शब्द का अर्थ
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वेद :
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पुं० [सं०] १. वह जो जाना गया हो। ज्ञान। २. धार्मिक ज्ञान। तत्त्वज्ञान। ३. भारतीय आर्यों के आद्य प्रधान ग्रन्थ जो हिन्दुओं के सर्व प्रधान है। विशेष—आरंभ में ऋग्वेद और सामवेद ही तीन वेद थे। जिनके कारण वेदत्रयी पद बना था। पर बाद में चौथा अथर्ववेद भी इनमें सम्मिलित हो गया था, और अब उनकी संख्या चार हो गई है। ये संसार के सबसे अधिक प्राचीन धर्मग्रंथ है प्रत्येक पद के दो मुख्य विभाग है। (क) मंत्र अथवा संहिता और (ख) ब्राह्मण भाग। हिन्दू इन्हें अ-पौरुषेय मानते हैं, अर्थात् ये मनुष्यों द्वारा रचित नहीं है, बल्कि स्वयं ब्रह्मा के मुख से निकले हैं। स्मृतियों से इनका पार्थक्य जलताने के लिए इन्हें श्रुति भी कहते हैं। जिसका आशय यह है कि वेदो में कही हुई बातें लोग परम्परा से सुनते चले आये थे, जो बाद में लिपिबद्ध करके ग्रंथ रूप में संकलित की गई थी। आधुनिक विद्वानों के मत से इनकी रचना लगभग ६॰॰॰ वर्ष पूर्व हुई होगी। ४. विष्णु का एक नाम। ५. यज्ञों को भिन्न-भिन्न अंग या कृत्य। यज्ञांग। ६. छंद। ७. धन-संपत्ति। |
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वेदक :
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वि० [सं० वेद+कन्] वेदन अर्थात् ज्ञान करानेवाला। |
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वेदकर्ता (र्त्तृ) :
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पुं० [सं० ष० त०] १. वेद या वेदों का रचयिता। २. सूर्य। ३. शिव। ४. विष्णु। ५. वर पक्ष के वे लोग जो विवाह कृत्य सम्पन्न हो जाने पर वधू के घर पहुँचकर उसे और वर को आर्शीवाद देते तथा मंगल-कामना प्रकट करते हैं। |
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वेदकार :
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पुं० [सं०] वेद या वेदों का रचयिता। |
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वेद-गंगा :
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स्त्री० [सं० मध्यम० स०] दक्षिण भारत की एक नदी जो कोल्हापुर के पास से निकलकर कृष्णा नदी में मिलती है। |
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वेदगर्भ :
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पुं० [सं० ष० त०] १. ब्रह्मा। २. ब्राह्मण। |
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वेदगर्भा :
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स्त्री० [सं० वेदगर्भ+टाप्] १. सरस्वती नदी। २. रेखा नदी। |
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वेदगुप्त :
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पुं० [सं० ब० स०] श्रीकृष्ण का एक नाम। |
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वेदगुह्य :
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पुं० [सं० ब० स०] विष्णु। |
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वेद-जननी :
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स्त्री० [सं० ष० त०] सावित्री जो वेद की माता कही गई है। |
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वेदज्ञ :
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पुं० [सं० वेद√ज्ञा (जानना)+क] १. वेदों का ज्ञाता। वेद जाननेवाला। २. ब्रह्म-ज्ञानी। |
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वेदत्व :
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पुं० [सं० वेद+त्व] वेद का धर्म या भाव। |
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वेद-दीप :
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पुं० [सं० ष० त०] महीघर का किया हुआ शुक्ल यजुर्वेद का भाष्य। |
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वेदन :
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पुं० [सं०√विद् (जानना)+ल्युट-अन] १. ज्ञान। २. अनुभूति। ३. संवेदन। ४. कष्ट। पीड़ा। वेदना। ५. धन-संपत्ति। ६. विवाह। ७. शूद्र स्त्री का उच्च वर्ग के पुरुष के साथ होनेवाला विवाह। |
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वेदना :
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स्त्री० [सं० वेदन+टाप्] १. बहुत तीव्र मानसिक या शारीरिक कष्ट। विशेषतः प्रसव के समय स्त्रियों को होने वाला कष्ट। २. तीव्र मानसिक दुःख। व्यथा। |
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वेदनी :
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स्त्री० [सं०√वेदन+ङीष्] त्वचा। |
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वेदनीय :
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वि० [सं०√विद् (जानना)+अनीयर्] १. जो वेदन के लिए उपयुक्त हो अथवा जिसका वेदन हो सके। २. जानने के लिए उपयुक्त। ३. वेदना या कष्ट उत्पन्न करनेवाला। |
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वेदबीज :
