वेदान्त >> वेदान्त पर स्वामी विवेकानन्द के व्याख्यान

वेदान्त पर स्वामी विवेकानन्द के व्याख्यान

स्वामी विवेकानन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :602
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7
आईएसबीएन :1234567890

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स्वामी जी द्वारा अमेरिका और ब्रिटेन में वेदान्त पर दिये गये व्याख्यान

किस शक्ति ने इस आकाश पर कार्य करके इसमें से जगत की सृष्टि की? आकाश के साथ एक सर्वव्यापी शक्ति रहती है। जगत में जितनी भी भिन्न-भिन्न शक्तियाँ हैं- आकर्षण, विकर्षण, यहाँ तक कि विचार-शक्ति भी - सभी 'प्राण' नामक एक महाशक्ति की अभिव्यक्तियाँ हैं। इसी प्राण ने आकाश पर कार्य करके इस जगत्-प्रपंच की रचना की है। कल्प के प्रारम्भ में यह प्राण मानो अनन्त आकाश-समुद्र में प्रसुप्त रहता है। प्रारम्भ में यह आकाश गतिहीन होकर अवस्थित था। बाद में प्राण के प्रभाव से इस आकाश-समुद्र में गति उत्पन्न होने लगती है। और जैसे-जैसे इस प्राण का स्पन्दन या गति होने लगती है, वैसे-वैसे इस आकाश-समुद्र में से नाना ब्रह्माण्ड, नाना जगत्, कितने ही सूर्य, चन्द्र तारे, पृथ्वी, मनुष्य, जन्तु, उद्भिद् और नानाविध शक्तियाँ उत्पन्न होती रहती हैं। अतएव हिन्दुओं के मत से सब प्रकार की शक्तियाँ प्राणी और सब प्रकार के भौतिक पदार्थ आकाश की विभिन्न अभिव्यक्तियाँ है। कल्पान्त में सभी ठोस पदार्थ पिघल जाएँगे, और वह तरल पदार्थ वाली आकार में परिणत हो जाएगा। वह फिर तेज-रूप धारण करेगा। अन्य सब कुछ जिस आकाश में से उत्पन्न हुआ था, उसी में विलीन हो जायेगा। और आकर्षण, विकर्षण, गति आदि समस्त शक्तियाँ धीरे धीरे मूल प्राण में परिणत हो जाएँगी। उसके बाद जब तक फिर से कल्पारम्भ नही होता, तब तक यह प्राण मानो निद्रित अवस्था में रहेगा। कल्पारम्भ होने पर वह जागकर पुनः नाना रूपों को प्रकाशित करेगा और कल्पान्त में फिर से सब का लय हो जाएगा। बस, इसी प्रकार सृष्टि आती है और चली जाती है, वह मानो एक बार पीछे और एक बार आगे झूल रही है। आधुनिक विज्ञान की भाषा में कहेंगे कि एक समय वह स्थितिशील रहती है, फिर गतिशील हो जाती है, एक समय प्रसुप्त रहती है और फिर क्रियाशील हो जाती है। बस इसी प्रकार अनन्त काल से चला आ रहा है।

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