शब्द का अर्थ
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मायँ :
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अ०=महिं (बीच)। (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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समानार्थी शब्द-
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माय :
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पुं० [सं० माया+अच्] १. पीताम्बर। २. असुर। स्त्री० [सं० माता] १. माता। माँ। २. बड़ीया आदरणीय स्त्री के लिए सम्बोधन का शब्द। स्त्री०=मादा। अव्य०=माहिं (बीच में)। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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मायक :
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पुं० [सं० माय+कन्] मायावी। पुं० =मायका। |
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मायका :
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पुं० [सं० मातृ+क (प्रत्यय)] विवाहिता स्त्री की दृष्टि से उसके माता-पिता का घर और परिवार। नैहर। पीहर। |
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मायण :
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पुं० [सं० माया++युच्—अन] वेद का भाष्य करनेवाले सायण के पिता का नाम। |
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मायन :
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पुं० [सं० मातृका] १. मातृका-पूजन और पितृ-निमंत्रण संबंधी एक कृत्य जो विवाह से पहले किया जाता है। २. उक्त दिन होनेवाला कृत्य।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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मायनी :
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स्त्री० दे० ‘मायाविनी’। पुं० =माने (अर्थ)। |
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मायल :
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वि० [अ० माइल] १. जो किसी ओर प्रवृत्त हुआ हो। जैसे—किसी पर दिल मायल होना, अर्थात् किसी की ओर अनुरक्त होना। २. आसक्त। ३. किसी प्रकार के झुकाव या प्रवृत्ति से युक्त। जैसे—सुरखी मायल काला रंग अर्थात ऐसा काला जिसमें लाल रंग की भी कुछ झलक हो। |
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माया :
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स्त्री० [सं०√मा+य+टाप्] १. कोई काम करने या कोई चीज बनाने की अलौकिक अथवा असाधारण कला या शक्ति। जैसे—इन्द्र अपनी माया अनेक रूप धारण करता है। २. बहुत ही उत्कृष्ट या प्रखर बुद्धि। प्रज्ञा। ३. कोई ऐसी कृति, रचना या रूप जिससे लोग धोखे या भ्रम में पड़ते हों। छलपूर्ण तथ्य या बात। जैसे—इंद्रजाल या जादूगीरी। ४. वेदांत में वह ईश्वरीय शक्ति जिससे इस नामरूपात्मक सारे दृश्य जगत् की सृष्टि हुई है। विशेष—वेदांत दर्शन का सिद्धांत है कि यह सारी सृष्टि अमूर्त और नित्य ब्रह्मा से उत्पन्न हुई है, फिर भी यह वास्तविक नहीं हैं। उस ब्रह्मा की अलौकिक शक्ति से ही यह हमें दृश्य जगत् के रूप में दिखायी देती हैं। पुराणों में इसी माया पर चेतन धर्म का आरोप करके इसे स्त्री के रूप में माना और ब्रह्मा की सहधर्मचारिणी कहा है। इसी कारण लोग मोहवश अवस्तु को वस्तु और अवास्तविक को वास्तविक और मिथ्या को सत्य समझने लगते हैं। वह वस्तुतः भ्रम मात्र है। सांख्याकार ने इसी को प्रकृति या प्रधान कहा है। शैव दर्शन में इसे आत्मा को बंधन में रखनेवाले चार पाशो (जालों या फंदो) मे से एक पाश माना है, और वैष्णवों ने इसे विष्णु की नौ शक्तियों के अंतर्गत एक शक्ति कहा है। परवर्ती काल मे कुछ लोग इसे अनृत की और कुछ लोग अधर्म की कन्या कहने लगे थे और मृत्यु की जननी या माता मानने लगे थे। बौद्ध इसे २४ दुष्ट मनोविकारों मे से एक मनोविकार या वासना मानते हैं। पर सब बातों का सारांश यही है कि यह मूर्तिमान भ्रम है और लोगों को धोखे में रखकर ईश्वर या मुक्ति से विमुख रखनेवाली है। इसीलिए जितने काम, चीजें या बातें वास्तव में कुछ और होती है, पर देखने में कुछ और, उन सबका अन्तर्भाव माया में ही होता है। हिंदू धर्म मे देवी-देवताओं की इच्छा, प्रेरणा या शक्ति से जो अद्भुत अलौकिक या विलक्षण लीला-पूर्ण कृत्य होते हैं, उन सबकी गिनती उन देवी-देवताओं की माया में ही होती है। ५. उक्त के आधार पर अज्ञान या अविद्या। ६. उक्त के फलस्वरूप और भ्रम या मोह-वश किसी के प्रति होनेवाला अनुराग, प्रेम या स्नेह। ममता। ममत्व। ७. किसी प्रकार की अवास्तविक और मिथ्या धारणा या विचार। (इल्यूजन) ८. उक्त के कारण किसी के प्रति मन में उत्पन्न होनेवाला अनुग्रह या दया का भाव। उदाहरण—भलेहि आई अब माया की जै।