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मुँह  : पुं० [सं० मुख] १. (क) प्राणियों में आँखों और नाक के नीचे का वह अंग जो विवर के रूप में होता है और जिसके अन्दर जीभ, तालू, दाँत, स्वर-यंत्र आदि तथा बाहर होंठ होते हैं। काटने-चबाने, खाने-पीने और बोलने या चिल्लाने-चीखनेवाला अंग। (ख) मनुष्यों का यही अंग जो उनके बोलने-चालने या बात-चीत करने और मन के भाव व्यक्त करने में भी सहायक होता है। मुख। विशेष—‘मुँह’ से सम्बन्ध रखनेवाले अधिकतर पद और मुहावरे प्रायः उक्त कार्यों के आधार पर ही बने हैं और उनमें औपचारिक या लाक्षणिक रूप से ही अर्थापदेश हुआ है। (क) खान-पान आदि से सम्बद्ध। मुहावरा—मुँह खराब होना=जबान या मुँह का स्वाद बिगड़ना। मुँह चलना (या चलाना)=खाने-पीने आदि की क्रिया सम्पन्न करना (या कराना)। जैसे—तुम्हारा मुँह तो हर समय चलता ही रहता है। मुँह जहर होना=बहुत कड़ुई चीज खाने के कारण बहुत अधिक कड़ुआ-पन मालूम होना। जैसे—मिर्ची वाली तरकारी खाने से मुँह जहर हो गया। मुंह जूठा करना=बहुत ही अल्प मात्रा में कुछ खा लेना। (किसी चीज में) मुँह डालना या देना=पशुओं आदि का कुछ खाने के लिए उसमें मुँह लगाना। जैसे—इस दूध में बिल्ली ने मुँह डाला था। मुँह-पेट चलना= कै और दस्त की बीमारी होना। जैसे—इतना मत खाओ कि मुँह-पेट चलने लगे। (किसी चीज पर) मुँह मारना=पशुओं आदि का किसी चीज पर मुँह लगाना। (किसी का) मुँह मीठा करना (या कराना)=शुभ या प्रसन्नता की बात होने पर मिठाई खिलाना अथवा इसी उपलक्ष्य में प्रसन्न करने के लिए कुछ धन देना। मुँह में पड़ना=खाया जाना। जैसे—सबेरे से एक दाना मुँह में नहीं पड़ा। (किसी चीज का) मुँह लगना= (क) रुचिकर या स्वादिष्ट होने के कारण किसी खाद्य पदार्थ का अधिक उपयोग में आना। जैसे—चीकू या सपाटू (महोनगी का फल) है तो जंगली फल, पर अब वह बड़े आदमियों के मुँह लग गया है। (ख) रुचिकर होने के कारण प्रिय जान पड़ना। जैसे—अब तो इस कुएँ का पानी तुम्हारे मुँह लग गया है। (किसी चीज में) मुँह लगना=खाद्य पदार्थ के खाये जाने की क्रिया आरम्भ होना। जैसे—अब इन आमों में तुम्हारा मुँह लग गया है, तब वह भला क्यों बचने लगे(कोई चीज) मुँह लगाना=नाम मात्र के लिए या बहुत थोड़ा खाना। (किसी का) मुँह लाल करना=सत्कार के लिए पान आदि खिलाना। मुँह सूखना=गरमी की अधिकता के कारण मुँह में जलन-सी होना। (किसी के) मुँह से दूध की गंध (या बू) आना=बहुत ही छोटी अवस्था का (किशोर या बालक) जान पड़ना या सिद्ध होना। पद—मुँह का कौर या निवाला=किसी को आधिकारिक रूप से या और किसी प्रकार आगे चलकर मिल सकनेवाली चीज। जैसे—तुमने तो उसके मुँह का कौर छीन लिया। आपके मुँह में घी शक्कर= (किसी के मुँह से आशाजनक शुभ बात निकलने पर) ईश्वर करे आपकी बात ठीक निकले या पूरी उतरे। (ख) बोल-चाल आदि से सम्बद्ध। मुहावरा—(किसी के) मुँह आना=किसी के सामने होकर उद्दंडतापूर्वक बातें करना। (किसी के) मुँह की बात छीनना=जो बात कोई कहना चाहता हो, वही बात उससे पहले आप ही कह देना। जैसे—तुमने हमारे मुँह की बात छीन ली। (किसी का) मुँह कीलना=दे० नीचे (‘अपना या किसी का) मुँह बंद करना’। (अपना) मुँह खराब करना= मुँह से गंदी बात निकालना। मुँह खुलना (या खोलना)=बोलने का कार्य आरम्भ होना (या करना)। मुँह खोलकर कहना=दे० नीचे ‘मुँह—फाड़कर कहना’। मुँह चलना या चलाना= मुँह से अविनयपूर्ण या बढ़-बढ़ कर बातें निकलना (या निकालना) जैसे—अब तो बड़े-बूढ़ों के