रामायण >> श्रीरामचरितमानस अर्थात तुलसी रामायण (अयोध्याकाण्ड) श्रीरामचरितमानस अर्थात तुलसी रामायण (अयोध्याकाण्ड)गोस्वामी तुलसीदास
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भारत की सर्वाधिक प्रचलित रामायण। द्वितीय सोपान अयोध्याकाण्ड
इन्द्र बृहस्पति संवाद
देखि प्रभाउ सुरेसहि सोचू।
जगु भल भलेहि पोच कहुँ पोचू॥
गुर सन कहेउ करिअ प्रभु सोई।
रामहि भरतहि भेट न होई॥
जगु भल भलेहि पोच कहुँ पोचू॥
गुर सन कहेउ करिअ प्रभु सोई।
रामहि भरतहि भेट न होई॥
भरतजीके [इस प्रेमके] प्रभावको देखकर देवराज इन्द्रको सोच हो गया [कि कहीं इनके
प्रेमवश श्रीरामजी लौट न जायँ और हमारा बना-बनाया काम बिगड़ जाय]। संसार भलेके
लिये भला और बुरेके लिये बुरा है (मनुष्य जैसा आप होता है जगत् उसे वैसा ही
दीखता है)। उसने गुरु बृहस्पतिजीसे कहा-हे प्रभो! वही उपाय कीजिये जिससे
श्रीरामचन्द्रजी और भरतजीकी भेंट ही न हो ॥४॥
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