वेदान्त >> वेदान्त पर स्वामी विवेकानन्द के व्याख्यान वेदान्त पर स्वामी विवेकानन्द के व्याख्यानस्वामी विवेकानन्द
|
|
स्वामी जी द्वारा अमेरिका और ब्रिटेन में वेदान्त पर दिये गये व्याख्यान
इसकी एक पुरानी व्याख्या है, पर उसे व्याख्या कहा ही नहीं जा सकता। उसे लोग जन्मजात-प्रवृत्ति या सहज-प्रेरणा (instinct) कहते हैं। मुर्गी के उस छोटे-से बच्चे में कहाँ से मरने का डर आया? अण्डे से अभी-अभी निकली बतख पानी के निकट आते ही क्यों कूद पड़ती है और तैरने लगती है? वह तो पहले कभी तैरना नहीं जानती थी, और न पहले उसने किसी को तैरते ही देखा है। लोग कहते हैं कि वह 'जन्मजात-प्रवृत्ति है। यह तो हमने एक लम्बा चौड़ा शब्दप्रयोग किया अवश्य, पर उससे हमें कोई नयी बात नहीं मिलती। अब आलोचना की जाए कि यह जन्मजात-प्रवृत्ति है क्या। हमारे भीतर अनेक प्रकार की जन्मजात-प्रवृत्तियाँ वर्तमान हैं। मान लो, एक बच्चे ने पियानो बजाना सीखना शुरू किया। पहले उसे प्रत्येक परदे की ओर नजर रखते हुए अंगुलियों को चलाना पड़ता है, पर कुछ महीने, कुछ साल अभ्यास करते-करते अंगुलियाँ अपने आप ठीक-ठीक स्थानों पर चलने लगती हैं, वह स्वाभाविक हो जाता है। एक समय जिसमें ज्ञानपूर्वक इच्छा को लगाना पड़ता था, उसमें जब उस प्रकार करने की आवश्यकता नहीं रह जाती, अर्थात् जब ज्ञानपूर्वक इच्छा लगाये बिना ही वह सम्पन्न होने लगता है, तो उसी को स्वाभाविक-ज्ञान या सहज-प्रेरणा कहते हैं। पहले वह इच्छा के साथ होता था, बाद में उसमें इच्छा का कोई प्रयोजन न रहा। पर जन्मजात-प्रवृत्ति का तत्त्व अब भी पूरा नहीं हुआ, अभी आधा रह गया है। वह यह कि जो सब कार्य हमारे लिए स्वाभाविक हैं, लगभग उन सभी को हम अपनी इच्छा के वश में ला सकते हैं। शरीर की प्रत्येक पेशी को हम अपने वश में ला सकते हैं। आजकल यह विषय हम सभी को अच्छी तरह से ज्ञात है। अतएव अन्वय और व्यतिरेक इन दोनों उपायों से यह प्रमाणित कर दिया गया कि जिसे हम जन्मजात-प्रवृत्ति कहते हैं, वह इच्छा से किये गये कार्य का भ्रष्ट भाव मात्र है। अतएव जब सारी प्रकृति में एक ही नियम का राज्य है, तो समग्र सृष्टि में 'उपमान' प्रमाण का प्रयोग करके हम इस सिद्धान्त पर पहुँच सकते हैं कि तिर्यक्जाति और मनुष्य में जो जन्मजात-प्रवृत्ति है, वह इच्छा का ही. भ्रष्ट भाव मात्र है।
|