रामायण >> श्रीरामचरितमानस अर्थात तुलसी रामायण (अयोध्याकाण्ड)

श्रीरामचरितमानस अर्थात तुलसी रामायण (अयोध्याकाण्ड)

गोस्वामी तुलसीदास

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :0
मुखपृष्ठ :
पुस्तक क्रमांक : 10
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भारत की सर्वाधिक प्रचलित रामायण। द्वितीय सोपान अयोध्याकाण्ड

मगबासी नर नारि सुनि धाम काम तजि धाइ।
देखि सरूप सनेह सब मुदित जनम फलु पाइ॥२२१॥


मार्गमें रहनेवाले स्त्री-पुरुष यह सुनकर घर और काम-काज छोड़कर दौड़ पड़ते हैं और उनके रूप (सौन्दर्य) और प्रेमको देखकर वे सब जन्म लेनेका फल पाकर आनन्दित होते हैं।। २२१॥

कहहिं सपेम एक एक पाहीं।
रामु लखनु सखि होहिं कि नाहीं॥
बय बपु बरन रूपु सोइ आली।
सीलु सनेहु सरिस सम चाली।

गाँवोंकी स्त्रियाँ एक-दूसरीसे प्रेमपूर्वक कहती हैं-सखी ! ये राम-लक्ष्मण हैं कि नहीं? हे सखी! इनकी अवस्था, शरीर और रंग-रूप तो वही है। शील, स्नेह उन्हींके सदृश है और चाल भी उन्हींके समान है॥१॥

बेषु न सो सखि सीय न संगा।
आगे अनी चली चतुरंगा॥
नहिं प्रसन्न मुख मानस खेदा।
सखि संदेहु होइ एहिं भेदा॥

परन्तु हे सखी ! इनका न तो वह वेष (वल्कलवस्त्रधारी मुनिवेष) है, न सीताजी ही संग हैं। और इनके आगे चतुरङ्गिणी सेना चली जा रही है। फिर इनके मुख प्रसन्न नहीं हैं, इनके मनमें खेद है। हे सखी ! इसी भेदके कारण सन्देह होता है॥२॥

तासु तरक तियगन मन मानी।
कहहिं सकल तेहि सम न सयानी॥
तेहि सराहि बानी फुरि पूजी।
बोली मधुर बचन तिय दूजी॥


उसका तर्क (युक्ति) अन्य स्त्रियोंके मन भाया। सब कहती हैं कि इसके समान सयानी (चतुर) कोई नहीं है। उसकी सराहना करके और 'तेरी वाणी सत्य है' इस प्रकार उसका सम्मान करके दूसरी स्त्री मीठे वचन बोली ॥३॥

कहि सपेम सब कथाप्रसंगू।
जेहि बिधि राम राज रस भंगू॥
भरतहि बहुरि सराहन लागी।
सील सनेह सुभाय सुभागी॥

श्रीरामजीके राजतिलकका आनन्द जिस प्रकारसे भंग हुआ था वह सब कथाप्रसंग प्रेमपूर्वक कहकर फिर वह भाग्यवती स्त्री श्रीभरतजीके शील, स्नेह और स्वभावकी सराहना करने लगी ॥४॥

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