सामने भी तुम्हारा मुँह चलने लगा। (किसी के) मुँह चढ़ना या मुँह पर आना=किसी बड़े के सामने होकर उद्दंतापूर्वक बोलना या उसकी बात का उत्तर देना। (कोई बात) मुँह तक (या मुँह पर) आना=कोई बात कहने को जी चाहना। मुँह थुथाना=अप्रसन्न होने के कारण थूथन की तरह मुँह बनाना। मुँह फुलाना= जैसे—वह भी मुँह थुथाये बैठे रहे। (किसी का) मुँह पकड़ना=किसी को बोलने से रोकना। (किसी के) मुँह पर मोहर लगाना=किसी को बोलने से पूरी तरह रोकना। (कोई बात) मुँह पर लाना=कुछ कहना या बोलना। (किसी के) मुँह पर हाथ रखना=बोलने से रोकना। मुँह फाड़कर कुछ कहना=बहुत विवशता की दशा में लज्जा, संकोच आदि छोड़कर आग्रहपूर्वक प्रार्थना या याचना करना। जैसे—जब तुमने वह पुस्तक मुझे नहीं दी तब मुझे मुँह फाड़कर उसके लिए कहना पड़ा। (अपना या किसी का) मुँह बन्द करना= (क) स्वंय बिलकुल न बोलना। मौन धारण करना। (ख) दूसरे को बोलने से रोकना। (किसी का) मुँह बंद कर देना या बाँधना=तर्क आदि में परास्त करके निरुत्तर कर देना। जैसे—आपने एक ही बात कहकर उनका मुँह बन्द कर दिया। मुँह बाँधकर बैठना=बिलकुल चुप हो जाना। कुछ भी न बोलना। मुँह बिगड़ना=बोल-चाल में गंदी बातें कहने या गाली-गलौज बकने की आदत पड़ना। (किसी का) मुँह भर या भरकर=जितना अभीष्ट हो या मन में आवे उतना। पूरा-पूरा। यथेष्ट। जैसे—किसी को मुँहभर गालियाँ या जबाव देना, किसी से मुँहभर बातें करना, बोलना या कुछ माँगना। (किसी का) मुँह भरना=अभियोग, कलंक आदि की चर्चा या किसी तरह की कार्रवाई करने से रोकने के लिए घूस आदि के रूप में कुछ धन देना। (कोई बात) मुँह में आना=कुछ कहने की इच्छा होना। जैसे—जो मुँह में आया वह कह दिया। मुँह में जबान होना=कुछ कहने या बोलने की योग्यता या सामर्थ्य होना। मुँह में घँघनियाँ भर बैठे रहना=बोलने की आवश्यकता होने पर भी बिलकुल चुप रहना। (कोई बात किसी के) मुँह में पड़ना= मुँह से कहा या बोला जाना। जैसे—जो बात तुम्हारे मुँह में पड़ेगी, वह चार आदमियों को जरूर मालूम हो जायेगी। मुँह में लगाम न होना=बोलने के समय उचित-अनुचित का ध्यान न रहना जो अविनय, अशिष्टता, उद्दंडता आदि का सूचक है। (किसी के) मुँह लगना= (क) किसी को अनुकूल या सहनशील देखकर उसके प्रति या सामने उद्दंडतापूर्वक तथा बहुत बढ़-चढ़कर बातें करना। (ख) कहा-सुनी या मुकाबला करने के लिए सामने आना। (किसी को) मुँह लगाना=किसी की उद्दंडतापूर्वक घृष्टता आदि की बातों की उपेक्षा करके उसे बातचीत में और अधिक उद्दंड या धृष्ट बनाना। उदाहरण—जैसे ही उन मुँह लगाई, तैसे ही ये ढरी।—सूर। मुँह संभालकर बात करना=इस प्रकार संयत भाव से बात करना कि कोई अनुचित या अपमानकारक बात मुँह से न निकलने पाये। मुँह सीना=दे० ऊपर ‘मुँह बंद करना’। मुँह से फूटना=कुछ कहना। बोलना। (उपेक्षासूचक)। मुँह से फूल झड़ना= मुँह से बहुत ही कोमल, प्रिय और सुन्दर बातें निकलना। (किसी के) मुँह से बात छीनना=जिस समय कोई महत्त्व की बात कहने को हो, उस समय स्वयं पहले ही वह बात कह डालना। मुँह से लाल उगलना=बहुत ही बहूमूल्य या मधुर तथा सुंदर बातें कहना। पद—मुँह का कच्चा= (क) व्यक्ति जिसकी बातों का कोई ठिकाना न हो, जिसकी बात का विश्वास न हो। (ख) जो भेद या रहस्य की बात छिपा न सके और बिना समझे-बूझे दूसरों से कह दे। (ग) (घोड़ा) जो लगाम का झटका न सह सकें, या अधिक समय तक मुँह में लगाम न रख सके, या लगाम का संकेत न मानकर मनमाने ढंग से चले। मुँह का कड़ा= (क) व्यक्ति जो प्रायः अप्रिय और कठोर बातें कहता हो। (ख) घोड़ा, जो लगाम का संकेत न माने और प्रायः मनमाने ढंग से चलना चाहे। मुँह फट (देखें स्वतंत्र पद)। (ग) मनोभावों से सम्बद्ध। मुहावरा—मुँह कड़ुआना= (अप्रिय बात होने पर) ऐसी आकृति बनाना मानों मुँह में कोई बहुत कड़ुवी चीज चली गयी हो। उदाहरण—विस्बंभर जगदीस जगत-गुरु, परसत मुख करुनावत।