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रामायण >> श्रीरामचरितमानस अर्थात तुलसी रामायण (अयोध्याकाण्ड) श्रीरामचरितमानस अर्थात तुलसी रामायण (अयोध्याकाण्ड)गोस्वामी तुलसीदास
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भारत की सर्वाधिक प्रचलित रामायण। द्वितीय सोपान अयोध्याकाण्ड
सो०- अंतरजामी रामु सकुच सप्रेम कृपायतन।
चलिअ करिअ बिश्रामु यह बिचारि दृढ़ आनि मन॥२०१॥
चलिअ करिअ बिश्रामु यह बिचारि दृढ़ आनि मन॥२०१॥
श्रीरामचन्द्रजी अन्तर्यामी तथा संकोच, प्रेम और कृपाके धाम हैं, यह विचारकर और
मनमें दृढ़ता लाकर चलिये और विश्राम कीजिये॥२०१॥
सखा बचन सुनि उर धरि धीरा।
बास चले सुमिरत रघुबीरा॥
यह सुधि पाइ नगर नर नारी।
चले बिलोकन आरत भारी॥
बास चले सुमिरत रघुबीरा॥
यह सुधि पाइ नगर नर नारी।
चले बिलोकन आरत भारी॥
सखा के वचन सुनकर, हृदयमें धीरज धरकर श्रीरामचन्द्रजीका स्मरण करते हुए भरतजी
डेरेको चले। नगरके सारे स्त्री-पुरुष यह(श्रीरामजीके ठहरनेके स्थानका) समाचार
पाकर बड़े आतुर होकर उस स्थानको देखने चले ॥१॥
परदखिना करि करहिं प्रनामा।
देहिं कैकइहि खोरि निकामा॥
भरि भरि बारि बिलोचन लेहीं।
बाम बिधातहि दूषन देहीं।
देहिं कैकइहि खोरि निकामा॥
भरि भरि बारि बिलोचन लेहीं।
बाम बिधातहि दूषन देहीं।
वे उस स्थानकी परिक्रमा करके प्रणाम करते हैं और कैकेयीको बहुत दोष देते हैं।
नेत्रोंमें जल भर-भर लेते हैं और प्रतिकूल विधाताको दूषण देते हैं ॥२॥
एक सराहहिं भरत सनेहू।
कोउ कह नृपति निबाहेउ नेहू।
निंदहिं आपु सराहि निषादहि।
को कहि सकइ बिमोह बिषादहि॥
कोउ कह नृपति निबाहेउ नेहू।
निंदहिं आपु सराहि निषादहि।
को कहि सकइ बिमोह बिषादहि॥
कोई भरतजीके स्नेहकी सराहना करते हैं और कोई कहते हैं कि राजाने अपना प्रेम खूब
निबाहा। सब अपनी निन्दा करके निषाद की प्रशंसा करते हैं। उस समय के विमोह और
विषाद को कौन कह सकता है?॥३॥
एहि बिधि राति लोगु सबु जागा।
भा भिनुसार गुदारा लागा॥
गुरहि सुनावँ चढ़ाइ सुहाईं।
नई नाव सब मातु चढ़ाईं।
भा भिनुसार गुदारा लागा॥
गुरहि सुनावँ चढ़ाइ सुहाईं।
नई नाव सब मातु चढ़ाईं।
इस प्रकार रातभर सब लोग जागते रहे। सबेरा होते ही खेवा लगा। सुन्दर नावपर
गुरुजीको चढ़ाकर फिर नयी नावपर सब माताओंको चढ़ाया॥४॥
दंड चारि महँ भा सबु पारा।
उतरि भरत तब सबहि सँभारा॥
उतरि भरत तब सबहि सँभारा॥
चार घड़ीमें सब गङ्गाजीके पार उतर गये।
तब भरतजीने उतरकर सबको सँभाला॥५॥
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