रामायण >> श्रीरामचरितमानस अर्थात तुलसी रामायण (अयोध्याकाण्ड) श्रीरामचरितमानस अर्थात तुलसी रामायण (अयोध्याकाण्ड)गोस्वामी तुलसीदास
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भारत की सर्वाधिक प्रचलित रामायण। द्वितीय सोपान अयोध्याकाण्ड
अजिन बसन फल असन महि सयन डासि कुस पात।
बसि तरु तर नित सहत हिम आतप बरषा बात॥२११॥
बसि तरु तर नित सहत हिम आतप बरषा बात॥२११॥
वे वल्कल वस्त्र पहनते हैं, फलोंका भोजन करते हैं, पृथ्वीपर कुश और पत्ते
बिछाकर सोते हैं और वृक्षोंके नीचे निवास करके नित्य सर्दी, गर्मी, वर्षा और
हवा सहते हैं ॥२११॥
एहि दुख दाहँ दहइ दिन छाती।
भूख न बासर नीद न राती॥
एहि कुरोग कर औषधु नाहीं।
सोधेउँ सकल बिस्व मन माहीं॥
भूख न बासर नीद न राती॥
एहि कुरोग कर औषधु नाहीं।
सोधेउँ सकल बिस्व मन माहीं॥
इसी दुःखकी जलनसे निरन्तर मेरी छाती जलती रहती है। मुझे न दिनमें भूख लगती है,
न रातको नींद आती है। मैंने मन-ही-मन समस्त विश्वको खोज डाला, पर इस कुरोगकी
औषध कहीं नहीं है ॥१॥
मातु कुमत बढ़ई अघ मूला।
तेहिं हमार हित कीन्ह बँसूला॥
कलि कुकाठ कर कीन्ह कुजंत्रू।
गाड़ि अवधि पढ़ि कठिन कुमंत्रू॥
तेहिं हमार हित कीन्ह बँसूला॥
कलि कुकाठ कर कीन्ह कुजंत्रू।
गाड़ि अवधि पढ़ि कठिन कुमंत्रू॥
माताका कुमत (बुरा विचार) पापोंका मूल बढ़ई है। उसने हमारे हित का बसूला बनाया।
उससे कलहरूपी कुकाठ का कुयन्त्र बनाया और चौदह वर्ष की अवधिरूपी कठिन कुमन्त्र
पढ़कर उस यन्त्रको गाड़ दिया। [यहाँ माताका कुविचार बढ़ई है, भरतको राज्य बसूला
है, रामका वनवास कुयन्त्र है और चौदह वर्ष की अवधि कुमन्त्र है] ॥२॥
मोहि लगि यहु कुठाटु तेहिं ठाटा।
घालेसि सब जगु बारहबाटा॥
मिटइ कुजोगु राम फिरि आएँ।
बसइ अवध नहिं आन उपाएँ।
घालेसि सब जगु बारहबाटा॥
मिटइ कुजोगु राम फिरि आएँ।
बसइ अवध नहिं आन उपाएँ।
मेरे लिये उसने यह सारा कुठाट (बुरा साज) रचा और सारे जगत्को बारहबाट
(छिन्न-भिन्न) करके नष्ट कर डाला। यह कुयोग श्रीरामचन्द्रजीके लौट आनेपर ही मिट
सकता है और तभी अयोध्या बस सकती है, दूसरे किसी उपायसे नहीं ॥३॥
भरत बचन सुनि मुनि सुखु पाई।
सबहिं कीन्हि बहु भाँति बड़ाई।
तात करहु जनि सोचु बिसेषी।
सब दुखु मिटिहि राम पग देखी।
सबहिं कीन्हि बहु भाँति बड़ाई।
तात करहु जनि सोचु बिसेषी।
सब दुखु मिटिहि राम पग देखी।
भरतजीके वचन सुनकर मुनिने सुख पाया और सभीने उनकी बहुत प्रकारसे बड़ाई की।
[मुनिने कहा--] हे तात! अधिक सोच मत करो। श्रीरामचन्द्रजीके चरणोंका दर्शन करते
ही सारा दुःख मिट जायगा॥४॥
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