—सूर। मुँह चिढ़ाना= (उपहास या विडम्बना करने के लिए) किसी के कथन, प्रकार आदि की भद्दे और विकृत रूप में नकल करना। (बटेर, मुरगे आदि के संबंध में) मुँह डालना= (दूसरे बटेर, मुरगे आदि से) लड़ने को प्रवृत्त होना। (किसी के सामने) मुँह पडऩा=कुछ कहने का साहस या हिम्मत होना। (किसी के सामने) मुँह पसारना, फैलाना या बाना= (क) अपनी दीनता या हीनता प्रकट करना। (ख) दीन भाव से कुछ माँगना। हीनतापूर्वक याचना करना। (ग) अधिक पाने या लेने की इच्छा प्रकट करना। मुँह बनाना= (अप्रिय बात होने पर) अप्रसन्नता, अरुचि आदि प्रकट करनेवाली आकृति या मुख-भंगी बनाना। मुँह में कीड़े पड़ना=बहुत ही घृणित काम करने या बात कहने पर अभिशाप के रूप में दुर्दशा होना। मुँह में खून (या लहू) लगना= (चीते, भेड़िये आदि हिंसक जंतुओं के अनुकरण पर लाक्षणिक रूप में) अनुचित लाभ या प्राप्ति होने पर उसका चसका लगना। मुँह में तिनका लेना=इस प्रकार दीनता प्रकट करना कि हम अपने सामने गौ के समान कृपापात्र या दयनीय हैं। मुँह में धूल (छार, राख आदि) पड़ना=परम दुर्दशा या दुर्गति होना। उदाहरण—राम नाम तत समुझत नाहीं अंत परै मुख छारा।—कबीर। मुँह में पानी भर आना या मुँह भर आना=(शारीरिक प्रक्रिया के अनुकरण पर औपचारिक रूप से) कोई अच्छी चीज देखने पर उसे पाने के लिए मन ललचाना। जैसे—किताब देखकर तो इनके मुँह में पानी भर आया। मुँह से पानी छूटना या लार टपकना=दे० ऊपर ‘मुँह में पानी भर आना’। २. सिर का वह अगला भाग जिसमें उक्त अंग के अतिरिक्त आँखें, गाल, नाक और माथा भी सम्मिलित है। आकृति। चेहरा। (फेस)। मुहावरा—(किसी का) मुँह आना=आतशक या गरमी (रोग) में मुँह के अन्दर छाले पड़ना और बाहर सूजन होना। मुँह उजला होना=अच्छा काम करने पर प्रतिष्ठा होना, अथवा कीर्ति या यश मिलना। (किसी ओर) मुँह उठना=किसी ओर चलने के लिए प्रवृत्त होना। जैसे—जिधर मुँह उठा, उधर ही चल पड़े। मुँह उतरना=लोग, लज्जा आदि के कारण चेहरे का रंग फीका पड़ना। उदासी आना। (अपना) मुँह काला करना= (क) अपने ऊपर बहुत बड़ा कलंक लेना। (ख) बहुत ही अपमानित या अप्रतिभ होकर खिसक या हट जाना। (किसी का) मुँह काला करना=बहुत ही अपमानित तथा कलंकित करके तथा उपेक्षापूर्वक दूर हटाना। (किसी के साथ) मुँह काला करना= (पुरुष या स्त्री के साथ) अवैध प्रसंग या संभोग करना। मुँह की खाना= (क) अपमानजनक उत्तर या प्रतिफल पाना। (ख) प्रतिद्वंदी या प्रतिपक्षी के सामने बुरी तरह से हारना। (ग) साहसपूर्वक आगे बढ़ने पर धोखा खाना। मुँह की मक्खियाँ तक न उड़ा सकना= बहुत ही अशक्त अथवा आलसी होना। मुँह की लाली रहना=प्रतियोगिता प्रयत्न आदि में बहुत ही थोड़ी आशा या संभावना होने पर भी अंत में यशस्वी या सफल होना। जैसे—दूसरे महायुद्ध में अमेरिका की सहायता से इंग्लैंड के मुँह की लाली रह गई। मुँह के बल गिरना= (क) ठोकर खाकर औँधे गिरना। (ख) उपहासास्पद रूप में, ठोकर या धोखा खाकर विफल होना। (ग) बिना सोचे-समझे किसी ओर अनुरक्त या प्रवृत्त होना। (किसी का) मुँह चाटना=बहुत अधिक खुशामद दुलार या प्यार करना। मुँह चुराना या