शब्द का अर्थ
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लटंका :
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पुं० [देश] एक प्रकार का बांस जो बरमा से आता है। |
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समानार्थी शब्द-
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लट :
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स्त्री० [सं० लट्ट, या लट्वा] १. मुँह या गालों पर लटकता हुआ चिकने तथा परस्पर चिपके हुए सिर के बालों का गुच्छा। अलका। जुल्फ। मुहावरा—लट छटकाना=स्त्रियों के सिर के बाल खोलकर इधर-उधर गिरा या फैला देना। (किसी के नीचे) लट दबना=किसी की अधीनता या दबाव में होना। २. सिर के उलझे और एक गुथे हुए बाल। स्त्री० [हिं० लटना] लटने की क्रिया या भाव। स्त्री० =लपट (लौ)। |
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लटक :
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स्त्री० [हिं० लटकना] १. लटकने की क्रिया या भाव। नीचे की ओर गिरता-सा रहने का भाव। झुकाव। २. चलने, फिरने आदि में शरीर के अंगों में पड़नेवाली लचक जो स्त्रियों में प्रायः सुन्दर जान पड़ती है। ३. अंगों की मनोहर चेष्टा। ४. बात-चीत करने या गाने आदि में दिखाई देनेवाली कोमल भावी भंगी। ५. मन की आकस्मिक उद्वेग। जैसे—बैठे बैठे तुम्हें यह क्या लटक सूझी। ६. ढालू जमीन। ढाल (पालकी के कहार)। वि० (गति) जिसमें लटक हो। उदाहरण—साँवलिया की लटक चाल मोरे मन में बस गई रे।—गीत। |
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लटकन :
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पुं० [हिं० लटकना] १. लटकने की क्रिया या भाव। नीचे की ओर झूलते रहने का भाव। २. लटकती हुई कोई वस्तु। ३. नाक में पहनने का एक प्रकार का गहना जो झूलता रहता है। ४. रत्नों का वह गुच्छा जो कलँगी में लगाते थे। ५. मालखंभ की एक कसरत जिसमें दोनों पैरों के अँगूठे में बेत फँसाकर पिंडली को लपेटते हुए नीचे की ओर लटकते हैं। ६. कोई ऐसा फालतू पदार्थ या व्यक्ति जो किसी महत्वपूर्ण पदार्थ या व्यक्ति के साथ यों ही लगा रहता है या लगा फिरता हो। २. अंडकोश (बाजारू)। पुं० १. एक प्रकार का पेड़ जिसमें लाल रंग के फूल लगते हैं २. उक्त रगं के फूलों से सुगंधित बीज जिन्हें पानी में पीसने से गेरुआ रंग निकलता है। इस रँग से प्रायः कपड़े रँगते हैं। |
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लटकना :
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अ० [सं० लडन] १. किसी पदार्थ या व्यक्ति का ऐसी स्थिति में आना या होना कि उसका एक सिरा या अंग किसी ऊँचे आधार में अटका या फँसा हुआ हो और शेष भाग अधर में नीचे की ओर हो। २. किसी सीधी, खड़ी टिकी या बनी हुई वस्तु का कोई भाग किसी ओर थोड़ा झुकना। जैसे—(क) बरामदा आगे की ओर कुछ लटक गया है। (ख) बेहोशी में उसका सिर पीछे की ओर लटक गया था। पद—लटक या लटकती चाल=ऐसी चाल जिसमें मस्ती, हर्ष आदि के कारण आदमी झूमता हुआ चलता हो। ३. किसी काम, बात या व्यक्ति का ऐसी स्थिति में आना, रहना या होना कि उसके संबंध में आवश्यक और उचित निर्णय न हो अथवा अभीष्ट सिद्ध न हो। असमंजस या दुविधा की स्थिति में अपेक्षया अधिक समय तक पड़ा या बना रहना। जैसे—(क) अदालतों में मुकदमे बरसों लटके रहते हैं। (ख) नौकरी की दरख्वास्त देने पर उसे महीनों लटके रहना पड़ा। संयो० क्रि०—रहना। ४. परीक्षा में अनुत्तीर्ण होना और इस प्रकार पहलेवाली कक्षा में ही रुका रहना। संयो० क्रि०—रहना। वि० [स्त्री० लटकनी] लटकवाली मनोहर अंग-भंगी से युक्त। उदाहरण—बंझ जाइ खग ज्यों प्रिय छबि लटकनी लस।—सूर। |
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लटकवाना :
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स० [हिं० लटकाना का प्रे०] लटकाने का काम दूसरे से कराना। |
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लटका :
