वेदान्त >> वेदान्त पर स्वामी विवेकानन्द के व्याख्यान

वेदान्त पर स्वामी विवेकानन्द के व्याख्यान

स्वामी विवेकानन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :602
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7
आईएसबीएन :1234567890

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स्वामी जी द्वारा अमेरिका और ब्रिटेन में वेदान्त पर दिये गये व्याख्यान

ऐसी प्रणालियों से कभी कोई उपकार नहीं होता; प्रत्युत वे तो मन में विकृति ला देती हैं, उसे दुर्बल बना देती हैं- इतना दुर्बल कि कालान्तर में मन सत्य को ग्रहण करने और उसके अनुसार जीवन-गठन करने में सर्वथा असमर्थ हो जाता है। अतः बल ही एक आवश्यक बात है। बल ही भवरोग की दवा है। धनिकों द्वारा रौंदे जाने वाले निर्धनों के लिए बल ही एकमात्र दवा है। विद्वानों द्वारा दबाये जाने वाले अशिक्षितों के लिए बल ही एकमात्र दवा है और अन्य पापियों द्वारा सताये जाने वाले पापियों के लिए भी वही एकमात्र दवा है। और अद्वैतवाद हमें जैसा बल देता है, वैसा और कोई नहीं देता। अद्वैतवाद हमें जिस प्रकार नीति परायण बनाता है, वैसा और कोई भी नहीं बनाता। जब सारा दायित्व हमारे अपने कन्धों पर डाल दिया जाता है, उस समय हम जितनी अच्छी तरह से कार्य करते हैं, उतनी और किसी भी अवस्था में नहीं करते। मैं तुम लोगों से पूछता हूँ, यदि एक नन्हे बच्चे को तुम्हारे हाथ सौंप दूं, तो तुम उसके प्रति कैसा व्यवहार करोगे? उस क्षण के लिए तुम्हारा सारा जीवन बदल जाएगा। तुम्हारा स्वभाव कैसा भी क्यों न हो, कम से कम, उन क्षणों के लिए तुम सम्पूर्णतः निःस्वार्थी बन जाओगे। यदि तुम पर उत्तरदायित्व डाल दिया जाए, तो तुम्हारा सारी पाप प्रवृत्तियाँ दूर हो जाएँगी, तुम्हारा सारा चरित्र बदल जाएगा। इसी प्रकार जब सारे उत्तरदायित्व का बोझ हम पर डाल दिया जाता है, तब हम अपने सर्वोच्च भाव में आरोहण करते हैं। जब हमारे सारे दोष और किसी के मत्थे नहीं मढ़े जाते, जब शैतान या भगवान् किसी को भी हम अपने दोषों के लिए उत्तरदायी नहीं ठहराते, तभी हम सर्वोच्च भाव में पहुँचते हैं। अपने भाग्य के लिए मैं स्वयं उत्तरदायी हूँ। मैं स्वयं अपने शुभाशुभ दोनों का कर्ता हूँ। पर मेरा स्वरूप शुद्ध और आनन्द मात्र है। इससे विपरीत जो विचार हैं, उनको त्याग देना चाहिए।

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