वेदान्त >> वेदान्त पर स्वामी विवेकानन्द के व्याख्यान

वेदान्त पर स्वामी विवेकानन्द के व्याख्यान

स्वामी विवेकानन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :602
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7
आईएसबीएन :1234567890

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स्वामी जी द्वारा अमेरिका और ब्रिटेन में वेदान्त पर दिये गये व्याख्यान

आनुवंशिक संक्रमणवाद (doctrine of heredity ) बिना किसी प्रमाण के ही एक अद्भुत बात मान लेता है कि अनुभवों का आलेखन जड़ द्रव्य में हो सकता है , और यह अनुभव जड़ द्रव्य में संकुचित हो जाते हैं। मन के संस्कारों की छाप जड़ तत्त्व में रह सकती है। जब मैं तुम्हारी ओर देखता हूँ, तब मेरे चित्त-सरोवर में एक तरंग उठ जाती है। यह तरंग थोड़े समय बाद लुप्त हो जाती है, पर सूक्ष्म रूप में वर्तमान रहती है। हम यह समझ सकते हैं। हम यह भी समझ सकते हैं कि भौतिक संस्कार शरीर में रह सकते हैं। किन्तु इसका क्या प्रमाण है कि मानसिक संस्कार शरीर में रहते हैं, क्योंकि शरीर तो नष्ट हो जाता है। किसके द्वारा ये संस्कार संचारित होते हैं? अच्छा, माना कि मन के प्रत्येक संस्कार का शरीर में रहना सम्भव है; यह भी माना कि आनुवंशिकता के अनुसार आदिम मनुष्य से लेकर समस्त पूर्वजों के संस्कार मेरे पिता के शरीर में वर्तमान हैं; पर पूछता हूँ कि वे सब संस्कार मेरे शरीर में कैसे आये? तुम शायद कहो–जीवाणुकोष (bio-plasmic cell ) के द्वारा। किन्तु यह कैसे सम्भव है, क्योंकि पिता का शरीर तो सन्तान में सम्पूर्ण रूप से नहीं आता? एक ही माता-पिता की कई सन्तानें हो सकती हैं। अतः यह आनुवंशिक-संक्रमणवाद मान लेने पर तो हमें यह भी अवश्य स्वीकार करना पड़ेगा कि प्रत्येक सन्तान के जन्म के साथ ही साथ माता-पिता को अपनी निजी संस्कारों का कुछ अंश खोना पड़ेगा (चूँकि उन लोगों के मत से संचारक और जिसमें संचार होता हो वह एक अर्थात् भौतिक हैं), (आज के डिजिटल युग के समय इसे आसानी से समझा जा सकता है, जब कि नवनिर्माण के लिए केवल कापी अथवा प्रति बना कर भी निजी संस्कारों का प्रसार किया जा सकता है) और यदि तुम कहो कि उनके सारे संस्कार ही सम्प्रेषित होते हैं, तब तो यही कहना पड़ेगा कि प्रथम सन्तान के जन्म के बाद ही उन लोगों का मन पूर्ण रूप से शून्य हो जाएगा।

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