वेदान्त >> वेदान्त पर स्वामी विवेकानन्द के व्याख्यान

वेदान्त पर स्वामी विवेकानन्द के व्याख्यान

स्वामी विवेकानन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :602
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7
आईएसबीएन :1234567890

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स्वामी जी द्वारा अमेरिका और ब्रिटेन में वेदान्त पर दिये गये व्याख्यान

अन्य जो कुछ है, वह जैसा वेदान्त कहता है, अध्यास, आरोप मात्र है। कुछ उसके ऊपर आरोपित कर दिया गया है, पर उसके दिव्य स्वरूप का कभी भी नाश नहीं होता। यह दिव्य स्वरूप जिस प्रकार अतिशय साधु-प्रकृति व्यक्ति में है, वैसे ही एक अत्यन्त पतित व्यक्ति में भी है। इस देव-स्वभाव का आह्वान करना होगा, और वह अपने स्वयं को ही प्रकट कर देगा। हम उसे पुकारेंगे और वह जग जाएगा। पहले के लोग जानते थे कि चकमक पत्थर और सूखी लकड़ी में आग रहती है, पर उस आग को बाहर निकालने के लिए घर्षण आवश्यक था। इसी प्रकार यह मुक्तभाव और पवित्रता-रूपी अग्नि प्रत्येक आत्मा का स्वभाव है, आत्मा का गुण नहीं, क्योंकि गुण तो उपार्जित किया जा सकता है, इसलिए वह नष्ट भी हो सकता है। आत्मा मुक्त भाव से अभिन्न है, सत् या अस्तित्व और ज्ञान से अभिन्न हैं। यह सत्-चित्-आनन्द आत्मा का स्वभाव है, आत्मा का जन्मसिद्ध अधिकार है, और यह सब व्यक्त भाव जो हम देख रहे हैं, उसी की धुंधली और उज्ज्वल अभिव्यक्तियाँ हैं। यहाँ तक कि, मृत्यु भी उस प्रकृत सत्ता की एक अभिव्यक्ति है। जन्म-मृत्यु, क्षय-वृद्धि, उन्नति-अवनति, सब कुछ उस एक अखण्ड सत्ता की ही विभिन्न अभिव्यक्तियाँ हैं। इसी प्रकार, हमारा साधारण ज्ञान भी, वह चाहे विद्या अथवा अविद्या किसी भी रूप से प्रकाशित क्यों न हो, उसी चित् का, उसी ज्ञानस्वरूप का प्रकाश है, विभिन्नता प्रकारगत नहीं है, अपितु परिमाणगत है। नीचे धरती पर रेंगनेवाला क्षुद्र कीड़ा और स्वर्ग का श्रेष्ठतम देवता इन दोनों के ज्ञान का भेद प्रकारगत नहीं परिमाणगत है। इसी कारण वेदान्ती मनीषी निर्भय होकर कहते हैं कि हमारे जीवन के सारे सुखोपभोग, यहाँ तक कि, नितान्त ‘गर्हित आनन्द भी उसी आनन्दस्वरूप आत्मा का प्रकाश है।

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