शब्द का अर्थ
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मरु :
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पुं० [सं०√मृ+उ] १. ऐसी भूमि जहाँ जल न हो। और केवल बलुआ मैदान हो। मरुस्थल। रेगिस्तान। २. ऐसा पर्वत जिसमें जल न होता हो। ३. मारवाड़ प्रदेश। ४. मरुआ नामक पौधा। ५. नरकासुर का साथी एक असुर। |
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मरुआ :
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पुं० [सं० मरुव] बन-तुलसी की जाति का एक पौधा जो बागों में लगाया जाता है। पुं० [?] १. बँडेर। २. लकड़ी या धरन जिसमें हिंडोला लटकाया जाता है। ३. माँड़। पीच।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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मरुक :
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पुं० [सं० मरु+कन्] १. मोर। मयूर। २. एक प्रकार का हिरन। स्त्री० [हिं० मुड़काना] १. मुड़कने की क्रिया या भाव। २. उत्तेजना। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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मरुकांतार :
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पुं० [सं० ष० त०] रेगिस्तान। |
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मरु-कूप :
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पुं० [सं० ष० त०] मरुस्थल या रेगिस्तान का कुआँ जिसमें जल नहीं होता। |
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मरुज :
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पुं० [सं० मरु√जन (उत्पन्न करना)+ड] १. नख नामक सुगंधित द्रव्य। २. बाँस का कल्ला। |
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मरु-जात :
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स्त्री [सं० मरुज+टाप्] मरुस्थल में होनेवाली इंद्रायण की जाति की एक लता। |
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मरु-जाता :
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स्त्री० [सं० पं० त०] कौंछ। |
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मरुत् :
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पुं० [सं०√मृ+उत्] १. एक देवगण का नाम। वेदों में इन्दें रुद्र और वृश्नि का पुत्र लिखा है। २. राजा बृहद्रथ का एक नाम। ३. वायु। हवा। ४. प्राण। ५. सोना। स्वर्ण। ६. सौंदर्य। ७. मरुआ नाम का पौधा। ८. ऋत्विक्। ९. गणिवन। १॰. असवर्ग। ११. दे० ‘मरुत’। |
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मरुतवान :
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पुं०=मरुतत्वान्। (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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मरुत्कर :
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पुं० [सं० ष० त०] राममाष। उड़द। |
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मरुत्गण :
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पुं० [सं० ष० त०] एक प्रकार के देव-गण जिनकी संख्या पुराणों में ४९ कही गई है। |
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मरुत्त :
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पुं० [सं० मरुत्+तप्] पुराणानुसार एक चन्द्रवंशी राजा जो महाराज करंधर का पौत्र और अवीक्षित का पुत्र था। |
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मरुत्तक :
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पुं० [सं० मरुत√तक् (हँसना)+अच्] मरुआ (पौधा)। |
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मरुत्पत्ति :
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पुं० [सं० ष० त०] इन्द्र। |
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मरुत्पथ :
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पुं० [सं० ष० त०]+अच् (प्रत्य०)] आकाश। |
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मरुत्प्लव :
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पुं० [सं० मरुत्√प्लु (कूदना)+अच्] सिंह। शेर। |
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मरुत्फल :
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पुं० [सं० ष० त०] ओला। |
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मरुत्वाती :
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स्त्री० [सं० मरुत्वत्+ङीष्] धर्म की पत्नी जो प्रजापति की कन्या थी। |
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मरुत्वान् (त्वत्) :
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पुं० [सं० मरुत् वल्व] १. इन्द्र। २. हनुमान। |
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मरुत्सरव :
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पुं० [सं० ष० त०,+टच्, प्रत्य०] १. इन्द्र। २. अग्नि। |
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मरुत्सहाय :
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पुं० [सं० ब० स०] अग्नि। |
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मरुत्सुत :
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पुं० [सं० ष० त०] १. हनुमान। २. भीम। |
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मरुथल :
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पुं०=मरुस्थल। |
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मरुदांदोल :
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पुं० [सं० मरुत्-आंदो, ष० त०] धौंकनी। |
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मरुदिष्ट :
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पुं० [सं० मरुत्-इष्ट, ष० त०] गूगुल। |
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मरुद्रथ :
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पुं० [सं० मरुत्-रथ, ब० स०] घोड़ा। |
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मरुद्रुम :
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पुं० [सं० ष० त०] १. विट्खदिर। २. बबूल। |
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मरुद्वर्त्म (न्) :
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पुं० [सं० मरुत-वर्त्मन, ष० त०] आकाश। |
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मरुद्वाह :
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पुं० [सं० मरुत-वाह, ब० स०] १. धूँआ। २. आग। |
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मरुद्विप :
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पुं० [सं० ष० त० या स० त०] ऊँट। |
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मरुद्वीप :
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पुं० [सं० ष० त०] मरुस्थल के बीच में कोई हरा-भरा क्षेत्र। ऐसा छोटा उपजाऊ प्रदेश जो मरुस्थल में हो। |
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मरुधन्वा (न्वन्) :
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पुं० [सं० ब० स०, अनङ्-आदेश] मरुभूमि। मरुस्थल। |
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मरु-धर :
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पुं० [सं० ष० त०] मारवाड़। |
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मरुभूमि :
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स्त्री० [सं० ष० त०] रेतीला तथा जल-विहीन प्रदेश। रेगिस्तान। |
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मरु-भूरुह :
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पुं० [सं० ष० त०] करील। |
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मरु-नक्षिका :
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स्त्री० [सं० ष० त०] मक्खी की तरह का एक पतिंगा जो प्रायः अंधेरे और ठंडे स्थान में रहता है। यह फुदकता ही है, उड़ नहीं सकता। कालज्वर का संक्रमण प्रायः इसी के द्वारा है (सैड़फ्लाई)। |
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मरुरना :
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अ०=मरुड़ना (मरोड़ा जाना)। स०=मरोड़ना। (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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मरुव :
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पुं० [सं० मरु√वा (प्राप्त होना)+क] मरुआ। |
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मरुवक :
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पुं० [सं० मरुव+कन्] १. दौना या मरुआ नाम का पौधा। २. मैनी नाम का कँटीला पेड़। ३. तिल का पौधा। ४. बाघ नामक जन्तु। ५. राहु ग्रह। |
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मरुवा :
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पुं०=मरुआ। |
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मरुसंभव :
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पुं० [सं० ब० स०] एक तरह की मूली। |
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मरुसंभवा :
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स्त्री० [सं० मरुसंभव+टाप्] १. महेंद्र वारुणी। २. एक प्रकार का खैर। ३. एक प्रकार का कनेर। ४. छोटा जवासा। |
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मरुस्थल :
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पुं० [सं० ष० त०] वह बहुत बड़ा प्राकृतिक मैदान जिसमें मिट्टी की जगह बालू या रेत ही हो। रेगिस्तान (डिज़र्ट)। |
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मरुस्था :
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स्त्री० [सं० मरु√स्था (ठहरना+क+टाप्] छोटा जवासा। |
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मरुद्भवा :
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स्त्री० [सं० मरु-उद्भव, ब० स०,+टाप्] १. जवासा। २. कपास। ३. एक प्रकार का खैर का वृक्ष। |
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