छिपाना=दबैल या लज्जित होने के कारण सामने न आना। (किसी का) मुँह चूमना=बहुत उत्कृष्ट या प्रशंसनीय समझकर यथेष्ट आदर करना। मुँह चूमकर छोड़ देना=अपने वश या सामर्थ्य के बाहर समझकर आदरपूर्वक उससे अलग या दूर हो जाना। (किसी से) मुँह जोड़कर बातें करना=किसी के मुँह के बहुत पास अथवा मुँह ले जाकर बातें करना। (किसी का) मुँह झुलसना या फूँकना=मृतक के दाह-अनुकरण पर, गाली के रूप में बहुत ही अपमानित करके या परम उपेक्ष्य तुच्छ और त्याज्य समझकर दूर करना। जैसे—अब आप भी उनका मुँह झुलसें। (किसी का) मुँह तक न देखना=परम घृणित या तुच्छ समझकर बिलकुल अलग या बहुत दूर रहना। (किसी का) मुँह ताकना या देखना=अकर्मण्य, असमर्थ चकित या विवश होकर अथवा आशा, प्रतीक्षा आदि में चुपचाप किसी ओर देखते रहना। (अपना) मुँह तो देखो=पहले यह तो देख लो कि जो कुछ तुम पाना या लेना चाहते हो, उसके योग्य तुम हो भी या नहीं। (किसी का) मुँह दिखाना=साहसपूर्वक किसी के सामने आना या होना। (किसी का) मुँह देखकर उठना=शुभाशुभ फल के विचार से, सोकर उठते ही किसी का सामना होना। जैसे—न जाने आज किसका मुँह देखकर उठे थे, कि दिन भर खाने तक को नहीं मिला। (किसी का) मुँह देखकर जीना=परम प्रिय होने के कारण किसी की आशा में या भरोसे पर जीना। जैसे—मैं तो इन बच्चों का मुँह देखकर जीती हूँ। (किसी का) मुँह देखते रह जाना=आश्चर्य भाव से या चकित होकर किसी की ओर देखते रहना। मुँह धो रखो (रखिये या रखें)= (किसी के प्रति व्यंग्यपूर्वक केवल विधि के रूप में) प्राप्ति की कुछ भी आशा न रखो (रखिये या रखें)। जैसे—आप भी पुरस्कार लेने चले हैं मुँह धो रखिये। मुँह पर थूकना=बहुत ही घृणित तथा निंदनीय समझकर तिरस्कार करना। मुँह पर नाक न होना=कुछ भी लज्जा या शरम न होना। (कोई भाव) मुँह पर (या से) बरसना=अधिकता से और प्रत्यक्ष दिखाई देना। जैसे—लुच्चापन ही उसके मुँह पर (या से) बरसता है। मुँह पर मक्खियाँ भिनकना=बहुत ही घिनौनी और दीन दशा में होना। (किसी का) मुँह पाना=किसी को अपने अनुकूल अथवा अपनी ओर अनुरक्त या प्रवृत्त रहने की दशा में देखना। जैसे—जब मालिक का मुँह पाओ तब उनके सामने अपना दुखड़ा रोओ। (अपना मुँह पीटना या पीट लेना=किसी के आचरण व्यवहार आदि पर बहुत ही खिन्न, दुखी और लज्जित होना। (किसी का) मुँह पीटना=अपमानित करते हुए बुरी तरह से परास्त करना। मुँह फुलाना=अप्रसन्न या असंतुष्ट होकर रोष की मुद्रा धारण करना। मुँह फिरना या फिर जाना= (क) मुँह का टेढ़ा या खराब हो जाना। जैसे—एक थप्पड़ दूँगा मुँह फिर जायेगा। (ख) सामना करने से हट जाना। सामने न ठहर पाना। (किसी का) मुँह फेरना=परास्त करके भगाना। बुरी तरह से हराना। जैसे—बहस में यह तो बड़े-बडे का मुँह फेर देते हैं। (किसी से) मुँह फेरना या मोड़ना=उदास और खिन्न होकर अलग या दूर हो जाना। जैसे—उनकी कृतघ्नता देखकर लोगों ने उनसे मुँह फेर लिया। किसी बात पर मुँह बनना या बन जाना=चेहरे से अप्रसन्ता असंतोष आदि के लक्षण प्रकट होना। जैसे—रूपए माँगने पर उनका मुँह बन जाता है। मुँह बनवा रखो=तुम इस योग्य कदापि नहीं हों, अतः सारी आशा छोड़ दो। जैसे—चले हो अपना हिस्सा लेने मुँह बनवा रखो। (अपना) मुँह बनाना= अरुचि विरक्ति आदि का सूचक भाव या मुद्रा धारण करना। (किसी का) मुँह बिगाड़ना=मार-मार कर आकृति विकृत करना या कुरुप बनाना। (किसी बात पर) मुँह बिगाडऩा=अरुचि या असंतोष प्रकट करना। मुँह लटकाना। खिन्नता या दुख के लिए बहुत ही उदास और चप हो