वेदान्त >> वेदान्त पर स्वामी विवेकानन्द के व्याख्यान

वेदान्त पर स्वामी विवेकानन्द के व्याख्यान

स्वामी विवेकानन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :602
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7
आईएसबीएन :1234567890

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स्वामी जी द्वारा अमेरिका और ब्रिटेन में वेदान्त पर दिये गये व्याख्यान

यही वेदान्त का सर्वप्रधान भाव ज्ञात होता है, और जैसा मैंने पहले कहा है, मुझे मालूम होता है कि सभी धर्मों का यही मत है। मैं ऐसा कोई धर्म नहीं जानता, जिसके मूल में यह मत न हो। सभी धर्मों में यह सार्वभौमिक भाव विद्यमान है। उदाहरण के तौर पर बाइबिल ही को ले लो। उसमें यह रूपक है कि आदि-मानव आदम अत्यन्त पवित्र था, अन्त में उसके असत्कार्यों से उसकी पवित्रता नष्ट हो गयी। इस रूपक से यह प्रमाणित होता है कि वे विश्वास करते थे कि आदिम मानव का स्वभाव पूर्ण था। हमें जो तरह-तरह की दुर्बलताएँ और अपवित्रता दिखाई देती है, वह सब उस पूर्णस्वभाव पर आरोपित आवरण या उपाधि मात्र है। फिर, ईसाई धर्म का परवर्ती इतिहास यह भी बतलाता है कि उसके अनुयायी उस पूर्व-अवस्था की पुनःप्राप्ति की केवल सम्भावना में ही नहीं, वरन् उसकी निश्चितता में भी विश्वास करते हैं। यही समस्त बाइबिल का–प्राचीन तथा नव व्यवस्थान का–इतिहास है। मुसलमानों के सम्बन्ध में भी ऐसा ही है। वे भी आदम तथा उसकी जन्मजात पवित्रता पर विश्वास करते हैं। और उनकी यह धारणा है कि हजरत मुहम्मद के आगमन से उस लुप्त पवित्रता के पुनरुद्धार का उपाय प्राप्त हो गया है। बौद्धों के विषय में भी यही है। वे भी निर्वाण नामक अवस्था-विशेष में विश्वास रखते हैं। यह अवस्था द्वैत-जगत् से अतीत की अवस्था है। वेदान्ती लोग जिसे ब्रह्म कहते हैं, यह निर्वाण भी ठीक वही है।

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