रामायण >> श्रीरामचरितमानस अर्थात तुलसी रामायण (उत्तरकाण्ड)

श्रीरामचरितमानस अर्थात तुलसी रामायण (उत्तरकाण्ड)

गोस्वामी तुलसीदास

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :0
मुखपृष्ठ :
पुस्तक क्रमांक : 15
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भारत की सर्वाधिक प्रचलित रामायण। सप्तम सोपान उत्तरकाण्ड

बरनि उमापति राम गुन हरषि गए कैलास।
तब प्रभु कपिन्ह दिवाए सब बिधि सुखप्रद बास।।14ख।।

श्रीरामचन्द्रजीके गुणों का वर्णन करके उमापति महादेवजी हर्षित होकर कैलासको चले गये, तब प्रभुने वानरोंको सब प्रकाश से सुख देनेवाले डेरे दिलवाये।।14(ख)।।

चौ.-सुनु खगपति यह कथा पावनी। त्रिबिध ताप भव दावनी।।
महाराज कर सुख अभिषेका। सुनत लहहिं नर बिरति बिबेका।।1।।

हे गरुड़जी ! सुनिये, यह कथा [सबको] पवित्र करनेवाली है, [दैहिक, दैविक, भौतिक] तीनों प्रकारके तापोंका और जन्म-मृत्युके भयका नाश करनेवाली है। महाराज श्रीरामचन्द्रजीके कल्याणमय राज्याभिषेकका चरित्र [निष्कामभावसे] सुनकर मनुष्य वैराग्य और ज्ञान प्राप्त करते हैं।।1।।

जे सकाम नर सुनहिं जे गावहिं। सुख संपति नाना बिधि पावहिं।।
सुर दुर्लभ सुख करि जग माहीं। अंतकाल रघुपति पुर जाहीं।।2।।

और जो मनुष्य सकाम भाव से सुनते और गाते हैं, वे अनेकों प्रकार के सुख और सम्पत्ति पाते हैं। वे जगत् में देव दुर्लभ सुखोंको भोगकर अन्तकाल में श्रीरघुनाथजीके परमाधाम को जाते हैं।।2।।

सुनहिं बिमुक्त बिरत अरु बिषई। लहहिं भगति गति संपति नई।।
खगपति राम कथा मैं बरनी। स्वमति बिलास त्रास दुख हरनी।।3।।

इसे जो जीवन्मुक्त विरक्त और विषयी सुनते हैं, वे [क्रमशः] भक्ति, मुक्ति और नवीन सम्पत्ति (नित्य नये भोग) पाते हैं। है पक्षिराज गरुड़जी ! मैं अपनी बुद्धिकी पहुँचके अनुसार रामकथा वर्णन की है, जो [जन्म-मरणके] भय और दुःखोंको हरनेवाली है।।3।।

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