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पुं० [हिं० लटक] १. ऐसी चाल जिसमें मनोहर लटक हो। २. बात-चीत आदि में दिखाई देनेवाली जनानी चेष्टा या हाव-भाव और स्वरों का उतार-चढ़ाव। जैसे—उन्होंने बड़े लटके से कहा कि हम नहीं जायँगे। ३. उपचार, चिकित्सा, तंत्र-मंत्र आदि के क्षेत्र में कोई ऐसी छोटी प्रक्रिया या विधि जिसमें जल्दी और सहज में उद्देश्य सिद्ध होता हो। जैसे—उन्हें वैद्यक के ऐसे सैकड़ों लटके मालूम हैं। ४. एक प्रकार का चलता गाना। ५. अंडकोश। (बाजारू)। |
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लटकाना :
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स० [हिं० लटकना का स०] १. किसी को लटकाने में प्रवृत्त करना। ऐसा काम करना कि कोई या कुछ लटक। जैसे—कपड़ा या हाथ लटकाना। संयो० क्रि० देना।—रखना।—लना। २. किसी खड़ी वस्तु को किसी ओर झुकाना। नत करना। ३. कोई काम पूरा न करके अनिश्चित दशा में अधिक समय तक पड़ा रहने देना। ४. किसी व्यक्ति को कोई आशा में रखकर उसका उद्देश्य या कार्य पूरा न करना। असमंजस या दुविधा की स्थिति में रखना। संयो० क्रि०—रखना। |
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लटकीला :
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वि० [हिं० लटक+ईला (प्रत्यय)] [स्त्री० लटकीली] लटकता और लहराता हुआ। जैसे—लटकीली चाल। |
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लटकू :
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पुं० [देश] एक प्रकार का पेड़ जिसकी छाल से रंग निकलता है। |
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लटकौआँ :
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वि० [हिं० लटकाना] जो लटकाया जाता हो। जैसे—लटकौआँ फानूस। |
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लट-जीरा :
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पुं० [हिं० लट+जीरा] १. अगहन में होनेवाला एक प्रकार का धान और उसका चावल। २. अपामार्ग। चिचड़ा। |
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लटना :
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अ० [सं० लड़=हिलना, डोलना] १. परिश्रम, रोग आदि के कारण बहुत ही शिथिल, दुर्बल और प्रायः असमर्थ सा होना। अशक्त और असमर्थ होना। संयो० क्रि०—जाना। २. बेचैन या विकल होना। अ० [सं० लल, लड=ललचाना] १. लेने के लिए लपकना लालायित होना। २. अनुरागपूर्वक प्रवृत्त होना। ३. किसी काम या बात में लिप्त या लीन होना। |
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लट-पट :
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स्त्री० [हिं० लटपटाना] १. लटपटाने की अवस्था या भाव। २. अनुचित या दूषित उद्देश्य की सिद्धि के लिए होनेवाला नया-नया मेल-जोल या संबंध। वि०=लटपटा। |
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लट-पटा :
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वि० [हिं० लटपटाना] [स्त्री० लटपटी] १. जोश, मस्ती, यौवन, लापरवाही आदि के कारण इधर-उधर गिरता-पड़ता या लड़खड़ाता हुआ। ठीक और सीधे तरह से न चलता हुआ। जैसे—लटपटी चाल। २. जो ठीक वँधा न रहने के कारण ढीला होकर नीचे की ओर खिसक आया हो। जो चुस्त और दुरुस्त न हो। ढीला-ढाला। ३. जो ठीक तरह से सँवार या सजाकर नहीं बल्कि अल्हड़पन से बनाया लगाया गया हो। जैसे—लटपटी पाग (पगड़ी)। ४. (कथन, बात या शब्द) जिसका ठीक, पूरा और स्पष्ट उच्चारण न हुआ हो। ५. अस्तव्यस्त। अव्यस्थित। अंड-बंड। ६. थकावट, दुर्बलता आदि के कारण बहुत ही शिथिल और हारा हुआ। ७. रसेदार खाद्य पदार्थ जो न बहुत गाढ़ा हो और न बहुत पतला। जैसे—लटपटी, तरकारी, लटपटा हलुआ। ८. गींजा और मसला हुआ। मला-दला। |
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लटपटान :
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स्त्री० [हिं० लटपटाना] १. लटपटाने की क्रिया या भाव। लड़खड़ाहट। २. आकर्षक और मनोहर गति या चाल। |
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लटपटाना :