जाना। मुँह (या मुँह सिर) लपेटकर पड़ रहना=बहुत ही उदास या दुःखी होकर पड़े रहना। (किसी का) मुँह लाल करना=अच्छी तरह या जोर से थप्पड़ लगाना। मुँह लाल होना= आवेश क्रोध आदि के कारण चेहरे पर खून की रंगत अधिकता से झलकना। मारे क्रोध के चेहरा तमतमाना। मुँह सुजाना=दे० ‘ऊपर’ मुँह फुलाना। मुँह सूखना=निराशा, भय, लज्जा आदि के कारण चेहरे पर कांति या तेज न रह जाना। जैसे—आपकी फटकार सुनते ही उनका मुँह सूख गया। अपना सा मुँह लेकर रह जाना (या लौट आना)=निराशा विफल या हतोत्साहित होने के कारण दीन और लज्जित भाव से चुप रह जाना। (या लौट आना)। इतना सा या जरा सा मुँह निकल आना= (क) चिंता रोग आदि के कारण बहुत दुर्बल हो जाना। (ख) लज्जित होने के कारण श्रीहीन हो जाना। पद—(किसी का) मुँह देखकर= (क) किसी के प्रेम में लगकर। जैसे—पति मर गया है, पर बच्चों का मुँह देखकर धीरज धरो। (ख) किसी का ध्यान रखते हुए। (ग) किसी को प्रसन्न या संतुष्ट करने के लिए। मुँह पर=उपस्थिति में सामने। जैसे—मै तो उनके मुँह पर कहने वाला हूँ। ३. मनुष्य के शरीर का उक्त अंग के विचार से उनकी मनोवृत्ति, शील आदि। पद—मुँह देखे का=केवल सामना होने पर संकोचवश किया जानेवाला (आचरण या व्यवहार) जैसे—मुँह देखे की प्रीति या मुहब्बत। मुँह मुलाहजे का=पारस्परिक परिचय और उसके कारण होनेवाला। (नियम या व्यवहार) जैसे—जहाँ- मुँह मुलाहजे की बात हो, वहाँ ऐसा रूखा व्यवहार नहीं करना चाहिए। मुँह मुलाहजे का आदमी=जिसके साथ घनिष्ठ परिचय होने के कारण शीलपूर्ण व्यवहार करना पड़ता हो। मुहावरा—(किसी का) मुँह करना=शील या संकोचवश किसी का ध्यान रखना। जैसे—सच कह दो, किसी का मुँह मत करो। मुँह देखी कहना=किसी के सामने रहने पर उसे प्रसन्न करने के लिए उसके अनुकूल बातें कहना। जैसे—न्याय की बात कहना, मुँह देखी मत कहना। (किसी का) मुँह छूना या परसना=केवल ऊपरी मन से या दिखाने भर को किसी के साथ कोई अच्छा व्यवहार करना। जैसे—मुँह छूने के लिए वे मुझे भी निमंत्रण देने आये थे। उदाहरण—ह्याँ आये मुख (मुँह) परसन मेरौ हृदय टरति नहिं प्यारी।— सूर। (किसी के) मुँह पर जाना=किसी की प्रतिष्ठा व्यवहार शील संकोच आदि का ध्यान रखना या विचार करना। जैसे—तुम उनके मुँह मत जाओ अपना काम करो। किसी का मुँह पाना=किसी को अपनी ओर अनुरक्त या प्रवृत्त देखना। जैसे—जब उनका मुँह पाया, तब मैने भी सब बातें कह सुनाई। उदाहरण—मुँह पावति तब ही लौं आवति, औरे लावति मोर।—सूर। (किसी का) मुँह रखना=शील, संकोच आदि के कारण किसी के महत्त्व, व्यवहार आदि का ध्यान रखना। जैसे—हमें तो चार आदमियों का मुँह रखना ही पड़ता है। ४. उक्त के आधार पर किसी प्रकार का पक्षपात या तरफदारी। जैसे—सच सच कह दो, किसी का मुँह मत रखो। ५. मनुष्य के शरीर का उक्त अंग के विचार से उसकी योग्यता, सामर्थ्य, साहस आदि। जैसे—(क) अपना मुँह तो देखों (अर्थात् अपनी योग्यता या शक्ति तो देखो) (ख) यहाँ भला किसका मुँह है जो तुम्हारे सामने आवे। मुहावरा—(किसी काम या बात के लिए) मुँह पड़ना=कुछ करने, कहने आदि का साहस या हिम्मत होना। जैसे—उनके सामने बोलने का किसी का मुँह ही नहीं पड़ता। (किसी का) मुँह मारना= (क) किसी को दबाने, नीचा दिखाने या वशवर्ती करने के लिए कोई उत्कृष्ट कार्य कर दिखाना। (ख) ऐसी उत्कष्ट स्थिति में होना कि सहज में किसी को परास्त या लज्जित करके हीन सिद्ध किया जा सके। जैसे—यह कपड़ा सूती होने पर भी रेशमी का मुँह मारता है। ६. पारिश्रमिक