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संग  : पुं० [सं० संङ्] १. मिलने की क्रिया। मिलन। २. साथ होने या रहने की अवस्था या भाव। सहवास। सोहबत। साथ। विशेष-संग और साथ के अंतर के लिए दे० साथ का विशेष। ३. सांसारिक विषयों या सुख-भोग के प्रति होनेवाला अनुराग आसक्ति। ४. नदियों का संगम। ५. संपर्क। सम्बन्ध। ६. मैत्री। ७. युद्ध। लड़ाई। ७. रुकावट। बाधा। क्रि० वि० साथ। हमराह। सहित। जैसा—कोई किसी के संग नहीं जाता। मुहावरा—(किसी के) संग लगना=साथ हो लेना। पीछे लगना। (किसी को) संग लेना=अपने साथ लेना या ले चलना। (किसी के) संग सोना=मैथुन या संभोग करना। पुं० [फा०] [वि० संगी, संगीन] पत्थर। पाषाण। जैसा—संगमूसा, संगमरमर। वि० पत्थर की तरह का। बहुत कठोर। बहुत कड़ा। जैसा—संग दिल।
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संग-अँगूर  : पुं० [फा० संग+हिं० अंगूर] एक प्रकार की वनस्पति जो हिमालय पर होती है।
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संग-असवद  : पुं० [फा० संग+अ० असवद] काले रंग का एक बहुत प्रसिद्ध पत्थर।
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संगकूपी  : स्त्री० [?] एक प्रकार की वनस्पति जो ओषधि के काम आती है।
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संग-खारा  : पुं० [फा० संग+खार] चकमक पत्थर।
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संगच्छध्वं  : अव्य० [सं०] साथ साथ चलो। उदाहरण—संगच्छध्वं के पुनीत, स्वर, जीवन के प्रति पग गाओ।—पंत।
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संग-जराहत  : पुं० [फा० संग+अ० जराहत] एक प्रकार का सफेद चिकना पत्थर।
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संगठित  : भू० कृ०=संघटित।
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संगणन  : पुं० [सं०] १. गणना का वह गंभीर और जटिल प्रकार या रूप जिसमें साधारण गणना के सिवा अनुभवों, घटनाओं नियत सिद्धान्तों आदि का भी उपयोग किया जाता है (कम्प्यूटेशन) जैसा—फलित ज्योतिष में आँधियों, भूकंपों आदि की भविष्टवाणी संगणन के आधार पर ही होती है। २. दे० ‘अनुगणन’।
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संगणना  : स्त्री० [सं०] अभिकलन (दे०)।
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संगत  : वि० [सं०] १. किसी के साथ जुड़ा या मिला या लगा हुआ। २. इकट्ठा किया हुआ। ३. जो किसी वर्ग, जाति आगि का होने के कारण उसके साथ रखा, बैठाया या लगाया जा सका हो। ४. पूर्वापर या आस-पास की बातों के विचार से अथवा और किसी प्रकार से ठीक बैठने या मेल खानेवाला। (रेलेवेन्ट)। ५. जिसमें संगति हो। ६. किसी के साथ दाम्पत्य या वैवाहिक बंधन से बंधा हुआ। स्त्री० [सं०√ गम् (जाना)+क्त] १. संग रहने या होने का भाव। साथ रहना। सोहबत। संगति। २. साथ रहनेवालों का दल या मंडली। ३. गाने-बजानेवालों के साथ रहकर सारंगी, तबला, मँजीरा आदि बजाने का काम। क्रि० प्र०—बजाना।—में रहना। मुहावरा—संगत करना=गानेवाले के साथ ठीक तरह से तबला, सारंगी, सितार आदि बजाना। ४. गाने-बजानेवालों का दल या मंडली। उदाहरण—इधर और उधर रखके कंधे पे हाथ। चलो नाचती गाती संगत के साथ।—कोई शायर। ५. वह जो इस प्रकार किसी गाने या नाचनेवाले के साथ रहकर साज बजाता हो। ६. उदासी, निर्मले आदि साधुओं के रहने का मठ। ७. लगाव। संपर्क। संसर्ग। ८. स्त्री और पुरुष का मैथुन। संभोग (बाजारू)।
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संगतरा  : पुं०=संतरा (मीठी नारंगी)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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संग-तराश  : पुं० [फा०] १. पत्थर काटने या गढ़नेवाला मजदूर। पत्थर कट। २. पत्थर काटने का एक प्रकार का औजार।