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अ० [सं० लड=हिलना-डोलना+पत्=गिरना] १. दुर्बलता, मन्दता लापरवाही आदि के कारण ठीक और सीधे ढंग से न चलकर इधर-उधर झुके पड़ना। लड़खडाना। उदाहरण—उठे पर पैर उनके लटपटाये।—मैथिलीशरण। संयो० क्रि०—जाना। २. अपने स्थान पर दृढ़तापूर्वक जमे, टिके या ठहरे न रहकर इधर-उधर होते रहना। विचलित होना। डिगना। ३. सहसा चूक या भूल जाने के कारण इधर-उधर हो जाना। लड़खडाना जैसे—बोलने में जीभ या चलने में पैर लटपटाना। ४. अपने आप को सँभाल न सकने के कारण किसी पर विवश भाव से आसक्त या मोहित होना। ५. किसी काम या बात में लिप्त या लीन होना। |
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लटा :
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वि० [सं० लट्ट] [स्त्री० लटी] १. लोलुप। लंपट। २. गिरा हुआ। पतित। ३. लंपट और व्यभिचारी। ४. बदमाश। लुच्चा। ५. तुच्छ। हीन। ६. नीच। हेय। ७. खराब। बुरा। ८. बहुत दुबला-पतला या कमजोर। |
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लटा-पटा :
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पुं० [हिं० लटपट] १. व्यर्थ की चीज। २. व्यर्थ की बातें। ३. आडंबर। ढोंग। उदाहरण—बाहर का अनावश्यक लटा-पटा मुझसे सहा नहीं जाता—अज्ञेय। वि० बहुत ही क्षीण, या हीन। पद—लटे पटे दिन=कठिनाई या कष्ट के दिन। |
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लटा-पटी :
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स्त्री० [हिं० लटपटाना] १. लटपटाने की क्रिया या भाव। २. लड़ाई-झगड़ा। ३. गुत्थम-गुत्था। भिड़ंत। |
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लटा-पोट :
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वि० =लोट-पोट। |
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लटिया :
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स्त्री० [हिं० लट] सूत आदि का छोटा लच्छा लच्छी। मुहावरा—लटिया करना=सूत की आँटी बनाना। |
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लटियासन :
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पुं० [हिं० लट+सन्] पटसन। |
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लटी :
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स्त्री० [हिं० लटा=बुरा] १. बुरी बात। २. झूठी या व्यर्थ की बात। गप। मुहावरा—लटी मारना=गप्प हाँकना। ३. भक्तिन। ४. वेश्या। |
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लटुआ :
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पुं० =लट्टू। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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लटुक :
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पुं० =लकुट (वृक्ष और फूल)। |
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लटुरी :
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स्त्री० दे० ‘लटूरी’। |
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लटू :
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पुं० =लट्टू। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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लटूरा :
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पुं० [हिं० लट्टू] कुप्पा। पुं० [हिं० लट] [स्त्री० लटूरी] बड़े-बड़े बालों की उलझी हुई लट। जटा। वि० जिसके सिर पर बड़े-बड़े बालों की लट हो। जटावाला। जैसे—लटूरा जोगी। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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लटूरिया :
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वि० [हिं० लट] लटों अर्थात् लम्बे बालोंवाला। पुं० भूत-प्रेत या हौआ (बच्चों को डराने के लिए)। वि० लटूरा। |
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लटूरी :
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स्त्री० [हिं० लट] विशेषतः छोटे बच्चों के बालों की लट। |
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लटोरा :
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पुं० [देश] एक प्रकार का पक्षी जिसकी गर्दन और मुँह काला। डैने नीलापन लिए हुए भूरे और दुम काली होती है। इसके कई भेद होते हैं। जैसे—मटिया, कजला, खाखला। पुं० =लसोड़ा। |