प्रतिफल आदि के रूप में होनेवाली माँग। जैसे—बड़े वकीलों का मुँह भी बड़ा होता है। (अर्थात् वे अधिक पारिश्रमिक या मेहनताना माँगते हैं)। मुहावरा—(किसी का) मुँह भरना=घूस, पारिश्रमिक आदि के रूप में धन देना। ७. किसी प्राकृतिक या कृत्रिम रचना में उक्त अंग से मिलता-जुलता कोई ऐसा छेद या विवर जिसमें होकर चीजें उसमें जाती या उसमें से निकलती है। जैसे—गुफा, घड़े, थैली या लोटे का मुँह। पद—मुँह भर के=(क) जितना अन्दर समा सके, उतना डाल या रखकर। (ख) भर-पूर। यथेष्ट। (ग) अच्छी या पूरी तरह से। ८. उक्त प्रकार के मार्ग का बिलकुल ऊपरी किनारा या सिरा। जैसे—तालाब मुँह तक भर गया है। ९. किसी चीज के ऊपर का ऐसा छोटा छेद जिसमें से कुछ निकलता हो। जैसे—फुंसी फोड़े या नली का मुँह। मुहावरा—(किसी चीज का) मुँह खोलना=ऊपरी मार्ग या विवर इस प्रकार चौड़ा करना कि अन्दर की चीज बाहर निकल सके। जैसे—थैली का मुँह खोलना, फोड़े का मुँह खोलना। १॰. किसी चीज का आगेवाला पार्श्व ऊपर या सामने का भाग अथवा रुख जैसे—मकान का मुँह उत्तर की ओर है। ११. किसी बंद चीज का वह अंग या पार्श्व जिधर से वह खुलती हो या खोली जा सकती हो। १२. किसी चीज का वह अगला भाग जिससे उसका प्रधान कार्य होता हो। जैसे—तीन मुँहवाला तीर या भाला। चार मुँहवाला दीया आदि।
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मुँह अँधेरे  : क्रि० वि० [हिं० मुँह+अँधेरा] इतने तड़के या सबेरे जब अँधेरे के कारण किसी का मुँह भी न दिखायी पड़ता हो। जैसे—वह मुँह-अँधेरे ही उठकर घर से निकल पड़ा।
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मुँह-अखरी  : वि० [हिं० मुँह+अक्षर] जबानी। शाब्दिक।
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मुँह-उजाले  : क्रि० वि० =मुँह-उट्ठे।
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मुँह-उट्ठे  : क्रि० वि० [हिं० मुँह+उठना] ठीक उस समय जब कोई आदमी सबेरे के समय सोकर उठा ही हो।
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मुँह-काला  : पुं० [हिं० मुँह+काला] १. कोई परम निन्दनीय काम करने पर होनेवाली बहुत अधिक अप्रतिष्ठा और बदनामी। २. पर-पुरुष या पर-स्त्री के साथ किया जानेवाला संभोग। ३. एक प्रकार की गाली। जैसे—जा तेरा मुँह काला।
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मुँहचंग  : पु०=मुरचंग।
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मुँह-चटौअल  : स्त्री० [हिं० मुँह+चाटना+औवल (प्रत्यय)] १. चुंबन। चूमाचाटी। २. बक-बक। बकवाद।
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मुँह-चुथौवल  : स्त्री० [हिं० मुँह+चोंथना] १. व्यर्थ की बकवाद। २. लड़ाई-झगड़े में एक-दूसरे को (विशेषतः मुँह पर) मारने, काटने, नोचने आदि की क्रिया।
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मुँह-चोर  : पुं० [हिं० मुँह+चोर] लोगों के सामने जाने में मुँह चुराने अर्थात् संकोच करनेवाला।
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मुंह-छुआई  : स्त्री० [हिं० मुँह+छूना+आई (प्रत्यय)] मुँह छूने अर्थात् ऊपरी मन से किसी से कुछ कहने की क्रिया या भाव।
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मुँह-छुट  : वि० [हिं० मुँह+छूटना] जो कुछ मुँह में आवे, व सब बक जानेवाला। सबके सामने उद्दंतापूर्वक बातें करनेवाला।
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मुंह-जबानी  : अव्य० [हिं०] मुँह और जबान के द्वारा। मौखिक रूप से। वि० जो जबानी याद हो। कंठस्थ।
