अब हम सूक्ष्मतर से
सूक्ष्मतर क्षेत्र में आ
उपस्थित हुए हैं। सम्भव है, तुममें से कुछ लोग
भयभीत भी हो
जाएँ। हमने देखा कि यह आत्मा भूत, शक्ति एवं
विचार-रूप
क्षुद्र जगत् के अतीत एक मौलिक (Substance) पदार्थ
है,
अतः इसका विनाश असम्भव है। इसी प्रकार उसका जीवन भी
असम्भव है। कारण,
जिसका विनाश नहीं, उसका जीवन भी
कैसे हो सकता
है? मृत्यु क्या है? मृत्यु
एक पहलू है,
और जीवन उसी का एक दूसरा पहलू है। मृत्यु का और एक नाम
है जीवन,
तथा जीवन का और एक नाम है मृत्यु। अभिव्यक्ति के एक
रूपविशेष को हम
जीवन कहते हैं, और उसी के अन्य रूपविशेष को
मृत्यु। जब तरंग
ऊपर की ओर उठती है, तो मानो जीवन है और फिर जब
वह गिर जाती
है, तो मृत्यु है। जो वस्तु मृत्यु के अतीत है,
वह निश्चय ही जन्म के भी अतीत है। मैं तुमको फिर उस
प्रथम सिद्धान्त की
याद दिलाता हूँ कि मानवात्मा उस सर्वव्यापी जगन्मयी शक्ति अथवा ईश्वर
का अंशमात्र
है। तो हम देखते हैं कि वह जीवन और मृत्यु दोनों से परे है। तुम न कभी
उत्पन्न हुए
थे, न कभी मरोगे। हमारे चारों ओर जो जन्म और
मृत्यु दिखते
हैं, वे फिर क्या हैं? वे
तो केवल शरीर
के हैं, क्योंकि आत्मा तो सदा-सर्वदा वर्तमान
है। तुम कहोगे,
"यह कैसे? हम इतने लोग यहाँ पर
बैठे हुए
हैं और आप कहते हैं, आत्मा सर्वव्यापी है ! ''
मैं पूछता हूँ, जो पदार्थ नियम
के, कार्य-कारण-सम्बन्ध के बाहर है, उसे सीमित करने की
शक्ति किसमें है? यह गिलास एक सीमित पदार्थ
है–यह सर्वव्यापक
नहीं है, क्योंकि इसके चारों ओर की जड़राशि
इसको इसी रूप में
रहने को बाध्य करती है- इसे सर्वव्यापी नहीं होने देती। यह अपने आसपास
के प्रत्येक
पदार्थ के द्वारा नियन्त्रित है, अतएव यह
सीमित है। किन्तु
जो वस्तु नियम के बाहर है, जिस पर कार्य
करनेवाला कोई पदार्थ
नहीं, वह कैसे सीमित हो सकती है? वह
सर्वव्यापक होगी ही। तुम सर्वत्र विद्यमान हो, फिर
मैंने
जन्म लिया है, मैं मरनेवाला हूँ'- ये
सब भाव क्या हैं? वे सब अज्ञान की बातें,
मन का भ्रम है। तुम्हारा न कभी जन्म हुआ था, न तुम
कभी मरोगे। तुम्हारा जन्म भी नहीं हुआ, न कभी
पुनर्जन्म
होगा। आवागमन का क्या अर्थ है? कुछ नहीं। यह
सब मूर्खता है।
तुम सब जगह मौजूद हो। आवागमन जिसे कहते हैं, वह
इस सूक्ष्म
शरीर अर्थात् मन के परिवर्तन के कारण उत्पन्न हुई एक मृगमरीचिका मात्र
है। यह
बराबर चल रहा है। यह आकाश पर तैरते हुए बादल के एक टुकड़े के समान है।
जब वह चलता
रहता है, तो प्रतीत होता है कि आकाश ही चल रहा
है। कभी-कभी जब चन्द्रमा के ऊपर से बादल हो
निकलते हैं, तो
भ्रम होता है कि चन्द्रमा ही चल रहा है। जब तुम गाड़ी में बैठे रहते
हैं, तो मालूम होता है कि पृथ्वी चल रही है,
और नाव पर
बैठनेवाले को पानी चलता हुआ सा मालूम होता है। वास्तव में न तुम जा रहे
हो,
न आ रहे हो, न तुमने जन्म लिया
है, न फिर जन्म लोगे। तुम अनन्त हो, सर्वव्यापी हो–सभी
कार्य-कारण-सम्बन्ध से अतीत, नित्यमुक्त,
अज और अविनाशी। जन्म और मृत्यु का प्रश्न ही गलत है,
महामूर्खतापूर्ण है। मृत्यु हो ही कैसे सकती है,
जब
जन्म ही नहीं हुआ?
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