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रामायण >> श्रीरामचरितमानस अर्थात तुलसी रामायण (अयोध्याकाण्ड) श्रीरामचरितमानस अर्थात तुलसी रामायण (अयोध्याकाण्ड)गोस्वामी तुलसीदास
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भारत की सर्वाधिक प्रचलित रामायण। द्वितीय सोपान अयोध्याकाण्ड
प्रातक्रिया करि मातु पद बंदि गुरहि सिरु नाइ।
आगें किए निषाद गन दीन्हेउ कटकु चलाइ॥२०२॥
आगें किए निषाद गन दीन्हेउ कटकु चलाइ॥२०२॥
प्रात:काल की क्रियाओं को करके माताके चरणोंकी वन्दना कर और गुरुजीको सिर नवाकर
भरतजीने निषादगणोंको [रास्ता दिखलानेके लिये] आगे कर लिया और सेना चला दी। २०२॥
कियउ निषादनाथु अगुआईं।
मातु पालकी सकल चलाईं।
साथ बोलाइ भाइ लघु दीन्हा।
बिप्रन्ह सहित गवनु गुर कीन्हा॥
मातु पालकी सकल चलाईं।
साथ बोलाइ भाइ लघु दीन्हा।
बिप्रन्ह सहित गवनु गुर कीन्हा॥
निषादराजको आगे करके पीछे सब माताओंकी पालकियाँ चलायीं। छोटे भाई शत्रुघ्नजीको
बुलाकर उनके साथ कर दिया। फिर ब्राह्मणोंसहित गुरुजीने गमन किया॥१॥
आपु सुरसरिहि कीन्ह प्रनामू।
सुमिरे लखन सहित सिय रामू।
गवने भरत पयादेहिं पाए।
कोतल संग जाहिं डोरिआए॥
सुमिरे लखन सहित सिय रामू।
गवने भरत पयादेहिं पाए।
कोतल संग जाहिं डोरिआए॥
तदनन्तर आप (भरतजी) ने गङ्गाजीको प्रणाम किया और लक्ष्मणसहित श्रीसीतारामजीका
स्मरण किया। भरतजी पैदल ही चले। उनके साथ कोतल (बिना सवारके) घोड़े बागडोरसे
बँधे हुए चले जा रहे हैं ॥२॥
कहहिं सुसेवक बारहिं बारा।
होइअ नाथ अस्व असवारा॥
रामु पयादेहि पायँ सिधाए।
हम कहँ रथ गज बाजि बनाए।
होइअ नाथ अस्व असवारा॥
रामु पयादेहि पायँ सिधाए।
हम कहँ रथ गज बाजि बनाए।
उत्तम सेवक बार-बार कहते हैं कि हे नाथ! आप घोडेपर सवार हो लीजिये। [भरतजी जवाब
देते हैं कि] श्रीरामचन्द्रजी तो पैदल ही गये और हमारे लिये रथ, हाथी और घोड़े
बनाये गये हैं ॥३॥
सिर भर जाउँ उचित अस मोरा।
सब तें सेवक धरमु कठोरा॥
देखि भरत गति सुनि मृदु बानी।
सब सेवक गन गरहिं गलानी॥
सब तें सेवक धरमु कठोरा॥
देखि भरत गति सुनि मृदु बानी।
सब सेवक गन गरहिं गलानी॥
मुझे उचित तो ऐसा है कि मैं सिरके बल चलकर जाऊँ। सेवकका धर्म सबसे कठिन होता
है। भरतजीकी दशा देखकर और कोमल वाणी सुनकर सब सेवकगण ग्लानिके मारे गले जा रहे
हैं ॥४॥
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