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रामायण >> श्रीरामचरितमानस अर्थात तुलसी रामायण (अयोध्याकाण्ड) श्रीरामचरितमानस अर्थात तुलसी रामायण (अयोध्याकाण्ड)गोस्वामी तुलसीदास
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भारत की सर्वाधिक प्रचलित रामायण। द्वितीय सोपान अयोध्याकाण्ड
भरतजी का प्रयाग जाना और भरत-भरद्वाज-संवाद
भरत तीसरे पहर कहँ कीन्ह प्रबेसु प्रयाग।
कहत राम सिय राम सिय उमगि उमगि अनुराग॥२०३॥
कहत राम सिय राम सिय उमगि उमगि अनुराग॥२०३॥
प्रेममें उमंग-उमँगकर सीताराम-सीताराम कहते हुए भरतजी ने तीसरे पहर प्रयाग में
प्रवेश किया॥२०३॥
झलका झलकत पायन्ह कैसें।
पंकज कोस ओस कन जैसें।
भरत पयादेहिं आए आजू।
भयउ दुखित सुनि सकल समाजू॥
पंकज कोस ओस कन जैसें।
भरत पयादेहिं आए आजू।
भयउ दुखित सुनि सकल समाजू॥
उनके चरणोंमें छाले कैसे चमकते हैं, जैसे कमलकी कलीपर ओसकी बूंदें चमकती हों।
भरतजी आज पैदल ही चलकर आये हैं, यह समाचार सुनकर सारा समाज दु:खी हो गया॥१॥
खबरि लीन्ह सब लोग नहाए।
कीन्ह प्रनामु त्रिबेनिहिं आए।
सबिधि सितासित नीर नहाने।
दिए दान महिसुर सनमाने॥
कीन्ह प्रनामु त्रिबेनिहिं आए।
सबिधि सितासित नीर नहाने।
दिए दान महिसुर सनमाने॥
जब भरतजीने यह पता पा लिया कि सब लोग स्नान कर चुके, तब त्रिवेणीपर आकर उन्हें
प्रणाम किया। फिर विधिपूर्वक [गङ्गा-यमुनाके] श्वेत और श्याम जलमें स्नान किया
और दान देकर ब्राह्मणोंका सम्मान किया ॥२॥
देखत स्यामल धवल हलोरे।
पुलकि सरीर भरत कर जोरे॥
सकल काम प्रद तीरथराऊ।
बेद बिदित जग प्रगट प्रभाऊ॥
पुलकि सरीर भरत कर जोरे॥
सकल काम प्रद तीरथराऊ।
बेद बिदित जग प्रगट प्रभाऊ॥
श्याम और सफेद (यमुनाजी और गङ्गाजीकी) लहरों को देखकर भरतजी का शरीर पुलकित हो
उठा और उन्होंने हाथ जोड़कर कहा-हे तीर्थराज! आप समस्त कामनाओं को पूर्ण
करनेवाले हैं। आपका प्रभाव वेदों में प्रसिद्ध और संसार में प्रकट है॥३॥
मागउँ भीख त्यागि निज धरमू।
आरत काह न करइ कुकरमू॥
अस जिय जानि सुजान सुदानी।
सफल करहिं जग जाचक बानी॥
आरत काह न करइ कुकरमू॥
अस जिय जानि सुजान सुदानी।
सफल करहिं जग जाचक बानी॥
मैं अपना धर्म (न माँगनेका क्षत्रियधर्म) त्यागकर आपसे भीख माँगता हूँ। आर्त
मनुष्य कौन-सा कुकर्म नहीं करता? ऐसा हृदयमें जानकर सुजान उत्तम दानी जगत् में
माँगने वाले की वाणी को सफल किया करते हैं (अर्थात् वह जो माँगता है, सो दे
देते हैं) ॥४॥
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