रामायण >> श्रीरामचरितमानस अर्थात तुलसी रामायण (अयोध्याकाण्ड)

श्रीरामचरितमानस अर्थात तुलसी रामायण (अयोध्याकाण्ड)

गोस्वामी तुलसीदास

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :0
मुखपृष्ठ :
पुस्तक क्रमांक : 10
आईएसबीएन :

Like this Hindi book 0

भारत की सर्वाधिक प्रचलित रामायण। द्वितीय सोपान अयोध्याकाण्ड

राम बिरह ब्याकुल भरतु सानुज सहित समाज।
पहुनाई करि हरहु श्रम कहा मुदित मुनिराज ॥२१३॥


मुनिराजने प्रसन्न होकर कहा-छोटे भाई शत्रुघ्न और समाजसहित भरतजी श्रीरामचन्द्रजी के विरह में व्याकुल हैं, इनकी पहुनाई (आतिथ्य-सत्कार) करके इनके श्रमको दूर करो॥ २१३॥

रिधि सिधि सिर धरि मुनिबर बानी।
बड़भागिनि आपुहि अनुमानी।।
कहहिं परसपर सिधि समुदाई।
अतुलित अतिथि राम लघु भाई॥

ऋद्धि-सिद्धिने मुनिराजकी आज्ञाको सिर चढ़ाकर अपनेको बड़भागिनी समझा। सब सिद्धियाँ आपसमें कहने लगीं-श्रीरामचन्द्रजीके छोटे भाई भरत ऐसे अतिथि हैं, जिनकी तुलनामें कोई नहीं आ सकता ॥१॥

मुनि पद बंदि करिअ सोइ आजू।
होइ सुखी सब राज समाजू॥
अस कहि रचेउ रुचिर गृह नाना।
जेहि बिलोकि बिलखाहिं बिमाना।

अत: मुनिके चरणोंकी वन्दना करके आज वही करना चाहिये जिससे सारा राज समाज सुखी हो। ऐसा कहकर उन्होंने बहुत-से सुन्दर घर बनाये, जिन्हें देखकर विमान भी विलखते हैं (लजा जाते हैं)॥२॥

भोग बिभूति भूरि भरि राखे।
देखत जिन्हहि अमर अभिलाषे॥
दासी दास साजु सब लीन्हें।
जोगवत रहहिं मनहि मनु दीन्हें।

उन घरोंमें बहुत-से भोग (इन्द्रियोंक विषय) और ऐश्वर्य (ठाट-बाट) का सामान भरकर रख दिया, जिन्हें देखकर देवता भी ललचा गये। दासी-दास सब प्रकार की सामग्री लिये हुए मन लगाकर उनके मनों को देखते रहते हैं (अर्थात् उनके मन की रुचि के अनुसार करते रहते हैं)॥३॥

सब समाजु सजि सिधि पल माहीं।
जे सुख सुरपुर सपनेहुँ नाहीं॥
प्रथमहिं बास दिए सब केही।
सुंदर सुखद जथा रुचि जेही॥


जो सुखके सामान स्वर्गमें भी स्वप्नमें भी नहीं हैं ऐसे सब सामान सिद्धियोंने पलभरमें सज दिये। पहले तो उन्होंने सब किसीको, जिसकी जैसी रुचि थी वैसे ही, सुन्दर सुखदायक निवासस्थान दिये॥४॥

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

लोगों की राय

No reviews for this book