वेदान्त >> वेदान्त पर स्वामी विवेकानन्द के व्याख्यान वेदान्त पर स्वामी विवेकानन्द के व्याख्यानस्वामी विवेकानन्द
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स्वामी जी द्वारा अमेरिका और ब्रिटेन में वेदान्त पर दिये गये व्याख्यान
आत्मा के पुनर्जन्म के सम्बन्ध में क्या कोई युक्तियुक्त प्रमाण है? अब तक हम शंका का समाधान कर रहे थे, दिखा रहे थे कि पुनर्जन्मवाद के विरोध में जो दलीलें उठायी जाती हैं, वे खोखली हैं। अब पुनर्जन्मवाद के पक्ष में जो युक्तियाँ है, उनकी हम आलोचना करेंगे। पुनर्जन्मवाद के बिना ज्ञान असम्भव है। मान लो, मैंने रास्ते में एक कुत्ता देखा। मैंने कैसे जाना कि वह कुत्ता ही है? ज्योंही मेरे मन में उसकी छाप पड़ी, त्योंही उसे मैं अपने मन के पूर्व-संस्कारों के साथ मिलाने लगा। मैंने देखा कि वहाँ मेरे समस्त पूर्व-संस्कार स्तर-स्तर में सजे हुए हैं। ज्योंही कोई नया विषय आया, त्योंही मैं प्राचीन संस्कारों के साथ उसे मिलाने लगा। और जब मैंने अनुभव किया कि हाँ, उसी की भाँति और भी कई संस्कार वहाँ विद्यमान हैं, तो बस मैं तृप्त हो गया। मैंने तब जाना कि उसे कुत्ता कहते हैं, क्योंकि पहले के कई संस्कारों के साथ वह मिल गया। जब हम उस प्रकार का कोई संस्कार अपने भीतर नहीं देख पाते, तब हममें असन्तोष पैदा होता है। इसी को 'अज्ञान' कहते हैं। और सन्तोष मिल जाना ही 'ज्ञान' कहलाता है। जब एक सेब गिरा, तो मनुष्य को असन्तोष हुआ। इसके बाद मनुष्य ने क्रमशः इसी प्रकार की कई घटनाएँ देखीं–शृंखला की तरह ये घटनाएँ एक दूसरे से बँधी हुई थीं। यह शृंखला क्या थी? वह शृंखला यह थी कि सभी सेब गिरते हैं। और इसको उसने 'गुरुत्वाकर्षण' नाम दे दिया।
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