वेदान्त >> वेदान्त पर स्वामी विवेकानन्द के व्याख्यान

वेदान्त पर स्वामी विवेकानन्द के व्याख्यान

स्वामी विवेकानन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :602
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7
आईएसबीएन :1234567890

Like this Hindi book 0

स्वामी जी द्वारा अमेरिका और ब्रिटेन में वेदान्त पर दिये गये व्याख्यान

मैं तुम लोगों को देख रहा हूँ। इस दर्शन-क्रिया के लिए किन-किन बातों की आवश्यकता होती है? पहले तो आँखें-आँखें रहनी ही चाहिए। मेरी अन्यान्य इन्द्रियाँ भले ही अच्छी रहें, पर यदि मेरी आँखें न हों, तो मैं तुम लोगों को न देख सकूँगा। अतएव पहले मेरी आँखें अवश्य रहनी चाहिए। दूसरे, आँखों के पीछे, और कुछ रहने की आवश्यकता है, और वही असल में दर्शनेन्द्रिय है। यह यदि हममें न हों, तो दर्शन-क्रिया असम्भव है। वस्तुतः आँखें इन्द्रिय नहीं हैं, वे तो दृष्टि की यन्त्र मात्र हैं। यथार्थ इन्द्रिय चक्षु के पीछे है-वह मस्तिष्क में अवस्थित नाड़ीकेन्द्र है। यदि यह केन्द्र किसी प्रकार नष्ट हो जाए, तो स्वच्छ चक्षुद्वय रहते हुए भी मनुष्य कुछ देख न सकेगा। अतएव दर्शन-क्रिया के लिए इस असली इन्द्रिय का अस्तित्व नितान्त आवश्यक है। हमारी अन्यान्य इन्द्रियों के बारे में भी ठीक ऐसा ही है। बाहर के कान ध्वनि-कम्प को भीतर ले जाने के यन्त्र मात्र हैं, उसको मस्तिष्क में स्थित केन्द्र में पहुँचना चाहिए। पर इतने से ही श्रवण-क्रिया पूर्ण नहीं हो जाती। कभी-कभी ऐसा होता है कि पुस्तकालय में बैठकर तुम ध्यान से कोई पुस्तक पढ़ रहे हो, घड़ी में बारह बजता है, पर तुम्हें वह ध्वनि सुनाई नहीं देती। क्यों? वहाँ ध्वनि तो है, वायु-स्पन्दन है, कान और केन्द्र भी वहाँ हैं और कान के माध्यम से केन्द्र तक स्पन्दन पहुँच भी गये हैं, पर तो भी तुम नहीं सुन पाते। किस चीज की कमी थी? इस इन्द्रिय के साथ मन का योग नहीं था। अतएव हम देखते हैं कि मन का रहना भी नितान्त आवश्यक है।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

लोगों की राय

No reviews for this book