—जायसी। ९. कपट। छल। फरेब। जैसे—माया-मृग। १॰. धोखा। भ्रम। ११. ऐसी गूढ़ और विलक्षण बात जो जल्दी समझ में न आये अथवा जिसे समझने के लिए बहुत मानसिक परिश्रम करना पड़े। जैसे—माया-वर्ग। १२. इंद्रजाल। जादूगीरी। पद—मायाकार, मायाजीवी। १३. राजनीतिक चाल या दाँव-पेंच। १४. अनुग्रह। कृपा। १५. दया। मेहरबानी। १६. लक्ष्मी देवी। १७. धन-संपत्ति। दौलत। जैसे—उनके पास लाखों रुपयों की माया है। १८. कोई आदरणीय और पूज्य स्त्री। १९. मय दानव की कन्या जो विश्रवा को ब्याही थी। २॰.गौतम बुद्ध की माता मायादेवी। २१. गया नामक नगरी। २२. इंद्रवज्रा नामक वर्णवृत्त का एक उपभेद जो इंद्रवज्रा और उपेन्द्रवज्रा के मेल से बनता है। इसके दूसरे तथा तीसरे चरण में प्रथम वर्ण लघु होता है। २३. एक प्रकार का वर्णवृत्त जिसके प्रत्येक चरण में क्रमशः भगण, तगण, मगण, भगण और एक गुरु वर्ण होता है। स्त्री० [हिं० माता] माता। माँ। जननी। उदाहरण—बिनवै रतनसेन की माया।—जायसी। |
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मायाकार :
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पुं० [सं० माया√कृ+अण्] =मायाजीवी। |
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माया-क्षेत्र :
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पुं० [सं० ष० त०] दक्षिण भारत का एक तीर्थ। |
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मायाचार :
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पुं० [सं० माया√चर् (गति)+अण्] मायावी। |
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मायाजीवी (विन्) :
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पुं० [सं० माया√जीव् (जीना)+णिनि] ऐँद्रजालिक। जादूगर। |
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मायाति :
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स्त्री० [सं० मया√अत् (निरन्तर गमन)+इण्] तांत्रिकों की वह नर-बलि जो अष्टमी या नवमी के दिन दुर्गा को प्रसन्न तथा संतुष्ट करने के उद्देश्य से दी जाती थी। (तांत्रिक) |
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मायादेवी :
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स्त्री० [सं०] गौतम बुद्ध की माता का नाम। |
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माया-धर :
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पुं० [ष० त०] मायाबी। |
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माया-पति :
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पुं० [ष० त०] ईश्वर। परमेश्वर। |
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माया-पात्र :
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पुं० [हिं० माया=धन+सं० पात्र] धनवान्। अमीर। |
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माया-फल :
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पुं० [ष० त०] माजूफल। |
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माया-मोह :
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पुं० [सं० माया√मुह्+णिच्+अच्] शरीर से निकला हुआ एक कल्पित पुरुष जिसने असुरों का दमन किया था। (पुराण०) |
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माया-मंत्र :
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पुं० [ष० त०] सम्मोहन क्रिया। |
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मायावत् :
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पुं० [सं० माया+मतुप्+वत्व] १. मायावी। २. राक्षस। ३. कंस का एक नाम। |
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मायावती :
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स्त्री० [सं० मायावत्+ङीष्] कामदेव की स्त्री, रति। |
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मायावर :
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वि० [ष० त०] माया करनेवाला। उदाहरण—अभिनय करते विश्वमंच पर तुम मायावर।—पंत। पुं० १. ईश्वर। २. ऐंद्रजालिक। जादूगर। |
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माया-वर्ग :
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पुं० [सं० ष० त०] गणित में वह बड़ा वर्ग जिसमें कई छोटे-छोटे वर्ग होते हैं, और उन छोटे-छोटे वर्गों मे से हर एक में कुछ अंक या संख्याएँ किसी ऐसे विशिष्ट क्रम से रखी होती हैं कि हर ओर से अर्थात् खड़े बेड़े तथा तिरछे वर्गों की संख्याओं का जोड़ एक ही आता है। (मैजिक स्क्वेयर)। |
