शब्द का अर्थ
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वायु :
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स्त्री०=वायु। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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वाय :
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पुं० [सं०√वे (बुनना)+घञ्] १. बुनना। वपन। २. साधन। अव्य० [फा०] दुःख, शोक आदि का सूचक अव्यय। जैसे–वायकिस्मत। |
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वायक :
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वि० [सं०] बुननेवाला। पुं० जुलाहा। तन्तुवाय। |
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वायदंड :
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पुं० [सं० ष० त०] १. करघे का हत्था। २. करघे की ढरकी। |
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वायदा :
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पुं० [फा० वाइदः] १. वादा। वचन। २. सट्टेवालों की परिभाषा में, भविष्यकाल के सम्बन्ध में किया जानेवाला सौदा। जैसे–दालों के वायदे के बाजारों में इस सप्ताह भी अच्छी तेजी-मंदी आई। |
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वायन :
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पुं० [सं०√वे (बुनना)+ल्युट-अन] १. मंगल अवसरों, उत्सवों आदि के समय बनाई जानेवाली मिठाई। २. उक्त का वह अंश जो रिश्ते-नाते में भेजा जाय। ३. सौगात। |
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वायव :
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वि० [सं०] १. वायु संबंधी। वायु का। २. वायु के द्वारा या उसकी सहायता से होनेवाला। (एरियल)। ३. जिसका कुछ भी आधार न हो। हवाई। जैसे–वायव स्वप्न। |
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वायव-भट्ठी :
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स्त्री० दे० ‘पवन भट्ठी’। |
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वायवी :
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वि० [वायु+अण्+ङीष्] वायु के समान हृदय के भीतर ही भीतर रहनेवाला। प्रकाश में न आनेवाला। स्त्री० उत्तर पश्चिमी कोण। |
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वायवीय :
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वि० [सं०] १. वायु संबंधी। २. वायु के बल से चलनेवाला (एरियल) स्त्री वह ताल जिसका एक सिरा तो रेडियो यंत्र से संबद्ध होता है और दूसरा सिरा या तो खुले आकाश में विस्तृत होता है या ऊँचाई पर खड़े हुए बाँस के साथ लगा रहता है। (एरियल)। |
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वायव्य :
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वि० [सं० वायु+यत्] १. वायु संबंधी। २. वायु के द्वारा बनने या होनेवाला। ३. जिसका देवता वायु हो। पुं० १. पश्चिम और उत्तर दिशाओं के बीच का कोण जिसका अधिपति वायु देवता माना गया है। २. एक प्रकार का प्राचीन अस्त्र। ३. दे० ‘वायु-पुराण’। |
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वायव्या :
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स्त्री० [सं०वायव्य+टाप्]=वायव्य (कोण)। |
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वायस :
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पुं० [सं०] १. अगर का पेड़। २. कौआ। |
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वायसतंतु :
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पुं० [सं० मध्य० स०] १. हनु के दोनों जोड़। २. काल तुंडी। |
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वायसी :
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स्त्री० [सं० वायस+अण्+ङीष्] १. छोटी मकोय। काकमाची। २. महाज्योतिष्मती। ३. सफेद घुँघची। ४. काकजंघा। ५. महाकरंज। ६. काकतुंडी । कौआ ठोढ़ी। |
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वायसेसु :
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पुं० [सं० ष० त०] काँस (तृण)। |
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वायु :
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स्त्री० [सं०] १. वायु। हवा। विशेष–हमारे यहाँ (क) इसकी गिनती पाँच महाभूतों में की गई है और इसका गुण स्पर्श कहा गया है। (ख) इसकी एक दूसरे के ऊपर सात, तहें या परतें मानी गई है। जिनके नाम है–आवह, प्रवह, संवह, उद्वह, विवह, परिवह और परावह। २. धार्मिक क्षेत्र में एक देवता जो उक्त का अधिष्ठाता माना गया है और जिसका निवास उत्तर-पश्चिम कोण में माना गया है। ३. दर्शन में जीवनी-शक्ति या प्राणों का वह मुख्य आधार जो शरीर के अन्दर रहता है और जिसके पाँच भेद कहे गये हैं–प्राण, अपान, समान, उदान और व्यान। ४. वैद्यक में, उक्त का वह अंश या रूप जो शरीर के अन्दर रहता है और जिसके प्रकोप का विकार से अनेक प्रकार के रोग उत्पन्न होते है। वात। |
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वायु-अपनयन :
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पुं० [सं०] वायु का धूल, बालू, आदि उड़ाकर एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाना। विशेष—प्रायः समुद्र तट से और शुष्क प्रदेशों से होकर बहनेवाली वायु वहाँ से अपने साथ बहुत-सी धूल, बालू आदि भी उड़ा ले जाती है जिससे कहीं तो ऊपर की मिट्टी साफ होने से नीचे का चट्टान निकल आती है और कहीं रेत के टीले बन जाते हैं। विज्ञान में वायु की यहि क्रिया वायु-अपनयन कहलाती है। |
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वायु-कोण :
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पुं० [सं०] वायव्य (कोण)। |
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वायुगंड :
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पुं० [तृ० त०] १. अजीर्ण नामक रोग। २. पेट अफरने का रोग। अफरा। |
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वायु-गुल्म :
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पुं० [सं०] १. वायु-विकारों के कारण पेट में बनने या घूमता रहनेवाला वायु का गोला। २. बवंडर। |
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वायु-छिद्र :
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पुं० [सं०] भू-गर्भ शास्त्र में, समुद्र तट की चट्टानों में कहीं-कहीं पाये जानेवाले वे छिद्र जिनमें हवा भरी रहती है, और ज्वार या भाटा होने पर जिनमें से भीतरी वायु के दबाव के कारण पानी के फुहारे छूटने लगते हैं (ब्लो-होल)। |
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वायु-तनय :
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पुं० [सं० ष० त०]=वायु-नंदन (हनुमान्)। |
