इसीलिए सभी
शास्त्र कहते हैं,
"हम उनमें जीवित हैं, उनमें ही
रहकर चलते
हैं, उन्हीं में हमारी सत्ता है।" इसीलिए सभी
शास्त्र
घोषणा करते हैं, "हम ईश्वर से आये हैं,
फिर उन्हीं में लौट जाएँगे।" विभिन्न धार्मिक परिभाषाओं
से मत डरो,
यदि परिभाषा से ही डरने लगे, तो
फिर तुम
दार्शनिक न बन सकोगे। ब्रह्मवादी इस विश्वव्यापी बुद्धि को ही ईश्वर
कहते हैं।
मुझसे अनेक बार पूछा गया है, “आप क्यों इस
पुराने 'ईश्वर' (God ) शब्द
का व्यवहार करते हैं?"
तो इसका उत्तर यह है कि पूर्वोक्त विश्वव्यापी बुद्धि को
समझाने के
लिए यही सर्वोत्तम है। इससे अच्छा और कोई शब्द नहीं मिल सकता, क्योंकि मनुष्य की सारी आशाएँ और सुख इसी एक शब्द में
केन्द्रित हैं। अब
इस शब्द को बदलना असम्भव है। इस प्रकार के शब्द पहले-पहल बड़े-बड़े
साधु-महात्माओं
द्वारा गढ़े गये थे और वे इन शब्दों का तात्पर्य अच्छी तरह समझते थे। धीरे-धीरे जब समाज
में उन शब्दों
का प्रचार होने लगा तब अज्ञ लोग भी उन शब्दों का व्यवहार करने लगे।
इसका परिणाम यह
हुआ कि शब्दों की महिमा घटने लगी। स्मरणातीत काल से 'ईश्वर'
शब्द का व्यवहार होता आया है। सर्वव्यापी बुद्धि का भाव
तथा जो कुछ
महान् और पवित्र है, सब इसी शब्द में निहित
है। यदि कोई
मूर्ख इस शब्द का व्यवहार करने में आपत्ति करता हो, तो
क्या
इसलिए हमें इस शब्द को त्याग देना होगा? एक
दूसरा व्यक्ति भी
आकर कह सकता है- 'मेरे इस शब्द को लो।'
फिर तीसरा भी अपना एक शब्द लेकर आएगा। यदि यही क्रम चलता
रहा, तो ऐसे व्यर्थ शब्दों का कोई अन्त न
होगा। इसलिए मैं कहता हूँ कि उस
पुराने शब्द का ही व्यवहार करो; मन से
अन्धविश्वासों को दूर
कर, इस महान् प्राचीन शब्द के अर्थ को ठीक तरह
से समझकर,
उसका और भी उत्तम रूप से व्यवहार करो। यदि तुम लोग समझते
हो कि
भाव-साहचर्य-विधान (law of association of ideas ) किसे
कहते
हैं, तो तुमको पता चलेगा कि इस शब्द के साथ
कितने ही महान्
ओजस्वी भावों का संयोग है, लाखों मनुष्यों ने
इस शब्द का
व्यवहार किया है, करोड़ों आदमियों ने इस शब्द
की पूजा की है
और जो कुछ सर्वोच्च एवं सुन्दरतम है, जो कुछ
युक्तियुक्त,
प्रेमास्पद और मानवी भावों में महान एवं सुन्दर है, वह
समस्त इस
शब्द में, अतएव यह इन सब साहचर्य-भावों का संकेत देनेवाला कारण है,
इसलिए इसका त्याग नहीं किया जा सकता। जो भी हो, यदि
मैं तुम लोगों को केवल यह कहकर समझाने की चेष्टा करता कि ईश्वर ने जगत्
की सृष्टि
की है, तो तुम लोगों के लिए उसका कोई अर्थ न
होता। फिर भी इस
सब विचार आदि के बाद हम उस प्राचीन पुरुष के ही पास पहुँचे।
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