच तक लम्बी होती हैं। |
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भैंसा :
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पुं० [हिं० भैंस] १. भैंस का नर। २. लाक्षणिक अर्थ में, हट्टा-कट्टा व्यक्ति। |
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भैंसाव :
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पुं० [हिं० भैंस+आव (प्रत्य०)] भैंस और भैंसे का जोड़ा खाना। भैंसे से भैंस का गर्भ धारण करना। |
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भैंसासुर :
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पुं०=महिषासुर। |
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भैंसिया गूगल :
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पुं० [हिं० भैंसिया+गूगल] एक प्रकार का गूगल जिसका व्यवहार ओषधि के रूप में होता है। |
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भैंसिया लहसुन :
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पुं० [हिं० भैंसिया+लहसुन] सामुद्रिक में एक प्रकार लाल दाग या निशान जो प्रायः गाल, गरदन आदि पर होता है। लच्छन। |
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भैंसौरी :
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स्त्री० [हिं० भैंसा+औरी (प्रत्य०)] भैंस का चमड़ा। |
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भै :
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पुं०=भय। |
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भैकर :
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वि० [स्त्री० भैकरी]=भयकर (भयंकर)। |
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भैक्ष :
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पुं० [सं० भिक्षा+अण्, वृद्धि] १. भिक्षा माँगने की क्रिया या भाव। भिखमंगी। २. वह चीज जो भिक्षा माँगने पर मिले। भीख। |
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भैक्ष-चर्या :
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स्त्री० [सं० ष० त०] चारों ओर घूम-घूमकर भिक्षा माँगने की क्रिया। |
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भैक्षव :
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वि० [सं० भिक्षु+अञ्,] भिक्षु-संबंधी। पुं० भिक्षुओं का समूह। |
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भैक्ष-वृत्ति :
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स्त्री० [तृ० त०]=भैक्ष-चर्या। |
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भैक्षाकुल :
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पुं० [सं० भैक्ष-आकुल, तृ० त०] वह स्थान जहाँ बहुत से लोगों को भिक्षा मिलती हो। दानशाला। |
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भैक्षान्न :
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पुं० [सं० भैय-अन्न, कर्म० स०] भीख में मिला हुआ अन्न। |
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भैक्षाशी (शिन्) :
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वि० [सं० भैक्ष√अश् (खाना)+णिनि] भिक्षान्न खानेवाली। पुं० भिक्षुक। भिखमंगा। |
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भैक्षाहार :
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पुं० [सं० भैक्ष-आहार, ब० स०] भिक्षुक। |
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भैक्षुक :
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पुं० [सं० भिक्षुक+अण्] १. भिक्षुकों का दल। २. संन्यास। |
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भैक्ष्य :
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पुं० [सं० भिक्षा+ष्यञ्] भिक्षा। भीख। |
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भैक्ष्य-चरण :
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पुं०=भिक्ष-चर्या। |
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भैक्ष्यवर्या :
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स्त्री०=भिक्षु-चर्या। |
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भैक्ष्य-जीविका :
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स्त्री० [तृ० त०] भिक्षा पर जीवन बिताना। |
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भैक्ष्य-वृत्ति :
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स्त्री० [तृ० त०] भिक्षा-वृत्ति। |
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भैक्ष्य-शुद्धि :
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स्त्री० [स्त्री० मध्य० स०] भिक्षा माँगने और ग्रहण करने के दोष से मुक्त होने के लिए की जानेवाली शुद्धि। (जैन) |
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भैचक, भैचक्क :
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वि०=भौचक। |
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भैजन :
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वि० [हिं० भै=भय+जनक] भय उत्पन्न करनेवाला। भयप्रद। (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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भैडक :
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वि० [सं०] भेड़-संबंधी। भेड़ों का। |
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भैदा :
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वि० [सं० भय+दा (प्रत्य०)] भयप्रद। डरावना। (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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भैन :
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स्त्री० [हिं० बहिन] बहन। भगिनी। |
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भैना :
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स्त्री० [हिं० बहन] बहन के लिए सम्बोधन। स्त्री० [?] गंगई नामक पक्षी। अ० १.=भीनना। २. भींगना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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भैनी :
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स्त्री० [हिं० बहन] बहन। भगिनी। |
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भैने :
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पुं० [सं० भागिनेय] बहन का पुत्र। भानजा। |
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भैम :
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वि० [सं० भीम+अण्] भीम-संबंधी। भीम का। |
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भैम :
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स्त्री० [सं० भैम+ङीप्] १. माघ शुक्ल एकादशी। भीमसेन एकादशी। २. दमयंती जो राजा भीम की कन्या थी। |
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भैयंस :
