रामायण >> श्रीरामचरितमानस अर्थात तुलसी रामायण (अयोध्याकाण्ड) श्रीरामचरितमानस अर्थात तुलसी रामायण (अयोध्याकाण्ड)गोस्वामी तुलसीदास
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भारत की सर्वाधिक प्रचलित रामायण। द्वितीय सोपान अयोध्याकाण्ड
दो०- एहि अवसर मंगलु परम, सुनि रहँसेउ रनिवासु।
सोभत लखि बिधु बढ़त जनु, बारिधि बीचि बिलासु॥७॥
सोभत लखि बिधु बढ़त जनु, बारिधि बीचि बिलासु॥७॥
इसी समय यह परम मङ्गल समाचार सुनकर सारा रनिवास हर्षित हो उठा।
जैसे चन्द्रमाको बढ़ते देखकर समुद्र में लहरों का विलास (आनन्द) सुशोभित होता
है॥७॥
प्रथम जाइ जिन्ह बचन सुनाए।
भूषन बसन भूरि तिन्ह पाए।
प्रेम पुलकि तन मन अनुरागीं।
मंगल कलस सजन सब लागीं॥
भूषन बसन भूरि तिन्ह पाए।
प्रेम पुलकि तन मन अनुरागीं।
मंगल कलस सजन सब लागीं॥
सबसे पहले [रनिवासमें] जाकर जिन्होंने ये वचन (समाचार) सुनाये,
उन्होंने बहुत-से आभूषण और वस्त्र पाये। रानियों का शरीर प्रेम से पुलकित हो
उठा और मन प्रेम में मग्न हो गया। वे सब मङ्गलकलश सजाने लगीं॥१॥
चौकें चारु सुमित्राँ पूरी।
मनिमय बिबिध भाँति अति रूरी॥
आनंद मगन राम महतारी।
दिए दान बहु बिप्र हँकारी॥
मनिमय बिबिध भाँति अति रूरी॥
आनंद मगन राम महतारी।
दिए दान बहु बिप्र हँकारी॥
सुमित्राजीने मणियों (रत्नों)-के बहुत प्रकारके अत्यन्त सुन्दर
और मनोहर चौक पूरे। आनन्द में मग्न हुई श्रीरामचन्द्रजी की माता कौसल्याजी ने
ब्राह्मणोंको बुलाकर बहुत दान दिये॥२॥
पूजीं ग्रामदेबि सुर नागा।
कहेउ बहोरि देन बलिभागा॥
जेहि बिधि होइ राम कल्यानू।
देहु दया करि सो बरदानू॥
कहेउ बहोरि देन बलिभागा॥
जेहि बिधि होइ राम कल्यानू।
देहु दया करि सो बरदानू॥
उन्होंने ग्रामदेवियों, देवताओं और नागों की पूजा की और फिर
बलि भेंट देने को कहा (अर्थात् कार्य सिद्ध होने पर फिर पूजा करने की मनौती
मानी); और प्रार्थना की कि जिस प्रकारसे श्रीरामचन्द्रजी का कल्याण हो, दया
करके वही वरदान दीजिये॥३॥
गावहिं मंगल कोकिलबयनीं।
बिधुबदनीं मृगसावकनयनीं॥
बिधुबदनीं मृगसावकनयनीं॥
कोयलकी-सी मीठी वाणीवाली, चन्द्रमाके समान मुखवाली और हिरनके
बच्चेके से नेत्रोंवाली स्त्रियाँ मङ्गलगान करने लगीं॥४॥
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