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वायु-दारु :
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पुं० [सं०] मेघ। बादल। |
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वायु-नंदन :
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पुं० [वायु√नंद (हर्षित करना)+ल्यु-अन] १. हनुमान। २. भीम। |
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वायु-देव :
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पुं० [ब० स०] स्वाति नक्षत्र। |
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वायु-पंचक :
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पुं० [ष० त०] शरीर में रहनेवाला प्राण, अपान, समान उदान और ध्यान नामक पाँचों वायुओं का समाहार। |
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वायु-पथ :
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पुं०=वायु-मार्ग। |
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वायु-पुत्र :
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पुं० [सं०] १. हनुमान। २. भीम। |
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वायु-पुराण :
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पुं० [मध्य० स०] अठारह मुख्य पुराणों में से एक पुराण। |
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वायु-फल :
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पुं० [सं०] इन्द्रधनुष। |
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वायु-भक्ष्य :
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पुं० [सं०] सर्प। साँप। |
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वायु-भार :
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पुं० [सं०] वायु-मण्डल में वायु की ऊपरी तहों का नीचेवाली तहों पर पड़नेवाला वह भार जिसके कारण नीचे की वायु घनी और भारी होती है। (एटमास्फेरिक प्रेशर)। विशेष–हमारे धरातल पर प्रति वर्ग इंच प्रायः १४॥ पौंड भार रहता है। |
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वायु-भार-मापक :
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पुं० [सं०] वह यंत्र जिससे किसी स्थान या वातावरण के घटने या बढ़नेवाले ताप-क्रम का पता चलता है। (बैरोमीटर)। |
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वायु-मंडल :
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पुं० [सं०] १. वह गोलाकार वाष्पीय आवरण जो हमारी पृथ्वी को चारों ओर से घेरे हुए है। (एटमाँस्फियर) २. दे० ‘वातावरण’। |
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वायुमंडल-विज्ञान :
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पुं० [सं०] वह विज्ञान या शास्त्र जिसमें इस बात का विवेचन होता है कि पृथ्वी के वायु-मंडल की क्या-क्या विशेषताएं हैं, उसमें कैसे-कैसे वाष्प है, और ऊपर की ओर उसका विस्तार कहाँ तक और कैसा है। (एयरॉलोजी)। |
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वायु-मरुत् :
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स्त्री० [सं०] ललितविस्तर के अनुसार एक प्राचीन लिपि। |
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वायुमापी :
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पुं० [सं०] वह यंत्र जो वायु मिति के द्वारा वायु की शुद्धि और उसमें होनेवाले आक्सीजन का मान या माप बतलाता है (यूडिओमीटर)। |
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वायु-मार्ग :
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पुं० [सं०] आकाश या वायु में के वे निश्चित मार्ग जिनसे होकर हवाई जहाज आदि एक देश से या स्थान से दूसरे देश या स्थान को जाते हैं। (एयर रूट)। |
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वायु-मिति :
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स्त्री० [सं०] वह प्रक्रिया जिससे यह जाना जाता है कि वायु में कितनी शुद्धता है। (यूडिओमेट्री)। |
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वायु-यान :
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पुं० [मध्य० स०] हवा में उड़नेवाला मनुष्य निर्मित यान। हवाई जहाज। |
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वायु-लोक :
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पुं० [सं०] १. पुराणानुसार एक लोक। २. आकाश। |
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वायु-वलन :
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पुं० दे० ‘वातानुकूलन’। |
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वायु-वाहन :
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पुं० [ष० त०] १. विष्णु। २. शिव। ३. धूआँ। |
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वायु-संवलन :
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पुं० [सं० ब० स०] [वि० वायु-संवलित] दे० ‘वातानुकूलन’। |
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वायु-संवलित :
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भू० कृ० [सं०] दे० ‘वातानुकूलित’। |
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वायु-सुख :
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पुं० [सं०] अग्नि। आग। |
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वायु-सेना :
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स्त्री० [सं०] सेना का वह विभाग जो वायुयानों से शत्रु-पक्ष पर गोले आदि फेंकता है। |
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वायु-सेवन :
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पुं० [सं०] स्वास्थ्य रक्षा के लिए खुली हवा में घूमना-फिरना उठना-बैठना या रहना। |
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वायु-सेवा :
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स्त्री० [फा०] वायुयानों के द्वारा की जानेवाली कोई सार्वजनिक सेवा। जैसे– वायुयान द्वारा यात्री या डाक लाने ले जाने का काम। |
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वायु-स्नान :
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पुं० [सं०] स्वास्थ्य ठीक रखने के लिए नंगे बदन होकर खुली हवा में कुछ देर तक इस प्रकार रहना कि शरीर के सब अंगों में अच्छी तरह हवा लगे। एयर बाथ। |
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वाय :
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स्त्री० [सं० वायु] १. हवा। २. गंध। महक। (राज०) जैसे—बधवाव (बाघ के शरीर से निकलनेवाली गंध)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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