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मुँह-जला  : वि० [हिं० मुँह+जलना] [हिं० मुँहजली] १. जिसका मुँह जले हुए के समान हो, अथवा जला दिये जाने के योग्य हो। (गाली)। २. अशु तथा बुरी बातें कहनेवाला।
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मुंह-जोर  : वि० [हिं० मुँह+फा० जोर] [भाव० मुँहजोरी] १. धृष्टतापूर्वक तथा बिना समझे-बूझे जो मुँह में आवे, वह कह देनेवाला। किसी के मुँह पर बिना उसका लिहाज किये उल्टी सीधी बातें कहनेवाला। २. बकवादी। ३. मनमानी करनेवाली। उद्दण्ड। जैसे—मुँह जोर घोड़ा।
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मुँह-जोरी  : स्त्री० [हिं० मुँहजोर+ई (प्रत्यय)] १. मुँहजोर होने की अवस्था या भाव। २. धृष्टता।
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मुँह-झौंसा  : वि० [स्त्री, मुँह-झौसी] =मुँह जला।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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मुँह-तोड़  : वि० [हिं०] (उत्तर या प्रत्याघात) जो विरोधी को पूरी तरह से परास्त करते हुए नीचे दिखानेवाला हो। जैसे—किसी को मुँह-तोड़ जबाव देना।
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मुँह-दिखरावनी  : स्त्री०=मुँह-दिखाई।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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मुँह-दिखलाई  : स्त्री०=मुँह-देखनी।
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मुंह-दिखाई  : स्त्री०=मुँह-देखनी।
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मुँह-देखनी  : स्त्री० [हिं० मुँह+दिखाना] १. मुँह दिखाने की क्रिया या भाव। २. विवाह के उपरान्त की एक प्रथा जिसमें वर-पक्ष की स्त्रियाँ नव-वधू का घूँघट हटाकर उसका मुँह देखती और उसे कुछ धन देती है। मुँह-दिखाई नामक रसम। ३. वह धन या पदार्थ जो नव-वधू को उक्त अवसर पर मुँह दिखाने के बदले में मिलता है।
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मुँह-देखा  : वि० [हिं० मुँह+देखना] [स्त्री० मुँह-देखी] १. प्रत्यक्ष रूप से या स्वयं देखा हुआ। २. (ऐसा काम) जो किसी का सामना होने पर केवल औपचारिक रूप से उसका लिहाज करते हुए या संकोच वश तथा ऊपरी मन से किया जाता हो। जैसे—मुँह देखा प्यार, मुँह-देखी बातें। ३. आज्ञा की प्रतिक्षा में किसी का मुँह देखता रहने वाला।
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मुँहनाल  : स्त्री० [हिं० मुँह+नाल=नली] १. वह नली जिसे मुँह में लगाकर हुक्के का धुआँ खींचते हैं। २. धातु का वह टुकड़ा जो म्यान के सिरे पर लगा होता है।
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मुँह-पड़ा  : पुं० [हिं० मुँह+पड़ना] प्रसिद्ध। मशहूर। (क्व०)।
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मुँह-पातर  : वि० =मुँहफट।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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मुँह-फट  : वि० [हिं० मुँह+फटना] जो उचित अनुचित का ध्यान रखे बिना भद्दी बातें कहने में भी संकोच न करता हो। बद-जबान।
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मुँह-बंद  : वि० [हिं०] १. (पदार्थ) जिसका मुँह बंद हो और अभी तक खोला न गया हो। जैसे—मुँह बंद बोतल। २. (फूल) जो अभी खिला न हो। जैसे—मुँह बंद कली। ३. (युवती या स्त्री) जिसका पुरुष से समागमन न हुआ हो। अक्षत-योनि। कुमारी। (बाजारू)।