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पुं० [हिं० भाई+अंश] संपत्ति में भाइयों का हिस्सा। भाइयों का अंश। |
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भैया :
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पुं० [हिं० भाई] १. भाई। भ्राता। २. बराबरवालों का छोटे के लिए सम्बोधन का शब्द। ३. उत्तरी भारत विशेषतः उत्तर प्रदेश का वह निवासी जो पश्चिम भारत में रईसों के यहाँ दरबान का काम करता हो। (बम्बई) पुं० [?] नाव की पट्टी या तख्ती। |
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भैयाचारा :
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पुं०=भाईचारा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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भैयाचारी :
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स्त्री०=भाईचारा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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भैयादूज :
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स्त्री०=भाई-दूज। |
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भैरव :
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वि० [सं० भीरु+अण्] १. जिसका रव अर्थात् शब्द भीषण हो। ३. जो देखने में भयंकर हो। भयानक। ३. घोर विनाश करनेवाला। ४. बहुत अधिक उग्र, तीव्र या विकट। उदा०—पंचभूत का भैरव मिश्रण।—पंत। पुं० [सं०] १. महादेव। शिव। २. शिव के एक प्रकार के गण जो उन्हीं के अवतार माने माने जाते हैं। ३. साहित्य में भयानक नामक रस। ४. संगीत में संपूर्ण जाति का एक राग जो शरद् ऋतु में प्रातःकाल गाया जाता है। ५. ताल के सात मुख्य भेदों में से एक। ६. कपाली। ७. ऐसी तीव्र मदिरा जिसे पीते ही आदमी वमन करने लगे। (तांत्रिक) ८. एक प्राचीन नद। |
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भैरव-झोली :
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स्त्री० [सं० भैरव+हिं० झोली] एक प्रकार की लंबी झोली जो प्रायः साधु-संन्यासी अपने पास रखते हैं। |
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भैरव-तर्जक :
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पुं० [सं० ष० त०] विष्णु। |
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भैरव-बहार :
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पुं० [सं० भैरव+हिं० बहार] वसंत-ऋतु में प्रातः गाया जानेवाला एक संकर राग जो भैरव और बहाल के मेल से बनता है। |
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भैरव-मस्तक :
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पुं० [सं०] ताल के साठ मुख्य भेदों में से एक। |
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भैरवांजन :
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पुं० [सं० भैरव-अंजन, मध्य० स०] आँखों में लगाने का एक प्रकार का अंजन। (वैद्यक) |
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भैरवी :
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स्त्री० [सं० भैरव+ङीप्] १. तांत्रिकों के अनुसार एक प्रकार की देवी जो महाविद्या की मूर्ति मानी जाती है। २. पार्वती। ३. पुराणानुसार एक नदी। ४. संगीत में एक रागिनी जो भैरव राग की भार्या कही गई है और जो शरद् ऋतु में प्रातःकाल के समय गाई जाती है। इसका स्वरग्राम इस प्रकार है |
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भैरवी-चक्र :
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पुं० [सं० मध्य० स०] तांत्रिकों का वह मंडल जो देवी के पूजन के लिए एकत्र होता है। मद्यपों और अनाचारियों आदि का वर्ग या समूह। |
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भैरवी-याचना :
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स्त्री० दे० ‘भैरवी यातना’। |
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भैरवी यातना :
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स्त्री० [सं० भैरवी+यातना व्यस्त पद] वह कष्ट जो प्राणियों को मरते समय भैरव देते हैं। |
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भैरवेश :
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पुं० [सं० भैरव-ईश, ष० त०] शिव। |
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भैरा :
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पुं०=बहेड़ा। |
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भैरी :
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पुं०=बहरी (पक्षी)। |
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भैरु :
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पुं०=भैरव। |
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भैरो :
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पुं०=भैरव। |
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भैवा :
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पुं० [हिं० भैया] भाई अथवा बराबरवालो के लिए संबोधन।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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भैवाद :
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पुं० [हिं० भाई+आद (प्रत्य०)] १. कुल या परिवार के लोग जिनसे भाइयों का सा संबंध हो। २. एक ही वंश या परिवार के लोग। ३. भाई-चारा। |
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भैषज :
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पुं० [सं० भेषज+अण्] १. औषध। दवा। २. वैद्य के शिष्य और अनुचर। ३. लवा पक्षी। |
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भैषजिकी :
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स्त्री० [सं० भैषज से] औषध आदि बनाने की कला, विद्या या शास्त्र। (फार्मेसी) |
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भैषज्य :
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पुं० [सं० भेषज+ञ्य] दवा। औषध। |
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भैष्ज्यज्ञ :
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पुं० [सं०] वह जो भैषज-शास्त्र का ज्ञाता हो। ओषधियों आदि की सहायता से अच्छी चिकित्सा करनेवाला चिकित्सक। काय-चिकित्सक। |
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भैष्मकी :
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स्त्री० [सं० भीष्मक+इञ्—डीप्] भीष्मक की कन्या रुक्मणी। |
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भैहा :
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पुं० [हिं० भय+हा (प्रत्य०)] १. भयभीत। डरा हुआ। २. जो भूत-प्रेत आदि से डरकर उनके आवेश में आ गया हो। (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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