रामायण >> श्रीरामचरितमानस अर्थात तुलसी रामायण (अयोध्याकाण्ड) श्रीरामचरितमानस अर्थात तुलसी रामायण (अयोध्याकाण्ड)गोस्वामी तुलसीदास
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भारत की सर्वाधिक प्रचलित रामायण। द्वितीय सोपान अयोध्याकाण्ड
चलत पयादें खात फल पिता दीन्ह तजि राजु।
जात मनावन रघुबरहि भरत सरिस को आजु॥२२२॥
जात मनावन रघुबरहि भरत सरिस को आजु॥२२२॥
[वह बोली-] देखो, ये भरतजी पिताके दिये हुए राज्यको त्यागकर पैदल चलते और
फलाहार करते हुए श्रीरामजीको मनानेके लिये जा रहे हैं। इनके समान आज कौन है? ॥
२२२॥
भायप भगति भरत आचरनू।
कहत सुनत दुख दूषन हरनू॥
जो किछु कहब थोर सखि सोई।
राम बंधु अस काहे न होई॥
कहत सुनत दुख दूषन हरनू॥
जो किछु कहब थोर सखि सोई।
राम बंधु अस काहे न होई॥
भरतजीका भाईपना, भक्ति और इनके आचरण कहने और सुननेसे दुःख और दोषोंके हरनेवाले
हैं। हे सखी! उनके सम्बन्धमें जो कुछ भी कहा जाय, वह थोड़ा है।
श्रीरामचन्द्रजीके भाई ऐसे क्यों न हों? ॥ १ ॥
हम सब सानुज भरतहि देखें।
भइन्ह धन्य जुबती जन लेखें।
सुनि गुन देखि दसा पछिताहीं।
कैकई जननि जोगु सुतु नाहीं॥
भइन्ह धन्य जुबती जन लेखें।
सुनि गुन देखि दसा पछिताहीं।
कैकई जननि जोगु सुतु नाहीं॥
छोटे भाई शत्रुघ्नसहित भरतजीको देखकर हम सब भी आज धन्य (बड़भागिनी) स्त्रियोंकी
गिनतीमें आ गयीं। इस प्रकार भरतजीके गुण सुनकर और उनकी दशा देखकर स्त्रियाँ
पछताती हैं और कहती हैं-यह पुत्र कैकेयी-जैसी माताके योग्य नहीं है ॥२॥
कोउ कह दूषनु रानिहि नाहिन।
बिधि सबु कीन्ह हमहि जो दाहिन।
कहँ हम लोक बेद बिधि हीनी।
लघु तिय कुल करतूति मलीनी॥
बिधि सबु कीन्ह हमहि जो दाहिन।
कहँ हम लोक बेद बिधि हीनी।
लघु तिय कुल करतूति मलीनी॥
कोई कहती हैं- इसमें रानीका भी दोष नहीं है। यह सब विधाताने ही किया है, जो
हमारे अनुकूल है। कहाँ तो हम लोक और वेद दोनोंकी विधि (मर्यादा) से हीन, कुल और
करतूत दोनोंसे मलिन तुच्छ स्त्रियाँ, ॥ ३॥
बसहिं कुदेस कुगाँव कुबामा।
कहँ यह दरसु पुन्य परिनामा।
अस अनंदु अचिरिजु प्रति ग्रामा।
जनु मरुभूमि कलपतरु जामा॥
कहँ यह दरसु पुन्य परिनामा।
अस अनंदु अचिरिजु प्रति ग्रामा।
जनु मरुभूमि कलपतरु जामा॥
जो बुरे देश (जंगली प्रान्त) और बुरे गाँवमें बसती हैं और [स्त्रियोंमें भी]
नीच स्त्रियाँ हैं! और कहाँ यह महान् पुण्योंका परिणामस्वरूप इनका दर्शन ! ऐसा
ही आनन्द और आश्चर्य गाँव-गाँव में हो रहा है। मानो मरुभूमिमें कल्पवृक्ष उग
गया हो॥४॥
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