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माया-वाद :
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पुं० [सं० ष० त०] ब्रह्म को सत्य और जगत् को मिथ्या मानने का सिद्धांत। |
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माया-वादी (दिन्) :
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पुं० [सं० माय-वाद+इनि] मायावाद का सिद्धान्त माननेवाला व्यक्ति। वि० मायावाद-सम्बन्धी। |
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मायावान् (वत्) :
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वि० =मायावी। |
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मायाविनी :
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स्त्री० [सं० माया+विनि+ङीप्] छल या कपट करनेवाली स्त्री० ठगिनी। |
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मायावी (विन्) :
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वि० [सं० माया+विनि] [स्त्री० मायाविनी] १. माया-सम्बन्धी। २. माया के रूप मे होनेवाला। ३. जादू आदि से संबंध रखनेवाला। पुं० १. वह जो अनेक प्रकार की मायाएँ रचने अर्थात् तरह-तरह के रहस्यमय कृत्य करके लोगों को चकित करने तथा धोखे में रखने में कुशल या दक्ष हो। ३. बहुत बड़ा कपटी या धोखेबाज। ३. बिड़ाव। बिल्ला। ४. ईश्वर या परमात्मा का एक नाम। ५. मय दानव के पुत्र के नाम। |
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माया-वीज :
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पुं० [सं० ष० त०] ‘ह्री’ नामक तांत्रिक मंत्र। |
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मायाशय :
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वि० [सं० माया+आशय, ष० त०] माया से अभिभूत। उदाहरण—सुरभिति दिशि-दिशि कवि हुआ धन्य मायाशय।—निराला। |
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माया-सीता :
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स्त्री० [सं० मध्य० स०] सीता-हरण से पूर्व सीता द्वारा राम की आज्ञा से धारण किया गया मायावी रूप। |
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माया-सुत :
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पुं० [सं० ष० त०] माया देवी के पुत्र गौतम बुद्ध। |
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मायिक :
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वि० [सं० माया+ठन्-इक] १. माया-संबंधी। २. मायावी। अवास्तिवक पर वास्तविक-सा दिखायी पड़नेवाला। ३. माया करने या दिखानेवाला। मायावी। पुं० माजूफल। |
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मायी (यिन्) :
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पुं० [सं० माया+इनि] १. माया का अधिष्ठाता। परब्रह्म। ईश्वर। २. माया दिखानेवला। मायावी। ३. जादूगर। स्त्री०=माई (माता)। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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मायु :
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पुं० [सं०√मि (फेंकना)+उण्, आत्व, युक्] १. पित्त। २. आवाज। शब्द। ३. वाक्य। |
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मायुक :
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वि० [सं० मायु+कन्] शब्द करनेवाला। |
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मायूर :
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पुं० [सं० मयूर+अञ्, वृद्धि] १. मयूर। मोर। २. वह रथ जिसे मयूर खींचकर ले चलते हों। वि० मयूर संबंधी। मोर का। |
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मायूरक :
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पुं० [सं० मायूर+कन्] मोर पकड़नेवाला बहेलिया। |
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मायूरा :
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स्त्री० [सं० मायूर+टाप्] कटूमर। |
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मायूरी :
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स्त्री० [सं० मायूर+ङीष्] अजमोदा। |
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मायूस :
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वि० [अ०] [भाव० मायूसी] निराश। हताश। |
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मायूसी :
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स्त्री० [अ०] मायूस होने की अवस्था या भाव। निराशा। |
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