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रामायण >> श्रीरामचरितमानस अर्थात तुलसी रामायण (अयोध्याकाण्ड) श्रीरामचरितमानस अर्थात तुलसी रामायण (अयोध्याकाण्ड)गोस्वामी तुलसीदास
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भारत की सर्वाधिक प्रचलित रामायण। द्वितीय सोपान अयोध्याकाण्ड
एहि बिधि मज्जनु भरतु करि गुर अनुसासन पाइ।
मातु नहानी जानि सब डेरा चले लवाइ॥१९७॥
मातु नहानी जानि सब डेरा चले लवाइ॥१९७॥
इस प्रकार भरतजी स्नान कर और गुरुजीकी आज्ञा पाकर तथा यह जानकर कि सब माताएँ
स्नान कर चुकी हैं, डेरा उठा ले चले ॥१९७॥
जहँ तहँ लोगन्ह डेरा कीन्हा।
भरत सोधु सबही कर लीन्हा॥
सुर सेवा करि आयसु पाई।
राम मातु पहिं गे दोउ भाई॥
भरत सोधु सबही कर लीन्हा॥
सुर सेवा करि आयसु पाई।
राम मातु पहिं गे दोउ भाई॥
लोगोंने जहाँ-तहाँ डेरा डाल दिया। भरतजीने सभीका पता लगाया [कि सब लोग आकर
आरामसे टिक गये हैं या नहीं]। फिर देवपूजन करके आज्ञा पाकर दोनों भाई
श्रीरामचन्द्रजीकी माता कौसल्याजीके पास गये॥१॥
चरन चाँपि कहि कहि मृदु बानी।
जननीं सकल भरत सनमानी।
भाइहि सौपि मातु सेवकाई।
आपु निषादहि लीन्ह बोलाई॥
जननीं सकल भरत सनमानी।
भाइहि सौपि मातु सेवकाई।
आपु निषादहि लीन्ह बोलाई॥
चरण दबाकर और कोमल वचन कह-कहकर भरतजीने सब माताओंका सत्कार किया। फिर भाई
शत्रुघ्नको माताओंकी सेवा सौंपकर आपने निषादको बुला लिया॥२॥
चले सखा कर सों कर जोरें।
सिथिल सरीरु सनेह न थोरें॥
पूँछत सखहि सो ठाउँ देखाऊ।
नेकु नयन मन जरनि जुड़ाऊ॥
सिथिल सरीरु सनेह न थोरें॥
पूँछत सखहि सो ठाउँ देखाऊ।
नेकु नयन मन जरनि जुड़ाऊ॥
सखा निषादराजके हाथ-से-हाथ मिलाये हुए भरतजी चले। प्रेम कुछ थोड़ा नहीं है
(अर्थात् बहुत अधिक प्रेम है), जिससे उनका शरीर शिथिल हो रहा है। भरतजी सखासे
पूछते हैं कि मुझे वह स्थान दिखलाओ---और नेत्र और मनकी जलन कुछ ठंडी करो-- ॥ ३
॥
जहँ सिय रामु लखनु निसि सोए।
कहत भरे जल लोचन कोए॥
भरत बचन सुनि भयउ बिषादू।
तुरत तहाँ लइ गयउ निषादू॥
कहत भरे जल लोचन कोए॥
भरत बचन सुनि भयउ बिषादू।
तुरत तहाँ लइ गयउ निषादू॥
जहाँ सीताजी, श्रीरामजी और लक्ष्मण रातको सोये थे। ऐसा कहते ही उनके नेत्रोंके
कोयोंमें [प्रेमाश्रुओंका] जल भर आया। भरतजीके वचन सुनकर निषादको बड़ा विषाद
हुआ। वह तुरंत ही उन्हें वहाँ ले गया- ॥ ४॥।
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