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पुं० [सं० ष० त०] श्रीकृष्ण। |
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वेद-मंत्र :
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पुं० [सं० मध्यम० स० या ष० त०] १. वेदों में आए हुए मंत्र। २. पुराणानुसार एक प्राचीन जनपद। ३. उक्त जनपद का निवासी। ४. मूलमंत्र (दे०)। |
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वेद-माता (तृ) :
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स्त्री० [सं० ष० त०] १. गायत्री। सावित्री। दुर्गा। २. सरस्वती। |
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वेद-मूर्ति :
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पु० [सं० ष० त०] १. वेदों का बहुत बड़ा ज्ञाता। २. सूर्य। |
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वेद-यज्ञ :
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पुं० [मध्यम० स०] वेद पढ़ना। वेदाध्ययन। |
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वेदवती :
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स्त्री० [सं०] १. सीता का पूर्वजन्म का नाम। उस जन्म में ये राजा कुशध्वज की पुत्री थी। २. एक प्राचीन नदी। |
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वेद-वदन :
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पुं० [ब० स०] १. ब्रह्मा। २. व्याकरण। |
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वेद-वाक्य :
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पुं० [सं०] ऐसा वाक्य या कथन जिसकी सत्यता असंदिग्ध हो। वेद में आए हुए वाक्य के समान मान्य कोई अन्य वाक्य या कथन। |
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वेदवादी (दिन्) :
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पुं० [सं०] वेदों का ज्ञाता। |
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वेदवाह :
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पुं० [सं० वेद√वह् (ढोना)+घञ्] वह जो वेदों का ज्ञाता हो। |
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वेद-वाहन :
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पुं० [सं० ष० त०] सूर्य। |
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वेद-व्यास :
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पुं० [सं० वेद+वि√अस् (होना)+अण्] एक प्राचीन मुनि जिन्होंने वेदों का वर्तमान रूप में संकलन किया था। ये सत्यवती के गर्भ से उत्पन्न पराशर के पुत्र थे। व्यास। |
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वेद-व्रत :
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पुं० [सं० ब० स०] वह जो वेदों का अध्ययन करता हो। |
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वेदशिर :
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पुं० [सं० ब० स०] १. एक प्रकार का अस्त्र (पुराण) २. पुराणानुसार मार्कडेय का एक पुत्र जो मूर्द्धन्या के गर्भ से उत्पन्न हुआ था। कहते है कि भार्गव लोगों का मूल पुरुष यही था। |
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वेदसार :
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पुं० [सं० ष० त०] विष्णु। |
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वेद-स्वरूपी :
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पुं० [सं०] संगीत में कर्नाटकी पद्धति का एक राग। |
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वेदांग :
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पुं० [सं० ष० त०] वेद के अंगों में हर एक। २. वेद के छः अंग। ३. सूर्य। |
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वेदांत :
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पुं० [सं० वेद+अंग] १. वेदों में प्रतिपादित सिद्धान्तों का निरूपण और विवेचन करनेवावाला शास्त्र। २. भारतीय चः दर्शनों में से अंतिम दर्शन जो उपनिषदों की शिक्षा और सिद्धान्तों पर आश्रित है और जिसमें वेदों का अंतिम य चरम उद्देश्य निरूपित होता है और जिसे उत्तर-मीमांसा भी कहते हैं। विशेष—इस दर्शन का मुख्य सिद्धान्त यह है कि सारी सृष्टि एकमात्र ब्रह्म से उद्भुत है, और वह इस ब्रह्म इस सृष्टि के प्रत्य़ेक अणु-परमाणु तक में व्याप्त है। इस दर्शन में मुख्यतः ब्रह्म और जगत् तथा ब्रह्मा और जीव के पारस्परिक संबंधों का निरूपण है। अहं ब्रह्मास्मि, तत्त्वमसि, सोहंअस्मि आदि इसके मुख्य सिद्धान्त है। लोक में जो अद्वैत की भावना भूत या माया के प्रति तिरस्कार आदि के भाव प्रचलित है वे अधिकतर इसी वेदातं की शिक्षा के फल हैं। |
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वेदांत :
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पुं० [सं०] व्यास कृत ब्रह्मसूत्र। |
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वेदांती (तिन्) :