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संग-तराशी  : स्त्री० [फा०] संग-तराश का कार्य, पद या भाव।
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संगत-संधि  : स्त्री० [सं० ष० त०] प्राचीन भारतीय राजनीति में अच्छे राष्ट्र के साथ होनेवाली संधि जो अच्छे और बुरे दिनों में एक-सी बनी रहती है। कांचन संधि।
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संगति  : स्त्री० [सं०] [वि० संगत] १. संगत होने की अवस्था, क्रिया या भाव (कम्पैटिबिलिटी)। २. किसी के संग मिलने की क्रिया या भाव। मेल। मिलाप। मुहावरा—संगति बैठाना, मिलाना या लगाना=दो चीजों या बातों का मेल मिलाकर उन्हें संगत सिद्ध करना। ३. संग। साथ। सोहबत। ४. संपर्क। संबंध। ५. साहित्य में आगे-पीछे जानेवाले वाक्यों आदि का अर्थ के विचार से या कार्यों आदि का पूर्वापर के विचार से ठीक बैठना या मेल खाना (कन्सिस्टेन्सी)। क्रि० प्र०—बैठना।—बैठाना।—मिलना।—मिलाना। ६. कला के क्षेत्र में किसी कृति के भिन्न भिन्न अंगों की ऐसी सुसंघटित स्थिति जिसमें कहीं से कोई चीज या बात उखडती या टूटती हुई न जान पडे और उसका सारा प्रवाह या रूप कहीं से खटकता हुआ सा जान पड़े। तालमेल। सामंजस्य। (हाँर्मनी)। ७. लोक व्यवहार में आस-पास की बातों या पूर्वापर स्थितियों के विचार से सब बातों के उपयुक्त और ठीक रूप से यथा-स्थान होने की ऐसी अवस्था या भाव जिसमें कहीं परस्पर विरोधी तत्व न दिखाई देते हों। (रेलेवेन्सी)। क्रि०प्र०-बैठना।—बैठाना।—मिलना-मिलाना। ८. कोई बात जानने या समझने के लिए उसके संबंध में बार-बार प्रश्न करना। ९. जानकारी। ज्ञान। १॰. सभा। समाज। ११. मैथुन। संभोग। १२. मुक्ति। मोक्ष।
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संगतिया  : पुं० [सं० संगत+हिं०इ या (प्रत्यय)] १. गवैया या नाचनेवालों के साथ रहकर तबला, मँजीरा सारंगी आदि बजानेवाला व्यक्ति। साजिंदा। २. संगी। साथी।
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संगती  : पुं० [सं० संगत+हिं० ई (प्रत्यय)] १. वह जो साथ में रहता हो। संग रहनेवाला। २. दे० संगतिया।
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संगथ  : पुं० [सं०] संग्राम। युद्ध।
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संगदिल  : वि० [फा०] [भाव० संगदिली] पत्थर हो दिल जिसका। अर्थात् निर्दय।
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संगपुश्त  : वि० [फा०] जिसकी पीठ पत्थर के समान कड़ी हो। पुं० कछुआ।
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संगबसरी  : वि० [फा०] एक प्रकार की मिट्टी जिसमें लोहे का अंश अधिक होता है।
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संगम  : पुं० [सं० सम्√ गम् (जाना)+अप्] १. दो वस्तुओं के मिलने की क्रिया या भाव। मिलाप। संयोग। मेल। २. दो धाराओं या नदियों के मिलने का स्थान। जैसा—गंगा और यमुना का संगम। ३. दो या अधिक रेखाओं आदि के एक साथ मिलने का भाव या स्थान। (जंक्शन)। ४. संग। साथ। ५. मैथुन। संभोग। ६. सम्पर्क। सम्बन्ध। उदाहरण—तेउ पुनि तिहि चलीं रँगीली तजिगृह संगम।—नन्ददास। ७. वर्तमान काल की सब बातों का ज्ञान। उदाहरण-आगम संगम निगम मति ऐसे मंत्र विचारि।—केशव। ८. ज्योतिष में ग्रहों का योग। कई ग्रहों आदि का एक स्थान पर मिलना या एकत्र होना।
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संगमन  : पुं० [सं० सम्√ गन् (जाना)+ल्युट-अन] लोगों में आपस में होनेवाला पत्राचार, मेल-मिलाप और व्यवहार। संचार (कम्यूनिकेशन)।
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संग-मरमर  : पुं० [फा० संग+अ० मर्मर] सफेद रंग का एक प्रकार का बहुत चिकना और मुलायम प्रसिद्ध पत्थर।
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संग-मूसा  : पुं० [फा०] काले रंग का एक प्रकार का चिकना बहुमूल्य पत्थर।
