वेदान्त >> वेदान्त पर स्वामी विवेकानन्द के व्याख्यान

वेदान्त पर स्वामी विवेकानन्द के व्याख्यान

स्वामी विवेकानन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :602
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7
आईएसबीएन :1234567890

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स्वामी जी द्वारा अमेरिका और ब्रिटेन में वेदान्त पर दिये गये व्याख्यान

वेदान्त का उत्तर यह है कि हम बद्ध नहीं वरन् नित्यमुक्त हैं। यही नहीं, बल्कि अपने को बद्ध सोचना भी अनिष्टकर है; वह तो भ्रम है आत्मसम्मोहन है। ज्यों ही तुमने कहा कि मैं बद्ध हूँ, दुर्बल हूं, असहाय हूँ, त्योंही तुम्हारा दुर्भाग्य आरम्भ हो गया, तुमने अपने पैरों में एक और बेड़ी डाल ली। इसलिए ऐसी बात कभी न कहना और न इस प्रकार कभी सोचना ही। (सोचने की दृष्टि से यह स्वाभाविक है कि इस प्रकार की सोच के लिए मना किया जायेगा, परंतु कुछ बाल-बुद्धि वाले लोगों को बच्चों की तरह साहस बढ़ाना पड़ता है, अन्यथा साधना के साथ-साथ हम वास्तव में बद्ध हैं या नहीं, इस संदर्भ में साधक का निश्चय पक्का होता जाता है) मैंने एक व्यक्ति की बात सुनी है, वे वन में रहते थे और उनके अधरों पर दिन-रात 'शिवोऽहं, शिवोऽहं' की वाणी रहा करती थी। एक दिन एक बाघ ने उन पर आक्रमण किया और उन्हें पकड़कर ले चला। नदी के दूसरे तट पर कुछ लोग यह दृश्य देख रहे थे और उनके मुख से लगातार निकलती हुई 'शिवोऽहं, शिवोऽहं' की ध्वनि सुन रहे थे। जब तक उनमें बोलने की शक्ति रही, बाघ के मुँह में पड़कर भी वे 'शिवोऽहं, शिवोऽहं' कहते रहे। इसी प्रकार और भी अनेक व्यक्तियों की बात सुनी गयी है। कुछ ऐसे व्यक्ति हो गये हैं, जिनके शत्रुओं ने उनके टुकड़े टुकड़े कर डाले, पर वे उन्हें आशीर्वाद ही देते रहे। सोऽहं, सोऽहं - मैं ही वह हूँ, मैं ही वह हूँ, और तुम भी वही हो। मैं पूर्णस्वरूप हूँ, और मेरे शत्रु भी पूर्णस्वरूप हैं। तुम भी वही हो, और मैं भी वही हूँ। यही वीर की अवस्था है।

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