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पुं० [सं० वेदान्त+इनि] वेदांत का पूर्ण ज्ञाता। ब्रह्मवादी। |
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वेदाग्रमी :
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स्त्री० [सं० ष० त०] सरस्वती। |
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वेदात्म :
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पुं० [सं० ष० त०] १. विष्णु। २. सूर्य। |
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वेदादि :
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पुं० [सं० ष० त०] प्रणव या ओंकार का मंत्र। |
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वेदाधिदेव :
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पुं० [सं० ष० त०] ब्राह्मण। |
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वेदाधिप :
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पुं० [सं० ष० त०] वेदों के अधिपतिग्रह। विशेष—ऋग्वेद के अधिपति, बृहस्पति यजुर्वेद के शुक्र सामवेद के मंगल अथर्ववेद के बुध। |
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वेदाध्यक्ष :
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पुं० [सं० ष० त०] विष्णु। |
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वेदि :
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स्त्री०=वेदी। |
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वेदिका :
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स्त्री० [सं० वेदिक+टाप्]=छोटी वेदी। |
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वेदित :
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भू० कृ० [सं०√विद् (जानना)+क्त] १. निवेदित। २. वेद द्वारा कथित या जतलाया हुआ। २. देखा हुआ। |
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वेदितव्य :
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वि० [सं०√विद् (जानना)+तव्यत्] बात का विषय जो जाना जा सके। |
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वेदित्व :
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पुं० [सं० वेदि+त्व] विदित होने का भाव। ज्ञान। |
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वेदी (दिन्) :
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वि० [सं०] १. जाननेवाला। ज्ञाता। २. पंडित। विद्वान। ३. विवाद करनेवाला। पुं० १. ब्रह्मा। २. आचार्य। ३. एक प्राचीन तीर्थ (महाभारत)। स्त्री० १. यज्ञ कार्य के लिए साफ करके तैयार की हुई भूमि। वेदी। २. मांगलिक या शुभ कार्य के लिए तैयार किया हुआ चौकोर स्थान और उसके ऊपर का मंडप। ३. सरस्वती। ४. ऐसी अंगूठी जिस पर किसी का नाम अंकित हो। ५. पूजन आदि के समय उंगली की एक प्रकार की मुद्रा। ६. अंबष्ठा नामक वनस्पति। |
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वेदीश :
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पुं० [सं० ष० त०] ब्रह्मा। |
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वेदुक :
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वि० [सं०√विद् (जानना)+उकञ्] १. जाननेवाला। ज्ञाता। २. प्राप्त करनेवाला। ३. मिला हुआ। प्राप्त। |
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वेदेश्वर :
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पुं० [सं० ष० त०] ब्रह्मा। |
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वेदोक्त :
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भू० कृ० [सं० स० त०] वेदों में कहा हुआ। |
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वेदोपकरण :
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पुं० [सं० ष० त०] वेदांग। |
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वेदोपनिषद् :
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स्त्री० [सं० मध्यम० स०] एक उपनिषद् का नाम। |
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वेद्वव्य :
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वि० [सं०√विध् (छेदना)+तव्यम्] वेधे या छेदे जाने के योग्य। |
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वेद्वा :
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वि० [सं०√विध् (छेदना)+तृच्] १. वेधने या छेदनेवाला। २. वेध करनेवाला। |
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वेद्य :
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वि० [सं०√विद् (जानना)+ण्यत्] १. (बात या विषय) जो जानने या समझने के योग्य हो। २. कहे जाने के योग्य। ३. प्रशंसनीय। ४. प्राप्त किये जाने के योग्य। |
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वेद्यत्व :
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पुं० [सं० वेद्य+त्व] ज्ञान। जानकारी। |
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