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लट्ट-पट्ट :
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वि० =लट-पट। वि०=लथ-पथ। |
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लट्टू :
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पुं० [देश] १. लकड़ी का एक गोल खिलौना जिसके मध्य भाग में कील जड़ी रहती है तथा जो चलाये जाने पर उक्त कील पर घूमने या चक्कर लगाने लगता है। २. कोई ऐसा खिलौना जो इस प्रकार घूमता रहता हो। ३. लाक्षणिक अर्थ में, व्यक्ति जिसमें किसी के प्रति उत्कट प्रेम हो तथा जो उसके कारण बावला हो रहा हो। मुहावरा—(किसी पर) लट्टू होना=किसी पर पूरी तरह से मोहित होना। ४. शीशे का वह गोलाकार उपकरण जिसके अन्दर बिजली के द्वारा प्रकाश उत्पन्न होता है। बल्ब। |
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लट्टू दार :
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वि० [हिं० लट्टू+फा० दार] जिस पर या जिसमें लट्टू के आकार की गोल रचना बनी या लगी हो। जैसे—लट्टूदार छड़ी, लट्टूदार पगड़ी (एक विशेष प्रकार की पगड़ी जिसके अगले ऊपर भाग का कपड़ा लट्टू की तरह लपेटा हुआ रहता है।) |
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लट्ठ :
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पुं० [सं० यष्टि, प्रा० लट्ठि] बड़ी लाठी। मोटा लम्बा डंडा। पद—लट्ठबाज, लट्ठमार। मुहावरा—(किसी के पीछे) लट्ठ लिए फिरना= (क) किसी के साथ इतना वैर या शत्रुता होना कि मिलते ही उसे घायल करके मार डालने को जी चाहता हो। (ख) लाक्षणिक रूप में पूरी तरह से किसी के विपक्ष में या विरुद्ध रहना। जैसे—अक्ल के पीछे लट्ठ लिए फिरना, अर्थात् इतना निर्बुद्धि होना कि मानों बुद्धिमता से वैर ठान रखा हो। वि० बहुत बड़ा निर्बुद्धि या मूर्ख। जैसे—यह नौकर तो निरा लट्ठ है। |
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लट्ठबाज :
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वि० [हिं० लट्ठ+फा० बाज़] [भाव० लट्ठबाजी] लाठी से लड़नेवाला। लठैत। |
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लट्ठबाज़ी :
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स्त्री० [हिं० लट्ठ+फा० बाज़ी] लाठियों से होनेवाली मार-पीट। |
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लट्ठमार :
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वि० [हिं० लट्ठ+मारना] १. (व्यक्ति) जो बहुत बड़ा उजड्ड और उद्दंड हो। २. (कथन या बात) जिसमें नम्रता शालीनता, सौजन्य आदि का पूर्ण अभाव हो। |
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लट्ठर :
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वि० [हिं० लट्ठ] १. कठोर। कड़ा। २. कर्कश। |
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लट्ठा :
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पुं० [हिं० लट्ठ] १. लकड़ी का बहुत बड़ा मोटा और लंबा टुकड़ा। बल्ला। शहतीर। जैसे—तालाब के बीच में लगा हुआ लट्ठा, सीमा का सूचक लट्ठा। २. धरन। ३. वह ५॥ फुट लंबा बाँस जिससे जमीन नापी जाती है। पद—लट्ठाबंदी (दे०) ४. लंकलाट (कपड़ा) (पश्चिम)। |
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लट्ठा-बंदी :
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स्त्री० [हिं० लट्ठा+फा० बंदी] लट्ठे अर्थात् ५॥ फुट लंबे बाँस के द्वारा जमीन की जानेवाली नाप-जोख। |
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लट्व :
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पुं० [सं०√लट् (बालभाव)+क्वन्०] १. घोड़ा। २. एक प्रकार का राग (संगीत)। |
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लट्वा :
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पुं० [सं० लट्व+टाप्] १. बालों की लट्। २. एक प्रकार का करंज। ३. कुसुभ। ४. गौरा पक्षी। ५. एक प्रकार का बाजा। ६. चित्र बनाने की कूँची। तूलिका। ७. पुश्चली। व्यभिचारिणी। |
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