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संग-यशब  : पुं० [फा०] एक प्रकार का बहुमूल्य पत्थर जो नीले-सफेद हरे आदि रंगों का होता है। विशेष-हौलदिली इसी प्रकार की बनती है।
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संगर  : पुं० [सं० सम√ गृ (शक करना)+अप्] १. युद्ध। समर। संग्राम। २. विपत्ति। संकट। ३. प्रतिज्ञा। ४. अंगीकरण। स्त्रीकरण। ५. प्रश्न। सवाल। ६. नियम। ७. जहर। विष। ८. शमी वृक्ष का फल। पुं० [फा०] १. वह घुस या दीवार जो ऐसे स्थान में बनाई जाती है जहाँ सेना ठहरती है। रक्षा के लिए सैनिक पड़ाव के चारों ओर बनाई हुई खाँई, घुस या दीवार। २. मोरचेबन्द।
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सँगरा  : पुं० [फा० संग] १. कूओं के तख्ते पर बना हुआ एक छेद जिसमें पानी खींचने का पम्प बैठाया हुआ होता है। पुं०=सेंगरा।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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संग-रासिख  : पुं० [फा०] ताँबे की मैल जो खिजाब बनाने के काम में आती है।
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संगरेजा  : पुं० [फा० संग+रेजः] पत्थर के छोटे छोटे टुकड़े। कंकड़। बजरी।
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संग-रोध  : पुं० [सं०] वह क्रिया या व्यवस्था जो देश में बाहर से आनेवाले किसी संक्रामक रोग को रोकने के लिए मार्ग में किसी स्थान पर की जाती है, और जिसके अनुसार यात्री आदि निरीक्षण, परीक्षण आदि के लिए कुछ समय तक रोक रखे जाते हैं (क्वारंटीन)।
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संगल  : पुं० [देश] एक प्रकार का रेशम। स्त्री० [सं० श्रृंखला] १. लोहे की जंजीर या सिक्कड़। २. अपराधियों के पैरों में पहनाई जानेवाली बेड़ी।
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संगव  : पुं० [सं०] प्रातःस्नान के तीन मुहुर्त बाद का समय जो दिन के पाँच भागों में से दूसरा है और जिसमें गौएँ दुहने के बाद चरने के लिए ले जायी जाती थीं।
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संगवाना  : स० [सं० संगर] १. हत्या करना। मरवा। डालना। २. अधिकार या वश में करना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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संगविनी  : स्त्री० [सं० संगव+इनि] वह स्थान जहाँ गौएँ दुहने के लिए एकत्र की जाती थीं।
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संग-सार  : पुं० [फा०] प्राचीन काल का एक प्रकार का प्राण दंड जिसमें अपराधी को पत्थरों के साथ दीवार के रूप में चुनवा दिया जाता था। वि० पूरी तरह से ध्वस्त या बरबाद किया हुआ।
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संग-सुरमा  : पुं० [फा० संग-सुर्मः] काले रंग की एक प्रकार की उपधातु जिसे पीसकर आँखों में लगाने का सुरमा बनाया जाता है।
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संगाती  : पुं० [हि० संग+आती (प्रत्यय)] १. वह जो संग रहता हो। साथी। संगी। २. दोस्त। मित्र।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) वि० पूरी तरह से ध्वस्त या बरबाद किया हुआ।
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संगायन  : पुं० [सं० सम्√ (गान करना)+ल्युट-अन] १. साथ साथ गाना या स्तुति करना। २. प्राचीन काल में वह सभा जिसमें बौद्ध भिक्षु साथ मिलकर महात्मा बुद्ध के उपदेशों का गान या पाठ करते थे। ३.आज-कल कोई बड़ी धर्म-सभा।
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संगिनी  : स्त्री० [हि० संगी का स्त्री०रूप०] १. साथ रहनेवाली स्त्री। सहचरी। २. पत्नी। भार्या।
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संगिस्तान  : पुं० [फा०] पथरीला-प्रदेश।