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मुँहबंदी  : स्त्री० [हिं० मुँहबंद+ई (प्रत्यय)] मुँह बंद करने या होने की अवस्था, क्रिया या भाव।
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मुँह-बँधा  : पुं० [हिं० मुँह+बँधना] जैन साधु जो प्रायः मुँह पर कपड़ा बाँधे रहते हैं। वि० जिसका मुँह बँधा हो।
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मुँह-बोला  : वि० [हिं० मुँह+बोलना] [स्त्री० मुँह-बोली] जिसके साथ केवल कहकर या वचन देकर कोई सम्बन्ध स्थापित किया गया हो। जो जन्मतः या वस्तुतः न होने पर भी मुँह से कहकर मान लिया या बना लिया गया हो। जैसे—मुँह बोला भाई, मुँह-बोली बहन।
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मुँह-भराई  : स्त्री० [हिं० मुँह+भरना] १. मुँह भरने की क्रिया या भाव। २. वह धन जो किसी को कोई आपत्ति-जनक बात कहने अथवा बाधक होने से रोकने के लिए रिश्वत आदि के रूप में दिया जाय।
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मुँह-माँगा  : वि० [हिं०] [स्त्री० मुँहमाँगी] जो मुँह से कहकर माँगा गया हो। जैसे—मुँह-माँगा, दाम लेना, मुँह-माँगी मुराद पाना।
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मुँह-माँगे  : अव्य० [हिं० मुँहमाँगा] मुँह से माँगने पर। कहकर माँगने पर।
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मुँह-मुलाहजा  : पुं० [हिं० मुँह+अ० मुलाहिजः] ऐसी स्थिति जिसमें किसी आत्मीय या परिचित व्यक्ति के साथ होनेवाले पारस्परिक सम्बन्ध का शील-संकोचपूर्वक ध्यान रखा जाता हो।
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मुँह-लगा  : वि० [हिं० मुँह+लगना] [स्त्री० मुँहलगी] जो अनाधिकारी या अपात्र हो पर प्रायः किसी बड़े के पास या साथ रहने के कारण बढ़-चढ़ कर बोलने का अभ्यस्त हो गया हो। सिर-चढ़ा।
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मुँह-सुघाई  : स्त्री० [हिं० मुँह+सूँघना] १. किसी से मिल कर इतनी थोड़ी बात-चीत करना कि मानों उसका मुँह सूँघकर छोड़ दिया हो। २. उक्त प्रकार की क्षणिक बात-चीत के बदले में दिया या लिया जानेवाला धन। उदाहरण—फिर जमींदार की हर-हूकुमत जरिबाना-तलबाना, पटवारी-मुन्शी की घूस-रिसवत थानेदार को माँस-मलीदाकचहरी के वकील-मुख्तार को मुँह-सुँधाई सैकड़ों तरह के दूसरे खर्चे किये बिना तुम्हारी जान नहीं बचेगी।—राहुल सांकृत्यायन।
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मुँहा  : वि० [हिं० मुँह] किसी प्रकार के मुँह से युक्त। मुँहवाला। जैसे—दो मुँहा शेर मुँहा आदि।
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मुँहाचाही  : स्त्री०=मुँह-चीही।
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मुँहा-चीही  : स्त्री० [हिं० मुँह+चाहना] १. आपस में एक एक-दूसरे को देखना। देखा-देखी। २. आपस में होनेवाली कहा-सुनी या तकरार।
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मुँहा-मुँह  : अव्य० [हिं० मुँह+मुँह] मुँह या ऊपरी भाग तक। जैसे—तालाब मुँहा-मुंह भरा है।
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मुँहासा  : पुं० [हिं० मुँह+आसा (प्रत्यय)] मुँह पर के वे दाने जो प्रायः युवावस्था में निकलते हैं।
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