रामायण >> श्रीरामचरितमानस अर्थात तुलसी रामायण (अयोध्याकाण्ड)

श्रीरामचरितमानस अर्थात तुलसी रामायण (अयोध्याकाण्ड)

गोस्वामी तुलसीदास

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2020
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मुखपृष्ठ :
पुस्तक क्रमांक : 10
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भारत की सर्वाधिक प्रचलित रामायण। द्वितीय सोपान अयोध्याकाण्ड

पय अहार फल असन एक निसि भोजन एक लोग।
करत राम हित नेम ब्रत परिहरि भूषन भोग॥१८८॥

कोई दूध ही पीते, कोई फलाहार करते और कुछ लोग रात को एक ही बार भोजन करते हैं। भूषण और भोग-विलासको छोड़कर सब लोग श्रीरामचन्द्रजीके लिये नियम और व्रत करते हैं।। १८८ ॥

निषाद की शङ्का और सावधानी



सई तीर बसि चले बिहाने।
संगबेरपुर सब निअराने॥
समाचार सब सुने निषादा।
हृदयँ बिचार करइ सबिषादा॥


रातभर सई नदी के तीर पर निवास करके सबेरे वहाँसे चल दिये और सब शृङ्गवेरपुर के समीप जा पहुँचे। निषादराजने सब समाचार सुने, तो वह दुःखी होकर हृदयमें विचार करने लगा- ॥१॥

कारन कवन भरतु बन जाहीं।
है कछु कपट भाउ मन माहीं॥
जौं पै जियँ न होति कुटिलाई।
तौ कत लीन्ह संग कटकाई॥


क्या कारण है जो भरत वनको जा रहे हैं, मनमें कुछ कपट-भाव अवश्य है। यदि मनमें कुटिलता न होती, तो साथमें सेना क्यों ले चले हैं ॥२॥

जानहिं सानुज रामहि मारी।
करउँ अकंटक राजु सुखारी॥
भरत न राजनीति उर आनी।
तब कलंकु अब जीवन हानी।


समझते हैं कि छोटे भाई लक्ष्मणसहित श्रीरामको मारकर सुखसे निष्कण्टक राज्य करूँगा। भरतने हृदयमें राजनीतिको स्थान नहीं दिया (राजनीतिका विचार नहीं किया)। तब (पहले) तो कलंक ही लगा था, अब तो जीवनसे ही हाथ धोना पड़ेगा ॥३॥

सकल सुरासुर जुरहिं जुझारा।
रामहि समर न जीतनिहारा॥
का आचरजु भरतु अस करहीं।
नहिं बिष बेलि अमिअ फल फरहीं।


सम्पूर्ण देवता और दैत्य वीर जुट जायँ, तो भी श्रीरामजी को रणमें जीतनेवाला कोई नहीं है। भरत जो ऐसा कर रहे हैं, इसमें आश्चर्य ही क्या है ? विष की बेलें अमृतफल कभी नहीं फलती!॥४॥

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