वेदान्त >> वेदान्त पर स्वामी विवेकानन्द के व्याख्यान वेदान्त पर स्वामी विवेकानन्द के व्याख्यानस्वामी विवेकानन्द
|
|
स्वामी जी द्वारा अमेरिका और ब्रिटेन में वेदान्त पर दिये गये व्याख्यान
विश्व : बृहत् ब्रह्माण्ड
(१९ जनवरी १८९६ को न्यूयार्क में दिया हुआ व्याख्यान।)
सर्वत्र विद्यमान फूल सुन्दर हैं, प्रभात के सूर्य का उदय सुन्दर है, प्रकृति के विविध रंग और वर्णावली सुन्दर है। समस्त जगत् सुन्दर है, और मनुष्य जब से पृथ्वी पर आया है, तभी से इस सौन्दर्य का उपभोग कर रहा है। पर्वतमालाएँ गम्भीर भावव्यंजक एवं भय उत्पन्न करने वाली हैं, प्रबल वेग से समुद्र की ओर बहने वाली नदियाँ, पदचिह्नरहित मरुदेश, अनन्त सागर, तारों से भरा आकाश- ये सभी उदात्त, भयोद्दीपक और सुन्दर हैं। 'प्रकृति' शब्द से कही जाने वाली सभी सत्ताएँ अति प्राचीन, स्मृति-पथ के अतीत काल से मनुष्य के मन पर कार्य कर रही हैं, वे मनुष्य की विचारधारा पर क्रमशः प्रभाव फैला रही हैं और इस प्रभाव की प्रतिक्रिया के फलस्वरूप मनुष्य के हृदय में लगातार यह प्रश्न उठ रहा है कि यह सब क्या है और इसकी उत्पत्ति कहाँ से हुई? अति प्राचीन मानव-रचना वेद के प्राचीन भाग में भी इसी प्रश्न की जिज्ञासा हम देखते हैं। यह सब कहाँ से आया? जिस समय सत्-असत् कुछ भी नहीं था, जब अन्धकार भी अन्धकार से ढका हुआ था, तब किसने इस जगत का सृजन किया? कैसे किया? कौन इस रहस्य को जानता है: आज तक यही प्रश्न चला आ रहा है। लाखों बार इसका उत्तर देने की चेष्टा की गयी है, किन्तु फिर भी लाखों बार उसका फिर से उत्तर देना पड़ेगा। ऐसी बात नहीं कि ये सभी उत्तर भ्रमपूर्ण हो। प्रत्येक उत्तर में कुछ न कुछ सत्य है- कालचक्र के साथ-साथ यह सत्य भी क्रमशः बल संग्रह करता जाएगा। मैंने भारत के प्राचीन दार्शनिकों से इस प्रश्न का जो उत्तर पाया है, उसको, वर्तमान मानव-ज्ञान से समन्वित करके तुम्हारे सामने रखने की चेष्टा करूँगा।
|