वेदान्त >> वेदान्त पर स्वामी विवेकानन्द के व्याख्यान वेदान्त पर स्वामी विवेकानन्द के व्याख्यानस्वामी विवेकानन्द
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स्वामी जी द्वारा अमेरिका और ब्रिटेन में वेदान्त पर दिये गये व्याख्यान
फिर, यह प्रश्न पूछा जा सकता है कि हम इस बात को क्यों स्वीकार कर लें? हम यह क्यों स्वीकार कर लें कि आनन्द, अस्तित्व और स्वप्रकाशत्व आत्मा के स्वरूप हैं, आत्मा के उधार लिए गुण नहीं? किन्तु प्रश्न पूछा जा सकता है–यह क्यों नहीं मान लेते कि आत्मा का प्रकाश, उसका ज्ञान और आनन्द भी उसी तरह दूसरे से लिये हुए हैं, जैसे शरीर का प्रकाशत्व मन से ही लिया हुआ है। इस तरह मान लेने से दोष यह होगा कि ऐसी स्वीकृति का फिर कहीं अन्त न होगा–पुनः प्रश्न उठेगा कि इस आत्मा को फिर कहाँ से आलोक मिला? यदि कहो कि दूसरी किसी आत्मा से मिला, तो फिर इस दूसरी आत्मा ने ही कहाँ से वह आलोक प्राप्त किया? अतएव, अन्त में हमें ऐसे एक स्थान पर रुकना होगा, जिसका आलोक दूसरे से नहीं आया है। इसलिए इस विषय में न्यायसंगत सिद्धान्त यही है कि जहाँ पहले ही स्वप्रकाशत्व दिखाई दे, बस वहीं रुक जाना, और अधिक आगे न बढना।
अतएव हमने देखा कि पहले मनुष्य की यह स्थूल देह है, उसके पीछे मन, बुद्धि, अहंकार से निर्मित सूक्ष्म शरीर है और उसके भी पश्चात् मनुष्य का प्रकृत स्वरूप–आत्मा–विद्यमान है। हमने देखा कि स्थूल देह की सारी शक्तियाँ मन से प्राप्त होती हैं और मन या सूक्ष्म शरीर आत्मा के आलोक से आलोकित है।
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