रामायण >> श्रीरामचरितमानस अर्थात तुलसी रामायण (अयोध्याकाण्ड)

श्रीरामचरितमानस अर्थात तुलसी रामायण (अयोध्याकाण्ड)

गोस्वामी तुलसीदास

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :0
मुखपृष्ठ :
पुस्तक क्रमांक : 10
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भारत की सर्वाधिक प्रचलित रामायण। द्वितीय सोपान अयोध्याकाण्ड


दो०- कहेउ भूप मुनिराज कर, जोइ जोइ आयसु होइ।
राम राज अभिषेक हित, बेगि करहु सोइ सोइ॥५॥

राजा ने कहा-श्रीरामचन्द्र के राज्याभिषेक के लिये मुनिराज वसिष्ठजी की जो-जो आज्ञा हो, आप लोग वही सब तुरंत करें॥५॥


हरषि मुनीस कहेउ मृदु बानी।
आनहु सकल सुतीरथ पानी॥
औषध मूल फूल फल पाना।
कहे नाम गनि मंगल नाना॥


मुनिराज ने हर्षित होकर कोमल वाणी से कहा कि सम्पूर्ण श्रेष्ठ तीर्थों का जल ले आओ। फिर उन्होंने ओषधि, मूल, फूल, फल और पत्र आदि अनेकों माङ्गलिक वस्तुओं के नाम गिनकर बताये॥१॥


चामर चरम बसन बहु भाँती।
रोम पाट पट अगनित जाती॥
मनिगन मंगल बस्तु अनेका।
जो जग जोगु भूप अभिषेका॥


चँवर, मृगचर्म, बहुत प्रकार के वस्त्र, असंख्यों जातियों के ऊनी और रेशमी कपड़े, [नाना प्रकारकी] मणियाँ (रत्न) तथा और भी बहुत-सी मङ्गल वस्तुएँ, जो जगत् में राज्याभिषेक के योग्य होती हैं [सबको मँगाने की उन्होंने आज्ञा दी]॥ २॥


बेद बिदित कहि सकल बिधाना।
कहेउ रचहु पुर बिबिध बिताना॥
सफल रसाल पूगफल केरा।
रोपहु बीथिन्ह पुर चहुँ फेरा॥

मुनि ने वेदों में कहा हुआ सब विधान बताकर कहा-नगर में बहुत-से मण्डप (चँदोवे) सजाओ। फलों समेत आम, सुपारी और केले के वृक्ष नगर की गलियों में चारों ओर रोप दो॥३॥


रचहु मंजु मनि चौकें चारू।
कहहु बनावन बेगि बजारू॥
पूजहु गनपति गुर कुलदेवा।
सब बिधि करहु भूमिसुर सेवा।


सुन्दर मणियों के मनोहर चौक पुरवाओ और बाजार को तुरंत सजाने के लिये कह दो। श्रीगणेशजी, गुरु और कुलदेवता की पूजा करो और भूदेव ब्राह्मणों की सब प्रकारसे सेवा करो॥४॥

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