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संगी  : पुं० [सं० संग+हि० ई (प्रत्यय)] [स्त्री० संगिनी] १. वह जो सदा या प्रायः संग रहता हो। साथी। २. दोस्त। मित्र। स्त्री० [देश] एक प्रकार का रेशमी कपड़ा। वि० [फा० संग=पत्थर] पत्थर का।
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संगीत  : पुं० [सं० सम्√ गै (गाना)+क्त] मधुर ध्वनियों या स्वरों का कुछ विशिष्ट नियमों के अनुसार और कुछ विशिष्ट लय में होनेवाला प्रस्फुटन। यह दो प्रकार का होता है—(क) कंठ्य संगीत और (ख) वाद्य संगीत।
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संगीतक  : पुं० [सं० संगीत+कन्] १. गान, नृत्य और वाद्य के द्वारा लोगों का मनोरंजन। २. एक प्रकार का अभिनयात्मक और संगीत प्रधान नृत्य।
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संगीत-कला  : स्त्री० [सं०] गाने-बजाने की विद्या।
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संगीतज्ञ  : पुं० [सं०] संगीत (कला तथा शास्त्र) में निपुण।
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संगीत-रूपक  : पुं० [सं०] आज-कल प्रायः रोडियों में प्रसारित होनेवाला एक प्रकार का छोटा नाटक या रूपक, जिसमें गीतों की प्रधानता होती है और जिसकी मुख्य कथा कहीं तो पात्रों के वार्तालाप के द्वारा और कहीं रूपक प्रस्तुत करनेवाले व्यक्ति की वार्ता से सम्बद्ध रूप में बतलाई जाती है।
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संगीत-विद्या  : स्त्री०=संगीत शास्त्र।
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संगीत-शास्त्र  : पुं० [सं०] वह शास्त्र जिसमें गाने-बजाने की रीतियों, प्रकारों आदि का विवेचना होता है।
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संगीति  : स्त्री० [सं० सम्√ गै (गाना)+क्तिन्] १. वार्तालाप। बातचीत। २. दे० ‘संगीत’।
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संगीतिका  : स्त्री० [सं०] पाश्चात्य शैली का ऐसा नाटक जिसका अधिकाँश संगीत के रूप में होता है। गेय नाटक। सांगीत (ऑपिरा)।
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संगीन  : वि० [फा०] [भाव० संगीनी] १. पत्थर का बना हुआ। जैसा—संगीन इमारत। २. मोटी तह या मोटे दलवाला। जैसा—संगीन पोत का कपड़ा। ३. पत्थर की तरह कठोर। ४. मजबूत। ५. घोर तथा दंडनीय (अपराध)। स्त्री० [फा०] लोहे का एक प्रकार का अस्त्र जो तिपहला और नुकीला होता है।
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संगीनी  : स्त्री० [फा०] संगीन होने की अवस्था, गुण या भाव।
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संगुप्ति  : स्त्री० [सं० सं√ गुप् (रक्षा करना)+क्तिन्] १. छिपाव। दुराव। २. सुरक्षा।
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संगढ़  : पुं० [सं० सम√ ग्रह् (संवरण करना)+क्त] चीजों का ऐसा ढेर या राशि जिस पर सुरक्षा आदि के विचार से रेखाएँ अंकित हों।
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संगृहीत  : भू० कृ० [सं०] १. संग्रह किया हुआ एकत्र किया हुआ। जमा किया हुआ। संकलित। २. प्राप्त। लब्ध। ३. शासित। ४. स्वीकृत। ५. संक्षिप्त किया हुआ।
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संगृहीता (तृ)  : वि० [सं० सम√ ग्रह् (रखना)+तृच्] संग्रह करनेवाला।
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संगोपन  : पुं० [सं० सम्√ गुप् (रक्षा करना)+ल्युट-अन] अच्छी तरह से छिपाकर रखना।
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संग्रह  : पुं० [सं०] १. एकत्र करने की क्रिया या भाव। इकट्ठा या जमा करना। संचय। जैसा—धन संग्रह करना। २. इकट्ठी की हुई चीजों का ढेर या समूह। जैसा—चित्रों या पुस्तकों का संग्रह। ३. ग्रहण करना या लेने की क्रिया। ४. जमघट। जमावड़ा। ५. गोष्ठी या सभा-समाज। ६. पाणिग्रहण। विवाह। ७. स्त्री-प्रसंग। मैथुन। संभोग। ८. वह ग्रंथ जिसमें अनेक विषयों की बातें एकत्र की गई हों। ९. अपना फेंका हुआ अस्त्र-मंत्र-बल से अपने पास लौटने की क्रिया। १॰. तालिका। सूची। फेहरिस्त। ११. निग्रह। संयम। १२. रक्षा। हिफाजत। १३.कोष्ठ-बद्धता। कब्जियत। १४.स्वीकार। मंजूरी। १५.शिव का एक नाम। १६. सोम याग।
