वेदान्त >> वेदान्त पर स्वामी विवेकानन्द के व्याख्यान वेदान्त पर स्वामी विवेकानन्द के व्याख्यानस्वामी विवेकानन्द
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स्वामी जी द्वारा अमेरिका और ब्रिटेन में वेदान्त पर दिये गये व्याख्यान
'मेरी मृत्यु नहीं है, शंका भी नहीं; मेरी कोई जाति नहीं है, न कोई मत ही; मेरे पिता या माता या भ्राता या मित्र या शत्रु भी नहीं है, क्योंकि मैं सच्चिदानन्द-स्वरूप शिव हूँ। मैं पाप से या पुण्य से, सुख से या दुःख से बद्ध नहीं हूँ। तीर्थ, ग्रन्थ और नियमादि मुझे बन्धन में नहीं डाल सकते। मैं क्षुधा-पिपासा से रहित हूँ। यह देह मेरी नहीं है, न मैं देह के अन्तर्गत विकार और अन्धविश्वासों के अधीन ही हूँ। मैं तो सच्चिदानन्द-स्वरूप हूँ, मैं शिव हूँ , मैं शिव हूँ।'*
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न मृर्त्यु न शंका न में जातिभेदः
पिता नैव मे नैव माता न जन्म।
न बन्धुर्न मित्रं गुरुनैव शिष्यश्चिदानन्दरूपः
शिवोऽहं शिवोऽहम् ॥
न पुण्यं न पापं न सौख्यं न दुःखं
न मन्त्रं न तीर्थं न वेदा न यज्ञाः।
अहं भोजनं नैव भोज्यं न भोक्ता चिदानन्दस्वरूपः शिवोऽहं शिवोऽहम् ॥
- (निर्वाणषट्कम्, २।५,४.)
वेदान्त कहता है कि केवल यही स्तवन हमारी प्रार्थना हो सकता है। उस अन्तिम लक्ष्य पर पहुँचने का यही एकमात्र उपाय है - अपने से और सब से यही कहना कि हम ब्रह्मस्वरूप हैं। हम ज्यों-ज्यों इसकी आवृत्ति करते हैं, त्यो-त्यों हममें बल आता जाता है। 'शिवोऽहं'रूपी यह अभय वाणी क्रमशः अधिकाधिक गम्भीर हो हमारे हृदय में, हमारे सभी भावों में भिदती जाती है और अन्त में हमारी नस-नस में, हमारे शरीर के प्रत्येक भाग में समा जाती है। ज्ञानसूर्य की किरणें जितनी उज्वल होने लगती हैं, मोह उतना ही दूर भागता जाता है, अज्ञानराशि ध्वंस होती जाती है, और अन्त में एक समय आता है, जब सारा अज्ञान बिलकुल लुप्त हो जाता है और केवल ज्ञानसूर्य ही अवशिष्ट रह जाता है।
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