रामायण >> श्रीरामचरितमानस अर्थात तुलसी रामायण (अयोध्याकाण्ड) श्रीरामचरितमानस अर्थात तुलसी रामायण (अयोध्याकाण्ड)गोस्वामी तुलसीदास
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भारत की सर्वाधिक प्रचलित रामायण। द्वितीय सोपान अयोध्याकाण्ड
रघुबर बरन बिलोकि बर बारि समेत समाज।
होत मगन बारिधि बिरह चढ़े बिबेक जहाज॥२२०॥
होत मगन बारिधि बिरह चढ़े बिबेक जहाज॥२२०॥
श्रीरघुनाथजी के (श्याम) रंगका सुन्दर जल देखकर सारे समाजसहित भरतजी
[प्रेमविह्वल होकर] श्रीरामजी के विरहरूपी समुद्र में डूबते-डूबते विवेकरूपी
जहाजपर चढ़ गये (अर्थात् यमुनाजीका श्यामवर्ण जल देखकर सब लोग श्यामवर्ण
भगवान्के प्रेम में विह्वल हो गये और उन्हें न पाकर विरहव्यथा से पीड़ित हो
गये; तब भरतजी को यह ध्यान आया कि जल्दी चलकर उनके साक्षात् दर्शन करेंगे, इस
विवेकसे वे फिर उत्साहित हो गये) ॥२२०॥
जमुन तीर तेहि दिन करि बासू।
भयउ समय सम सबहि सुपासू॥
रातिहिं घाट घाट की तरनी।
आईं अगनित जाहिं न बरनी॥
भयउ समय सम सबहि सुपासू॥
रातिहिं घाट घाट की तरनी।
आईं अगनित जाहिं न बरनी॥
उस दिन यमुनाजी के किनारे निवास किया। समयानुसार सबके लिये [खान-पान आदिकी]
सुन्दर व्यवस्था हुई। [निषादराजका सङ्केत पाकर] रात-ही-रात में घाट घाट की
अगणित नावें वहाँ आ गयीं, जिनका वर्णन नहीं किया जा सकता ॥१॥
प्रात पार भए एकहि खेवाँ।
तोषे रामसखा की सेवाँ।
चले नहाइ नदिहि सिर नाई।
साथ निषादनाथ दोउ भाई॥
तोषे रामसखा की सेवाँ।
चले नहाइ नदिहि सिर नाई।
साथ निषादनाथ दोउ भाई॥
सबेरे एक ही खेवेमें सब लोग पार हो गये और श्रीरामचन्द्रजीके सखा निषादराजकी इस
सेवासे सन्तुष्ट हुए। फिर स्नान करके और नदीको सिर नवाकर निषादराजके साथ दोनों
भाई चले॥२॥
आगें मुनिबर बाहन आछे।
राजसमाज जाइ सबु पाछे॥
तेहि पाछे दोउ बंधु पयादें।
भूषन बसन बेष सुठि सादें।
राजसमाज जाइ सबु पाछे॥
तेहि पाछे दोउ बंधु पयादें।
भूषन बसन बेष सुठि सादें।
आगे अच्छी-अच्छी सवारियोंपर श्रेष्ठ मुनि हैं, उनके पीछे सारा राजसमाज जा रहा
है। उसके पीछे दोनों भाई बहुत सादे भूषण-वस्त्र और वेषसे पैदल चल रहे हैं ॥३॥
सेवक सुहृद सचिवसुत साथा।
सुमिरत लखनु सीय रघुनाथा॥
जहँ जहँ राम बास बिश्रामा।
तहँ तहँ करहिं सप्रेम प्रनामा॥
सुमिरत लखनु सीय रघुनाथा॥
जहँ जहँ राम बास बिश्रामा।
तहँ तहँ करहिं सप्रेम प्रनामा॥
सेवक, मित्र और मन्त्रीके पुत्र उनके साथ हैं। लक्ष्मण, सीताजी और
श्रीरघुनाथजीका स्मरण करते जा रहे हैं। जहाँ-जहाँ श्रीरामजीने निवास और विश्राम
किया था, वहाँ-वहाँ वे प्रेमसहित प्रणाम करते हैं ॥४॥
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