रामायण >> श्रीरामचरितमानस अर्थात तुलसी रामायण (उत्तरकाण्ड)

श्रीरामचरितमानस अर्थात तुलसी रामायण (उत्तरकाण्ड)

गोस्वामी तुलसीदास

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :0
मुखपृष्ठ :
पुस्तक क्रमांक : 15
आईएसबीएन :

Like this Hindi book 0

भारत की सर्वाधिक प्रचलित रामायण। सप्तम सोपान उत्तरकाण्ड

बिरति बिबेक भगति दृढ़ करनी। मोह नदी कहँ सुंदर तरनी।।
नित नव मंगल कौसलपुरी। हरषित रहहिं लोग सब कुरी।।4।।

यह वैराग्य, विवेक और भक्ति को दृढ़ करनेवाली है तथा मोहरूपी नदी के [पार करनेके] लिये सुन्दर नाव है। अवधपुरीमें नित-नये मंगलोत्सव होते हैं। सभी वर्गोंके लोग हर्षित रहते हैं।।4।।

नित नइ प्रीति राम पद पंकज। सब कें जिन्हहि नमत सिव मुनि अज।।
मंगन बहु प्रकार पहिराए। द्विजन्ह दान नाना बिधि पाए।।5।।

श्रीरामजीके चरणकमलोंमें-जिन्हें श्रीशिवजी, मुनिगण और ब्रह्मा जी भी नमस्कार करते हैं-सबकी नित्य नवीन प्रीति है। भिक्षुओंको बहुत प्रकारके वस्त्राभूण पहनाये गये और ब्राह्मणों ने नाना प्रकार के दान पाये।।5।।

दो.-ब्रह्मानंद मगन कपि सब कें प्रभु पद प्रीति।।
जात न जाने दिवस तिन्ह गए मास षट बीति।।15।।

वानर सब ब्रह्मानन्द में मगन हैं। प्रभु के चरणों में सबका प्रेम हैं ! उन्होंने दिन जाते जाने ही नहीं और [बात-की-बातमें] छः महीने बीत गये।।15।।

चौ.-बिसरे गृह सपनेहुँ सुधि नाहीं। जिमि परद्रोह संत मन माहीं।।
तब रघुपति सब सखा बोलाए। आइ सबन्हि सादर सिरु नाए।।1।।

उन लोगों को अपने घर भूल ही गये।] जगत् की तो बात ही क्या] उन्हें स्वप्न में भी घरकी सुध (याद) नहीं आती, जैसे संतोंके मनमें दूसरों से द्रोह करनेकी बात कभी नहीं आती। तब श्रीरघुनाथजीने सब सखाओंको बुलाया। सबने आकर आदर सहित सिर नवाया।।1।।

परम प्रीति समीप बैठारे। भगत सुखद मृदु बचन उचारे।।
तुम्ह अति कीन्हि मोरि सेवकाई। मुख पर केहिं बिधि करौं बड़ाई।।2।।

बड़े ही प्रेम से श्रीरामजीने उनको पास बैठाया और भक्तों को सुख देने वाले कोमल बचन कहे- तुमलोगोंने मेरी बड़ी सेवा की है। मुँहपर किस प्रकार तुम्हारी बड़ाई करूँ ?।।2।।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

लोगों की राय

No reviews for this book