वेदान्त >> वेदान्त पर स्वामी विवेकानन्द के व्याख्यान वेदान्त पर स्वामी विवेकानन्द के व्याख्यानस्वामी विवेकानन्द
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स्वामी जी द्वारा अमेरिका और ब्रिटेन में वेदान्त पर दिये गये व्याख्यान
इसके विरुद्ध जो एक बात उठायी जाती है, वह यह है, "मैं शुद्ध हूँ, आनन्दस्वरूप हूँ, इस प्रकार मौखिक कहना तो ठीक है, पर जीवन में तो मैं इसे सर्वदा नहीं दिखला सकता।" (इस बात की क्या आवश्यकता है कि हम किसी को यह दिखलाएँ कि मैं शुद्ध हूँ, आनन्दस्वरूप हूँ) हम इस बात को स्वीकार करते हैं। आदर्श सदैव अत्यन्त कठिन होता है। प्रत्येक बालक आकाश को अपने सिर से बहुत ऊँचाई पर देखता है, पर इस कारण क्या हम आकाश की ओर देखने की चेष्टा भी न करें? अन्धविश्वास की ओर जाने से ही क्या सब अच्छा हो जाएगा? यदि हम अमृत न पा सकें, तो क्या विष पान करने से ही कल्याण होगा? हम यदि अभी सत्य का अनुभव न कर सकते हों, तो क्या अन्धकार, दुर्बलता और अन्धविश्वास की ओर जाने से ही कल्याण होगा?
द्वैतवाद के कई प्रकारों के सम्बन्ध में मुझे कोई आपत्ति नहीं है, किन्तु जो कोई उपदेश दुर्बलता की शिक्षा देता है, उस पर मुझे विशेष आपत्ति है। स्त्री पुरुष, बालक-बालिका जिस समय दैहिक, मानसिक अथवा आध्यात्मिक शिक्षा पाते हैं, उस समय मैं उनसे यही एक प्रश्न करता हूँ- "क्या तुम्हें इससे बल प्राप्त होता है?" क्योंकि मैं जानता हूँ, एकमात्र सत्य ही बल प्रदान करता है। मैं जानता हूँ, एकमात्र सत्य ही प्राणप्रद है। सत्य की ओर गये बिना हम अन्य किसी भी उपाय से वीर्यवान् नहीं हो सकते, और वीर्यवान् हुए बिना हम सत्य के समीप नहीं पहुँच सकते। इसीलिए जो मत, जो शिक्षाप्रणाली मन और मस्तिष्क को दुर्बल कर दे और मनुष्य को कुसंस्कार से भर दे, जिससे वह अन्धकार में टटोलता रहे। ख्याली पुलाव पकाता रहे और सब प्रकार की अजीबोगरीब तथा अन्धविश्वासपूर्ण बातों की तह छानता रहे, उस मत या प्रणाली को मैं पसन्द नहीं करता क्योंकि मनुष्य पर इसका परिणाम बड़ा भयानक होता है।
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