रामायण >> श्रीरामचरितमानस अर्थात तुलसी रामायण (अयोध्याकाण्ड) श्रीरामचरितमानस अर्थात तुलसी रामायण (अयोध्याकाण्ड)गोस्वामी तुलसीदास
|
|
भारत की सर्वाधिक प्रचलित रामायण। द्वितीय सोपान अयोध्याकाण्ड
भरतजी चित्रकूटके मार्ग में
एहि बिधि भरत चले मग जाहीं।
दसा देखि मुनि सिद्ध सिहाहीं॥
जबहिं रामु कहि लेहिं उसासा।
उमगत पेमु मनहुँ चहु पासा॥
दसा देखि मुनि सिद्ध सिहाहीं॥
जबहिं रामु कहि लेहिं उसासा।
उमगत पेमु मनहुँ चहु पासा॥
इस प्रकार भरतजी मार्गमें चले जा रहे हैं। उनकी [प्रेममयी] दशा देखकर मुनि और
सिद्ध लोग भी सिहाते हैं। भरतजी जभी 'राम' कहकर लंबी साँस लेते हैं, तभी मानो
चारों ओर प्रेम उमड़ पड़ता है॥३॥
द्रवहिं बचन सनि कुलिस पषाना।
पुरजन पेम न जाइ बखाना॥
बीच बास करि जमुनहिं आए।
निरखि नीरु लोचन जल छाए॥
पुरजन पेम न जाइ बखाना॥
बीच बास करि जमुनहिं आए।
निरखि नीरु लोचन जल छाए॥
उनके [प्रेम और दीनतासे पूर्ण] वचनों को सुनकर वज्र और पत्थर भी पिघल जाते हैं।
अयोध्यावासियों का प्रेम कहते नहीं बनता। बीच में निवास (मुकाम) करके भरतजी
यमुनाजी के तटपर आये। यमुनाजीका जल देखकर उनके नेत्रों में जल भर आया।॥ ४॥
|
लोगों की राय
No reviews for this book