शब्द का अर्थ
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मैत्र :
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पुं० [सं० मित्र+अण्] १. मित्र होने की अवस्था या भाव। मित्रता। २. अनुराधा नक्षत्र। ३. मर्त्य लोक। ४. ब्राह्मण। ५. मलद्वार। गुदा। ६. वेद की एक शाखा। ७. एक प्राचीन वर्णसंकर जाति। ८. एक मुहूर्त (ज्योतिष)। वि० १. मित्र-संबंधी। २. मित्रों में होनेवाला। मैत्रक |
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मैत्रीभ :
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पुं० [सं० मध्य० स०] अनुराधा नक्षत्र। |
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मैत्रायण :
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पुं० [सं० मित्र+फक्-आयन] १. गृह्य सूत्र के प्रणेता एक प्राचीन ऋषि। २. मैत्र नाम की वैदिक शाखा। |
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मैत्रावरुण, मैत्रावरुणि :
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पुं० [सं० मित्र-वरुण, द्व० स० वृद्धि+अण्, मैत्रावरुण+इच्] १. अगस्त्य और वसिष्ठ (इन दोनों की उत्पत्ति मित्र और वरुण दोनों के संयुक्त वीर्य से मानी गयी है।) २. यज्ञ के १६ ऋत्विजों में से एक। |
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मैत्री :
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स्त्री० [सं० मित्र+ष्यञ्+ङीष्, य-लोप] १. दो व्यक्तियों के बीच का मित्र-भाव। मित्रता। दोस्ती। २. अपना कोई उद्देश्य सिद्ध करने के लिए किसी के साथ बढ़ाया या स्थापित किया जानेवाला घनिष्ठ मेल-जोल। संश्रय (एलायन्स) ३. दो या अधिक चीजों के एक ही तरह के होने की अवस्था या भाव समानता। जैसे—वर्ण-मैत्री। ४. अनुराधा नक्षत्र। |
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मैत्रेय :
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पुं० [सं० मैत्र+ढञ्-एय] १. एक बुद्ध। २. [मित्रयु+ढञ्-एय, यु-लोप] सूर्य। ३. एक ऋषि। ४. एक वर्ण संकर जाति। |
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मैत्रेयिका :
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स्त्री० [सं० मैत्रेय+कन+टाप्, इत्व] मित्रों या सहयोगियों में होनेवाला संघर्ष। |
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मैत्रेयी :
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स्त्री० [सं० मैत्रेय+ङीष्] १. याज्ञवल्क्य की स्त्री का नाम। जो ब्रह्मवादिनी और बड़ी पंडिता थी। २. अहल्ला का एक नाम। |
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मैत्र्य :
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पुं० [सं० मित्र+ष्यञ्] मित्रता। दोस्ती। |
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