रामायण >> श्रीरामचरितमानस अर्थात तुलसी रामायण (अयोध्याकाण्ड)

श्रीरामचरितमानस अर्थात तुलसी रामायण (अयोध्याकाण्ड)

गोस्वामी तुलसीदास

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :0
मुखपृष्ठ :
पुस्तक क्रमांक : 10
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भारत की सर्वाधिक प्रचलित रामायण। द्वितीय सोपान अयोध्याकाण्ड

पति देवता सुतीय मनि सीय साँथरी देखि।
बिहरत हृदउ न हहरिहर पबि तें कठिन बिसेषि॥१९९॥

उन श्रेष्ठ पतिव्रता स्त्रियोंमें शिरोमणि सीताजीको साथरी (कुशशय्या) देखकर मेरा हृदय हहराकर (दहलकर) फट नहीं जाता; हे शङ्कर ! यह वज्रसे भी अधिक कठोर है ! ॥ १९९।।

लालन जोगु लखन लघु लोने।
भे न भाइ अस अहहिं न होने॥
पुरजन प्रिय पितु मातु दुलारे।
सिय रघुबीरहि प्रानपिआरे॥

मेरे छोटे भाई लक्ष्मण बहुत ही सुन्दर और प्यार करनेयोग्य हैं। ऐसे भाई न तो किसीके हुए, न हैं, न होनेके ही हैं। जो लक्ष्मण अवधके लोगोंको प्यारे, माता पिताके दुलारे और श्रीसीतारामजीके प्राणप्यारे हैं;॥१॥

मृदु मूरति सुकुमार सुभाऊ।
तात बाउ तन लाग न काऊ॥
ते बन सहहिं बिपति सब भाँती।
निदरे कोटि कुलिस एहिं छाती॥

जिनकी कोमल मूर्ति और सुकुमार स्वभाव है, जिनके शरीरमें कभी गरम हवा भी नहीं लगी, वे वनमें सब प्रकारकी विपत्तियाँ सह रहे हैं। [हाय!] इस मेरी छातीने [कठोरतामें करोड़ों वज्रोंका भी निरादर कर दिया [नहीं तो यह कभीकी फट गयी होती] ॥२॥

राम जनमि जगु कीन्ह उजागर।
रूप सील सुख सब गुन सागर।।
पुरजन परिजन गुर पितु माता।
राम सुभाउ सबहि सुखदाता॥


श्रीरामचन्द्रजीने जन्म (अवतार) लेकर जगत्को प्रकाशित (परम सुशोभित) कर दिया। वे रूप, शील, सुख और समस्त गुणोंके समुद्र हैं। पुरवासी, कुटुम्बी, गुरु, पिता-माता सभीको श्रीरामजीका स्वभाव सुख देनेवाला है॥३॥

बैरिउ राम बड़ाई करहीं।
बोलनि मिलनि बिनय मन हरहीं।
सारद कोटि कोटि सत सेषा।
करिन सकहिं प्रभु गुन गन लेखा।


शत्रु भी श्रीरामजीकी बड़ाई करते हैं। बोल-चाल, मिलनेके ढंग और विनयसे वे मनको हर लेते हैं। करोड़ों सरस्वती और अरबों शेषजी भी प्रभु श्रीरामचन्द्रजीके गुणसमूहोंकी गिनती नहीं कर सकते॥४॥

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