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वेदान्त >> वेदान्त पर स्वामी विवेकानन्द के व्याख्यान वेदान्त पर स्वामी विवेकानन्द के व्याख्यानस्वामी विवेकानन्द
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स्वामी जी द्वारा अमेरिका और ब्रिटेन में वेदान्त पर दिये गये व्याख्यान
हम सभी जानते हैं कि प्रत्येक धर्म के शास्त्रों में परवर्ती काल की विकासमान आध्यात्मिकता के अनुरूप परिवर्तन किये गये–इधर-उधर एक शब्द बदल दिया, या जोड़ दिया गया। पर वैदिक साहित्य में सम्भवतः ऐसा नहीं किया गया है। और यदि हुआ भी हो तो उसका पता ही नहीं चलता। हमें इससे यह लाभ है कि हम विचार के मूल उत्पत्ति स्थान में पहुँच सकते हैं और देख सकते हैं कि किस प्रकार क्रमशः उच्च से उच्चतर विचारों का–स्थूल आधिभौतिक धारणाओं से सूक्ष्मतर आध्यात्मिक धारणाओं का–विकास हुआ है और अन्त में किस प्रकार वेदान्त में (विचारों की प्रगति कभी-कभी हमें यह संदेह उत्पन्न कर सकती है कि अन्य विचारधाराओं की भाँति वेदान्त भी केवल एक मत ही है, तब वेदान्त और अन्य मतों में भिन्नता नहीं रह जाती, इसीलिए ऋषियों ने श्रुति, युक्ति और अनुभव पर बल दिया है, क्योंकि अंतिम सत्य तक पहुँचने के लिए श्रुति और युक्ति ही पर्याप्त नहीं हैं, बल्कि अहं ब्रह्मास्मि का साक्षात् अनुभव ही अंततः परमात्मदर्शन का पुष्टीकरण है) उन सभी की चरम परिणति हुई है। वैदिक साहित्य में अनेक प्राचीन आचार-व्यवहारों का भी आभास पाया जाता है। पर उपनिषदों में उनका अधिक वर्णन नहीं है। वे एक ऐसी भाषा में लिखे गये हैं, जो अत्यन्त संक्षिप्त है और सरलता से याद रखी जा सकती है।
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