शब्द का अर्थ
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मकरंद :
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पुं० [सं० मकर√अन्द् (बाँधना)+अण्, शक० पररूप] १. फूलों का रस जिसे मधुमक्खियाँ और भौंरे आदि चूसते हैं। २. फूल का केसर। ३. किंजल्की। कुन्द का पौधा या फूल। ४. संगीत में ताल के साठ मुख्य भेद में से एक। ५. वाम नामक सवैया-छंद का दूसरा नाम। |
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मकरंदवती :
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स्त्री० [सं० मकरन्द+मतुप्, वत्व,+ङीष्] पाटला लता। |
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मकर :
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पुं० [सं० मुख√कृ (फेंकना)+ट, पृषो० सिद्धि] [स्त्री० मकरी] १. मगर या घड़ियाल नामक प्रसिद्ध जल-जंतु जो कामदेव की ध्वजा का चिन्ह और गंगा जी तथा वरुण का वाहन माना गया है। २. बारह राशियों में से दसवीं राशि जिसमें उत्तराषाढ़ नक्षत्र के अन्तिम तीन पाद, पूरा श्रणण नक्षत्र और घनिष्ठा के आरम्भ के दो पाद हैं। उसकी आकृति मंकर (जंतु) के समान मानी गई है। ३. सौर माघ मास जो मकर संक्रांति से आरंभ होता है। उदा०—दासन मकर चैन होत है नदी न कौ।—सेनापति। ४. कुबेर की नौ निदियों में से एक निधी। ५. एक प्राचीन पर्वत। ६. मछली। ७. सुश्रुत के अनुसार कीड़ों और छोटे जीवों का एक वर्ग। ८. अस्त्र-शस्त्र आदि के वार निष्फल बनाने के लिए उन पर पढ़ा जानेवाला एक प्रकार का मंत्र। ९. प्राचीन भारत में, सैनिक व्यूह-रचना का एक प्रकार। १॰. छप्पय के उनतालिसवें भेद का नाम जिसमें ३२ गुरु, ८८ लघु, १२0 वर्ण की १५२ मात्राएँ अथवा ३२ गुरु, ८४ लघु, ११६ वर्ण, कुल १४८ मात्राएँ होती हैं। पुं० [फा० मक्र] १. छल। कपट। २. दूसरों को धोखे में रखने के लिए बनाई जानेवाली कोई स्थिति। क्रि० प्र०—रचना।—फैलाना। मुहा०—मकर साधना=छलपूर्वक दूसरों पर यह प्रकट करना कि हम बहुत ही हीन दशा में हैं। |
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मकर-कुंडल :
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पुं० [मध्य० स०] मकर के आकृति का कानों में पहनने का कुंडल। |
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मकर-केतन :
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पुं० दे० ‘मकर-केतु’। |
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मकर-केतु :
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पुं० [ब० स०] कामदेव। |
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मकर-ध्वज :
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पुं० [ब० स०] १. कामदेव। २. वैद्यक में चंद्रोदय नामक रसौषध। ३. लौंग। ४. पुराणानुसार अहिरावण का द्वारपाल जो हनुमान का पुत्र माना जाता है। मत्स्योदर। |
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मकर-पति :
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पुं० [सं० ष० त०] १. कामदेव। २. ग्राह नामक जल-जंतु। |
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मकर-व्यूह :
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पुं० [मध्यम० स०] एक प्रकार की सैनिक ब्यूह-रचना जिसमें सैनिक मकर के आकार में खड़े किये जाते हैं। |
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मकर-संक्रांति :
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स्त्री० [सं० स० त०] वह समय जब सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है। यह पुण्य काल माना जाता है। |
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मकर-सप्तमी :
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स्त्री० [ष० त०] माघ शुक्ला सप्तमी। |
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मकरांक :
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पुं० [सं० मकर-अंक, ब० स०] १. कामदेव। २. समुद्र। ३. एक मनु का नाम। |
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मकरा :
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पुं० [सं० वरक] महुआ नामक अन्न। पुं० [हिं० मकड़ा] १. भूरे रंग का एक कीड़ा जो दीवारों और पेड़ों पर जाला बनाकर रहता है। २. हलवाइयों की एक प्रकार की चौघड़िया जिससे सेव बनाया जाता है। यह एक चौकी होती है। ३. दे० ‘मकड़ा’। |
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मकराकर :
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स्त्री० [मकर-आकार, ष० त०] समुद्र। |
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मकराकार :
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वि० [मकर-आकार, ब० स०] मकर की आकृति जैसा। |
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मकराकृत :
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वि० [मकर-आकृत, सुप्सुपा स०] मकर की आकृति जैसा बनाया हुआ। जैसे—मकराकृत कुंडल। |
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मकराक्ष :
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पुं० [मकर-अक्षि, ब० स०,+षच्] खर नामक राक्षस का पुत्र जो रावण का भतीजा था। |
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मकराज :
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स्त्री०=कैंची। |
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मकरानन :
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पुं० [मकर-आनन्, ब० स०] शिव का एक अनुचर। |
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मकराना :
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पुं० [देश०] राजस्थान का एक प्रसिद्ध क्षेत्र जो संगमरमर की खान के लिए ख्यात है। |
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मकरराई :
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स्त्री० [मकरा ?+राई] काली राई। |
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मकरालय :
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पुं० [मकर-आलय, ष० त०] समुद्र। |
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मकराश्व :
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पुं० [मकर-अश्व, ब० स०] १. वरुण। २. तांत्रिकों का एक प्रकार का आसन जिसमें हाथ पैर पीठ की ओर कर लिए जाते हैं। |
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मकरिका-पत्र :
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पुं० [सं० उपमि० स०] मछली के आकार का बना हुआ चंदन का चिन्ह जो प्राचीन काल में स्त्रियाँ कनपटियों पर बनाती थीं। |
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मकरी :
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स्त्री० [सं० मकर+ङीष्] १. मकर या मगर नामक जल-जन्तु की मादा। २. एक प्रकार का वैदिक गीत। ३. चक्की में लगी हुई एक लकड़ी जो करीब आठ अंगुल की होती है। ४. जहाज में फर्श या खंभों आदि में लगा हुआ लकड़ी या लोहे का वह चौकोर टुकड़ा जिसके अगले दोनों भाग अँकुसे के आकार को होते हैं। स्त्री०=मकड़ी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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मकरूक :
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भू० कृ० [अ०] कुर्क किया हुआ (माल)। आसंजित। |
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मकरूज :
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वि० [अ० मक़ूज] कर्जदार। ऋणी। |
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मकरूह :
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वि० [अ० मक्रूह] १. घृणित। २. अपवित्र। ३. खराब या गन्दा, बुरा। ४. (काम) जो इस्लाम के अनुसार निषिद्ध या बवर्जित हो। |
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मकरेड़ा :
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पुं० [हिं० मक्का+एड़ा (प्रत्य०)] भक्के के पौधे का डंठल।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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मकरौरा :
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पुं०=मकोड़ा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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मकराना :
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स० [हिं० मुकरना का स० रूप०] १. किसी को मुकरने में प्रवृत्त करना। २. किसी को झूठा बनाना या सिद्ध करना। (क्व०) स० [?] मुक्त कराना। छुड़ाना। |
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