रामायण >> श्रीरामचरितमानस अर्थात तुलसी रामायण (अयोध्याकाण्ड)

श्रीरामचरितमानस अर्थात तुलसी रामायण (अयोध्याकाण्ड)

गोस्वामी तुलसीदास

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :0
मुखपृष्ठ :
पुस्तक क्रमांक : 10
आईएसबीएन :

Like this Hindi book 0

भारत की सर्वाधिक प्रचलित रामायण। द्वितीय सोपान अयोध्याकाण्ड


दो०- राजन राउर नामु जसु, सब अभिमत दातार।
फल अनुगामी महिप मनि, मन अभिलाषु तुम्हार॥३॥


हे राजन्! आपका नाम और यश ही सम्पूर्ण मनचाही वस्तुओं को देनेवाला है। हे राजाओं के मुकुटमणि! आपके मन की अभिलाषा फल का अनुगमन करती है (अर्थात् आपके इच्छा करनेके पहले ही फल उत्पन्न हो जाता है)॥३॥

सब बिधि गुरु प्रसन्न जियँ जानी।
बोलेउ राउ रहँसि मृदु बानी॥
नाथ रामु करिअहिं जुबराजू।
कहिअ कृपा करि करिअ समाजू॥


अपने जी में गुरुजी को सब प्रकार से प्रसन्न जानकर, हर्षित होकर राजा कोमल वाणी से बोले-हे नाथ! श्रीरामचन्द्र को युवराज कीजिये। कृपा करके कहिये (आज्ञा दीजिये) तो तैयारी की जाय॥१॥

मोहि अछत यहु होइ उछाहू।
लहहिं लोग सब लोचन लाहू॥
प्रभु प्रसाद सिव सबइ निबाहीं।
यह लालसा एक मन माहीं॥

मेरे जीते-जी यह आनन्द-उत्सव हो जाय, [जिससे] सब लोग अपने नेत्रों का लाभ प्राप्त करें। प्रभु (आप) के प्रसाद से शिवजी ने सब कुछ निबाह दिया (सब इच्छाएँ पूर्ण कर दी), केवल यही एक लालसा मन में रह गयी है।॥ २॥


पुनि न सोच तनु रहउ कि जाऊ।
जेहिं न होइ पाछे पछिताऊ।
सुनि मुनि दसरथ बचन सुहाए।
मंगल मोद मूल मन भाए॥

[इस लालसा के पूर्ण हो जानेपर] फिर सोच नहीं, शरीर रहे या चला जाय, जिससे मुझे पीछे पछतावा न हो। दशरथजी के मङ्गल और आनन्द के मूल सुन्दर वचन सुनकर मुनि मनमें बहुत प्रसन्न हुए॥३॥


सुनु नृप जासु बिमुख पछिताहीं।
जासु भजन बिनु जरनि न जाहीं॥
भयउ तुम्हार तनय सोइ स्वामी।
रामु पुनीत प्रेम अनुगामी॥


[वसिष्ठजीने कहा-] हे राजन्! सुनिये, जिनसे विमुख होकर लोग पछताते हैं और जिनके भजन बिना जी की जलन नहीं जाती, वही स्वामी (सर्वलोकमहेश्वर) श्रीरामजी आपके पुत्र हुए हैं, जो पवित्र प्रेम के अनुगामी हैं। [श्रीरामजी पवित्र प्रेम के पीछे-पीछे चलने वाले हैं, इसी से तो प्रेमवश आपके पुत्र हुए हैं]॥ ४॥

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

लोगों की राय

No reviews for this book