शब्द का अर्थ
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वृंद :
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वि० [सं०√वृ (आच्छादन)+दन्,नुम्, गुणाभाव] बहुसंख्यक। पुं० १. समूह। २. सौ करोड़ की संख्या। ३. फलित ज्योतिष में एक प्रकार का मुहुर्त। ४. ढेर। राशि। ५. गुच्छा। ६. गले में होनेवाला अर्बुद। |
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वृंदवाद्य :
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पुं० [सं०] दे० ‘वाद्यर्वृद’। |
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वृंदसंगीत :
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पुं० [सं०] समवेतगान। सहगान। गाना। |
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वृंदा :
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स्त्री० [सं० वृंद+टाप्] राधिका का एक नाम। |
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वृंदाक :
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पुं० [सं० वृन्दा+कन्] परगाछ या बाँदा नामक वनस्पति। |
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वृंदार :
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पुं० [सं० वृन्द√ऋ (गमन)+अण्] देवता। |
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वृंदारक :
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पुं० [सं० वृन्द+आरकन्] देवता या श्रेष्ठ व्यक्ति। |
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वृंदारण्य :
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पुं० [सं० ष० त०] वृन्दावन। |
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वृंदावन :
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पुं० [सं० ष० त०] १. मथुरा के समीप स्थित एक वन। २. उक्त वन में बसी हुई एक आधुनिक बस्ती जो प्रसिद्ध तीर्थस्थल है। ३. वह चबूतरा जिसमें तुलसी के पौधे हों। |
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वृंदावनेश्वर :
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पुं० [सं०] श्रीकृष्ण। |
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वृंदावनेश्वरी :
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सं० [वृंदावनेश्वर+ङीष्] राधिका। |
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वृंदी :
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वि० [सं० वृन्द+इनि] जो समूहों में बँटा हो। |
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