शब्द का अर्थ
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संख :
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पुं०=शंख।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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समानार्थी शब्द-
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संख—दराउ :
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पुं० [सं० संखद्राव] अमलबेंत। |
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संख-नारी :
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स्त्री० [सं० शंखनारी] एक प्रकार का छंद जिसके प्रत्येक चरण में दो यगण (य, य) होते हैं। सोमराजी वृत्त। |
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संखा-हुली :
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स्त्री० दे० ‘शंखपुष्पी’। |
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संखिया :
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पुं० [सं० श्रृंगिका या श्रृंग विष] १. एक प्रकार की बहुत जहरीली प्रसिद्ध उपधातु जो प्रायः सफेद पत्थर की तरह होती है। २. उक्त धातु की भस्म। सोमल। |
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संख्यक :
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वि० [सं० संख्य+कन्] जिसकी या जिसमें संख्या हो। संख्यावाला। जैसा—अल्प-संख्यक, बहु संख्यक। |
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संख्यता :
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स्त्री० [सं० संख्य+तल्—टाप्] संख्या का गुण, धर्म या भाव। संख्यत्व। |
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संख्यांक :
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पुं० [सं० संख्या+अंक] गणित में कोई संख्या सूचित करनेवाला अंक। (न्यूमरल) जैसा—१ से ९ तक के अंक। |
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संख्यांकन :
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पुं० [सं०] पदार्थों के क्रम से संख्या-सूचक अंक लगाना या लिखना। (नम्बरिंग) |
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संख्या :
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स्त्री० [सं० संख्या+अङ्-टाप्] १. गिनती। तादाद। २. राशि। ३. १, २, ३ आदि अंक। ४. जोड़। ५. विचार। ६. सामयिक पत्र का कोई अंक। ७. बुद्धि। |
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संख्याता :
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स्त्री० [सं० संख्यात-टाप्] संख्या के सहारे बनी हुई एक तरह की पहेली। वि० संख्या या गिनती करनेवाला। |
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संख्यातीत :
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वि० [सं० संख्या√ अत् (गमन करना)+क्त] जिसकी गणना न हो सके। बहुत अधिक। अनगिनत। |
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संख्यान :
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पुं० [सं० सं०√ ख्या (ख्याल होना)+ल्युट-अन] १. संख्या। गिनती। २. गिनने की क्रिया या भाव। ३. ध्यान। ४. प्रकाश। |
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संख्या-लिपि :
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स्त्री० [सं०] वह सांकेतिक लिपि-प्रणाली जिसमें अक्षरों के स्थान पर संख्या-सूचक अंकों का प्रयोग किया जाता है। |
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संख्येय :
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वि० [सं० संख्या+यत्] १. जो गिना जा सके। गणनीय। २. विचारणीय। |
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