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रामायण >> श्रीरामचरितमानस अर्थात तुलसी रामायण (अयोध्याकाण्ड) श्रीरामचरितमानस अर्थात तुलसी रामायण (अयोध्याकाण्ड)गोस्वामी तुलसीदास
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भारत की सर्वाधिक प्रचलित रामायण। द्वितीय सोपान अयोध्याकाण्ड
भाइहु लावहु धोख जनि आजु काज बड़ मोहि।
सुनि सरोष बोले सुभट बीर अधीर न होहि ॥१९१॥
सुनि सरोष बोले सुभट बीर अधीर न होहि ॥१९१॥
[उसने कहा--] हे भाइयो ! धोखा न लाना (अर्थात् मरनेसे न घबराना),आज मेरा बड़ा
भारी काम है। यह सुनकर सब योद्धा बड़े जोशके साथ बोल उठे-हे वीर ! अधीर मत
हो॥१९१॥
राम प्रताप नाथ बल तोरे।
करहिं कटकु बिनु भट बिनु घोरे॥
जीवत पाउ न पाछे धरहीं।
रुंड मुंडमय मेदिनि करहीं।
करहिं कटकु बिनु भट बिनु घोरे॥
जीवत पाउ न पाछे धरहीं।
रुंड मुंडमय मेदिनि करहीं।
हे नाथ! श्रीरामचन्द्रजी के प्रताप से और आपके बल से हमलोग भरतकी सेनाको बिना
वीर और बिना घोड़े की कर देंगे (एक-एक वीर और एक-एक घोड़ेको मार डालेंगे)।
जीते-जी पीछे पाँव न रखेंगे। पृथ्वीको रुण्ड-मुण्डमयी कर देंगे (सिरों और
धड़ोंसे छा देंगे) ॥१॥
दीख निषादनाथ भल टोलू।
कहेउ बजाउ जुझाऊ ढोलू॥
एतना कहत छींक भइ बाँए।
कहेउ सगुनिअन्ह खेत सुहाए।
कहेउ बजाउ जुझाऊ ढोलू॥
एतना कहत छींक भइ बाँए।
कहेउ सगुनिअन्ह खेत सुहाए।
निषादराज ने वीरों का बढ़िया दल देखकर कहा-जुझाऊ (लड़ाईका) ढोल बजाओ। इतना कहते
ही बायीं ओर छींक हुई। शकुन विचारने वालों ने कहा कि खेत सुन्दर हैं (जीत
होगी)॥२॥
बूढ़ एकु कह सगुन बिचारी।
भरतहि मिलिअ न होइहि रारी॥
रामहि भरतु मनावन जाहीं।
सगुन कहइ अस बिग्रहु नाहीं॥
भरतहि मिलिअ न होइहि रारी॥
रामहि भरतु मनावन जाहीं।
सगुन कहइ अस बिग्रहु नाहीं॥
एक बूढ़े ने शकुन विचारकर कहा-भरतसे मिल लीजिये, उनसे लड़ाई नहीं होगी। भरत
श्रीरामचन्द्रजी को मनाने जा रहे हैं। शकुन ऐसा कह रहा है कि विरोध नहीं है॥३॥
सुनि गुह कहइ नीक कह बूढ़ा।
सहसा करि पछिताहिं बिमूढ़ा।
भरत सुभाउ सीलु बिनु बूझें।
बड़ि हित हानि जानि बिनु जूझें।
सहसा करि पछिताहिं बिमूढ़ा।
भरत सुभाउ सीलु बिनु बूझें।
बड़ि हित हानि जानि बिनु जूझें।
यह सुनकर निषादराज गुहने कहा-बूढ़ा ठीक कह रहा है। जल्दीमें (बिना विचारे) कोई
काम करके मूर्खलोग पछताते हैं। भरतजीका शील-स्वभाव बिना समझे और बिना जाने
युद्ध करनेमें हितकी बहुत बड़ी हानि है॥४॥
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