वेदान्त >> वेदान्त पर स्वामी विवेकानन्द के व्याख्यान वेदान्त पर स्वामी विवेकानन्द के व्याख्यानस्वामी विवेकानन्द
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स्वामी जी द्वारा अमेरिका और ब्रिटेन में वेदान्त पर दिये गये व्याख्यान
यह सम्पूर्ण विश्व कभी ब्रह्म में ही था। ब्रह्म से यह मानो निकल आया है और तब से सतत भ्रमण करता हुआ यह पुनः अपने उद्गम स्थान पर वापस जाना चाहता है। यह सारा क्रम कुछ ऐसा ही है, जैसे डाइनेमो से बिजली का निकलना और विभिन्न धाराओं से चक्कर काटकर पुनः उसी में चला जाना। आत्मा ब्रह्म से प्रक्षेपित होकर विभिन्न रूपों- वनस्पति तथा पशु-लोकों - से होती हुई मनुष्य के रूप में आविर्भूत होती है। मनुष्य ब्रह्म के सब से अधिक समीप है। वस्तुतः जीवन का सारा संग्राम इसीलिए है कि पुनः आत्मा ब्रह्म में मिल जाए। लोग इस बात को समझते हैं या नहीं - यह उतना महत्त्व नहीं रखता। विश्व भर में द्रव्यों, वनस्पतियों अथवा पशुओं में जो कुछ भी गति दीख पडती है, वह इसीलिए है कि आत्मा अपने मौलिक केन्द्र पर चली जाए और शान्तिलाभ करे। प्रारम्भ में साम्यावस्था रही, पर वह नष्ट हो गयी; और अब सारे अणु-परमाणु इसी प्रयास में हैं कि पुनः वह साम्यावस्था आ जाए। इस प्रयास में ये अनेक बार एक दूसरे से मिलते और नये-नये रूप धारण करते हैं, जिसके परिणामस्वरूप प्रकृति में विभिन्न दृश्य देखने को मिलते हैं। वनस्पतियों में, पशुओं में तथा सर्वत्र ही जो प्रतिद्वन्द्विता, जो संग्राम, जो सामाजिक तनाव और युद्ध होते हैं, वे सभी उसी शाश्वत संग्राम की अभिव्यक्तियाँ हैं, जो मौलिक साम्यावस्था की प्राप्ति के लिए हो रही हैं।
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