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संग्रहक  : वि०=संग्राहक।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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संग्रहण  : पुं० [सं०] १. ग्रहण करना। लेना। २. प्राप्ति। लाभ। ३. गहनों में नग आदि जड़ना। ४. मैथुन। संभोग। ५. व्यभिचार। ६. स्त्री के गोप्य अंगों का किया जानेवाला स्पर्श। ७. अपहरण।
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संग्रहणी  : स्त्री० [सं०] पाचन क्रिया के विकार के कारण होनेवाला एक रोग जिसमें बराबर और बार-बार पतले दस्त होते रहेत हैं (स्प्रू)।
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संग्रहणीय  : वि० [सं० सम√ ग्रह् (रखना)+अनीयर्] १. संग्रह किए जाने के योग्य। संग्राह्य। २. (ओषधि या औषध) जिसका सेवन आवश्यक और उपयोगी हो।
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संग्रहना  : स० [सं० संग्रहण] संग्रह करना। संचय करना। जमा करना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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संग्रहाध्यक्ष  : पुं०=संग्रहालयाध्यक्ष।
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संग्रहालय  : पुं० [सं० ष० त०] १. वह स्थान जहाँ एक ही अथवा अनेक प्रकार की बहुत सी चीजों का संग्रह हो। २. वह भवन अथवा उसका कोई अंग जिसमें स्थायी महत्व की वस्तुएँ प्रदर्शित की तथा सुरक्षित रखी गई हों (म्यूज़ियम)।
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संग्रहालयाध्यक्ष  : पुं० [?] किसी संग्रहालय (म्यूजियम) की देखरेख या व्यवस्था करनेवाला प्रधान अधिकारी। (क्यूरेटर)।
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संग्रही (हिन्)  : वि० [सं०] १. संग्रह या एकत्र करनेवाला। संग्राहक। जैसा—सर्व-संग्रही। २. सांसा-रिक वैभव की कामना रखने और धन-दौलत इकट्ठा करनेवाला। त्यागी का विपर्याय। पुं० महसूल या लगान आदि उगाहनेवाला कर्मचारी। कर एकत्र करनेवाला अधिकारी।
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संग्रहीता (तृ)  : पुं० [सं० सं√ ग्रह (रखना)+तृच्] वह जो संग्रह करता हो। जमा करनेवाला। एकत्र करनेवाला।
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संग्राम  : पुं० [सं०] युद्ध। लडाई। समर।
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संग्राम-तुला  : स्त्री० [सं०] युद्ध के रूप में होनेवाली अग्निपरीक्षा।
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संग्राम-पटह  : पुं० [सं०] रण में बजनेवाला एक प्रकार का बाजा। रण भेरी। रण-डिमडिम।
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संग्राह  : पुं० [सं० सम√ ग्रह् (रखना)+घञ्] १. औजार या हथियार का दस्ता या मूठ पकड़ना। २. मुट्ठी। ३.मुक्का।
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संग्राहक  : वि० [सं० संग्राह+कन्] जो संग्रह करता हो। एकत्र या जमा करनेवाला। संग्रहकारी।
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संग्राही (हिन्)  : पुं० [सं०] १. वैद्यक में वह पदार्थ जो कफादि दोष,धातु, मल तथा तरल पदार्थों को खींचता हो। वह पदार्थ जो मल के पेट से निकलने में बाधक होता है। कब्जियत करनेवाली चीज। २. कुटज। वि० संग्रह करनेवाला। संग्राहक।
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संग्राह्य  : वि० [सं० सम√ ग्रह् (रखना)+ण्यत्] संग्रह किये जाने के योग्य। जमा करके रखने लायक।
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